सिंधी भाषी लोगों को अल्पसंख्यक वर्ग में शामिल करने की याचिका पर होगी 27 को सुनवाई

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वाराणसीः सरकार से सिंधी भाषी लोगों को अल्पसंख्यक वर्ग में शामिल करने की मांग
को लेकर पूर्व पार्षद शंकर विश्नानी द्वारा उच्च न्यायालय प्रयागराज में दायर की गई जनहित याचिका (पीआईएल) संख्या – 1963 पर अगली सुनवाई 27 नवंबर को होगी. यह आदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश प्रितिकंर दिवाकर व न्यायाधीश आशुतोष श्रीवास्तव ने दिया है.

पूर्व पार्षद शंकर विश्नानी

 

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सिंधी भाषी लोग हैं सामान्य श्रेणी में, नहीं मिलता कोई सरकारी योजना का लाभ

संत कंवर राम जी सिंधी धर्मशाला व दरबार अमर नगर सोनिया

जनहित याचिका में अल्पसंख्यक दर्जा एवं सिंधी भाषी लोगों को आरक्षण में शामिल करने की मांग की गई है. याचिका में कहा गया है कि अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय दिल्ली, अल्पसंख्यक मंत्रालय मुख्य सचिव लखनऊ और मुख्य सचिव लखनऊ से उच्च न्यायालय एक समय सीमा के अंदर रिपोर्ट मंगवाएं और सुनवाई करें कि सरकार अपने द्वारा बनाए गए कानून में सिंधी भाषी लोगों को भाषाई अल्पसंख्यक कब मानती है . कहा गया है कि सिंधी भाषी लोगों को न तो किसी सरकारी योजना का लाभ मिलता है और न ही उन्हें किसी सरकारी योजना में शामिल किया जाता है.इसके अलावा सिंधी भाषी लोगों में शूद्र, वैश्य, ब्राह्मण, राजपूत आदि निचली जाति की श्रेणियां हैं लेकिन उन्हें सामान्य वर्ग की श्रेणी में रखा गया है. वहीं देश की आबादी के हिसाब से सिंधी भाषी लोगों की आबादी एक प्रतिशत से भी कम है. याचिका में कहा गया है कि भारत में धार्मिक आधार पर दो तरह के अल्पसंख्यक समुदाय हैं. इनमें मुस्लिम, ईसाई, बौद्ध, पारसी, सिख और जैन समुदाय को अल्पसंख्यक श्रेणी में रखा गया है. इसी को देखते हुए वह उच्च न्यायालय से सिंधी भाषी लोगों को अल्पसंख्यक वर्ग में शामिल करने का अनुरोध करते हैं. अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय मुस्लिम, ईसाई, बौद्ध, पारसी, सिख और जैन समुदाय के बच्चों को शिक्षा के लिए छात्रवृत्ति देता है। यह राशि देश के लगभग 180000 शिक्षण संस्थानों को प्रदान की जाती है. इसके अंतर्गत लगभग 650000 छात्रों को इसका लाभ मिल रहा है. दूसरी ओर सिंधी भाषी लोगों को इस श्रेणी में शामिल न किया जाना उनके साथ अन्याय जैसा लगता है. इसी सन्दर्भ में अपना अधिकार मांगने के लिए जनहित याचिका दाखिल की गयी है, जिसकी अगली सुनवाई 27 नवंबर को नियत की गयी है. आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास व्यक्त किया गया है कि उच्च न्यायालय उनकी जनभावनाओं को समझेगा और सिंधी भाषी लोगों के साथ न्याय करेगा.

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