ग्रेस मार्क्स प्रणाली निजी विद्यालयों के हित में

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दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश के बाद केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) के 12वीं कक्षा के नतीजे रविवार को मूल्यांकन की ग्रेस मार्क्‍स पद्धति के तहत घोषित किए जा रहे हैं। लेकिन ज्यादा संभावना है कि अब अगले सत्र से प्रश्न-पत्र मूल्यांकन प्रणाली से ग्रेस मार्क्‍स गायब हो जाएंगे।

सरकार के नीतिगत निर्णय और न्यायपालिका के न्यायपूर्ण फैसले के बीच यदि किसी को कुछ फर्क पड़ा है तो वे विद्यार्थी हैं। हालांकि न्यायालय के फैसले से उन्हें राहत मिली है, लेकिन अब आने वाले समय में विद्यार्थियों को 15 प्रतिशत अतिरिक्त मेहनत की जरूरत होगी।

वाजिब सवाल यह उठता है कि कोई सरकार ग्रेस मार्क्‍स व्यवस्था बनाती है, तो कोई उसे खत्म कर देती है, और इस नीतिगत बदलावों का नफा-नुकसान विद्यार्थियों को सहना पड़ता है।

दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर, शिक्षाविद अजय तिवारी सरकार के इस फौरी निर्णय को अनुचित ठहराते हैं। उन्होंने कहा, “परीक्षा खत्म होने के बाद यह तय नहीं किया जा सकता कि हम किसे पास करेंगे, किस तरह पास करेंगे और क्या करेंगे, क्या नहीं करेंगे। जैसा कि उच्च न्यायालय ने भी कहा है।”

उल्लेखनीय है कि सीबीएसई ने एक अहम फैसले के तहत मॉडरेशन यानी ग्रेस मार्क्‍स नीति को खत्म करने की घोषणा की थी। यह घोषणा ऐसे समय में की गई, जब 12वीं के बच्चे अपने परिणाम का इंतजार कर रहे थे। फिर क्या बच्चों से लेकर अभिभावकों तक की नींद उड़ गई। बच्चों के मन-मस्तिष्क पर होने वाले कुप्रभावों को लेकर बहसें शुरू हो गईं। मामला न्यायालय पहुंच गया, और न्यायालय ने पुरानी पद्धति बरकरार रखी।

दिल्ली विश्विद्यालय के पूर्व प्रोफेसर, शिक्षाविद डॉ. मुरली मनोहर प्रसाद सिंह परिस्थिति के अनुरूप ग्रेस मार्क्‍स देने की बात करते हैं। उन्होंने कहा, “यदि सवाल सिलेबस से बाहर का है, या कठिन है तब तो ग्रेस मार्क्‍स होना चाहिए, लेकिन अगर ऐसा नहीं है तो ग्रेस मार्क्‍स नहीं होना चाहिए। मैं बिना कारण के ग्रेस मार्क्‍स के पक्ष में नहीं हूं। अगर कोई 1-2 नंबर से फेल हो रहा है तो उसे पास करने के लिए ग्रेस मार्क्‍स जरूर दिया जाना चाहिए।”

हालांकि वह इस बदलाव को समस्या का अंत नहीं मानते। उन्होंने कहा, “इसे हटाने से समस्या का अंत नहीं होगा। पढ़ाई, विचार अच्छे हों, बच्चे मेहनत करें, उनकी प्रोग्रेस क्या है, यह सब भी देखा जाना आवश्यक है।”

लेकिन दिल्ली विद्यविद्यालय की प्रोफेसर डॉ.रश्मि शर्मा का मानना है कि यदि बहुत आवश्यक न हो तो किसी व्यवस्था में बदलाव नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा, “यदि बदलाव जरूरी है तो इस पर विद्यार्थियों और अभिभावकों से भी विचार-विमर्श किया जाना चाहिए।”

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