हरतालिका तीज व्रत: जानें कजरी तीज का महत्त्व, कैसे पार्वती जी ने भगवान शिव को पति के रूप में मांगा?

0

हिंदू महिलाओं के लिए पवित्र पर्व हरतालिका तीज मंगलवार (30 अगस्त) को मनाया जा रहा है. इसका व्रत पूर्ण रूप से माता पार्वती और भगवान शिव से जुड़ा है. इस कथा में बताया गया कि कैसे माता पार्वती ने तपस्या करके भगवान शिव को अपने पति के रूप में मांग लिया. भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की हस्त नक्षत्र संयुक्त तृतीया के दिन इस व्रत को किया जाता है. इसे कजरी तीज भी कहते हैं. इस व्रत को करना भी किसी तपस्या से कम नहीं है. पूरे दिन व्रत में बिना कुछ खाये निर्जला रहा जाता है. इस व्रत का पारण अगले दिन किया जाता है. व्रत के दिन शाम को कथा कहकर फल आदि ग्रहण किए जा सकते हैं.

इस व्रत में कथा सुनने का खास महत्व है. शाम को पूजा कर कथा सुनी जाती है और फिर रात को जागरण किया जाता है. इस व्रत में मिट्टी के शिव पार्वती की पूजा होती है, मां पार्वती को बांस की डलिया में सुहाग का सामान अर्पित किया जाता है. तीनों देवताओं को वस्त्र अर्पित करने के बाद हरितालिका तीज व्रत कथा सुननी चाहिए. इस दिन पूजा का मुहूर्त सुबह 06:30 बजे से लेकर 08:33 बजे तक है. अगर प्रदोष काल में पूजा करना चाहते हैं तो 06:33 बजे से रात 08:51 बजे तक कर सकते हैं.

पढ़ें हरतालिका तीज की कथा…

कथा के अऩुसार माता पार्वती ने भगवान शिव के लिए कठोर तपस्या की. दरअसल, मां पार्वती का बचपन से ही माता पार्वती का भगवान शिव को लेकर अटूट प्रेम था. माता पार्वती अपने कई जन्मों से भगवान शिव को पति के रूप में पाना चाहती थी. इसके लिए उन्होंने हिमालय पर्वत के गंगा तट पर बचपन से ही कठोर तपस्या शुरू की. माता पार्वती ने इस तप में अन्न और जल का त्याग कर दिया था. खाने में वे मात्र सूखे पत्ते चबाया करती थीं. माता पार्वती की ऐसी हालत को देखकर उनके माता-पिता बहुत दुखी हो गए थे.

एक दिन देवऋषि नारद भगवान विष्णु की तरफ से पार्वती जी के विवाह के लिए प्रस्ताव लेकर उनके पिता के पास गए. माता पार्वती के माता और पिता को उनके इस प्रस्ताव से बहुत खुशी हुई. इसके बाद उन्होंने इस प्रस्ताव के बारे में मां पार्वती को सुनाया. माता पार्वती इश समाचार को पाकर बहुत दुखी हुईं, क्योंकि वो अपने मन में भगवान शिव को अपना पति मान चुकी थीं. माता पार्वती ने अपनी सखी को अपनी समस्या बताई. माता पार्वती ने यह शादी का प्रस्ताव ठुकरा दिया.

पार्वती जी ने अपनी एक सखी से कहा कि वह सिर्फ भोलेनाथ को ही पति के रूप में स्वीकार करेंगी. सखी की सलाह पर पार्वती जी ने घने वन में एक गुफा में भगवान शिव की अराधना की. भाद्रपद तृतीया शुक्ल के दिन हस्त नक्षत्र में पार्वती जी ने मिट्टी से शिवलिंग बनकर विधिवत पूजा की और रातभर जागरण किया. पार्वती जी के तप से खुश होकर भगवान शिव ने माता पार्वती को पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया था.

कहा जाता है कि जिस कठोर कपस्या से माता पार्वती ने भगवान शिव को पाया, उसी तरह इस व्रत को करने वाली सभी महिलाओं के सुहाग की उम्र लंबी हो और उनका वैवाहिक जीवन खुशहाल रहे। माना जाता है की जो इस व्रत को पूरे विधि-विधान और श्रद्धापूर्वक व्रत करती है, उन्हें इच्छानुसार वर की प्राप्ति होती है.

इस लेख में दी गई जानकारियों पर हम यह दावा नहीं करते कि ये पूर्णतया सत्य एवं सटीक हैं. इन्हें अपनाने से पहले संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें.

Leave A Reply

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. Accept Read More