डेढ़ करोड़ की काली कमाई, एसएसपी साहब को भनक भी नहीं
देश के किसी भी कोने में अपराध छोटा हो या बड़ा। हर अपराध की ‘पड़ताल’ कोतवाल, थानेदार, दारोगा, हवलदार-सिपाही से ही कराई जाती है। देश की राजधानी से सटे हाईटेक शहर गाजियाबाद में मगर इसका एकदम उलट ही देखने को मिला। इस हैरतंगेज पड़ताल में ‘पड़तालियों’ की अपनी भीड़ ही आरोपी निकली। एक ढ़ूंढ़ने निकले, तो बतौर ‘आरोपी’ हाथ आए तीन-तीन और चार-चार पुलिस (police) के वे जवान जो, खुद भी कभी ‘पड़ताली’ हुआ करते थे। जिनके विश्वास पर रात को घरों में चैन से सोती थी पब्लिक। जिनके कंधों पर जिम्मेदारी थी कानून के हिफाजत की।
बस इस नायाब ‘पड़ताल’ में फर्क यह था कि, इस बार पड़तालियों को शिकंजे (जाल में) में घेरने वाला उनका ही आला अफसर यानि शहर का एसएसपी निकला था ‘पड़ताल’ पर। ‘पड़ताल’ की इस कड़ी में हम बेबाक बात कर रहे हैं, उस सनसनीखेज संगठित गिरोह के भंडाफोड़ की, यूपी पुलिस महानिदेशक कार्यालय से लेकर राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के आसपास के इलाकों में मौजूद थाने-थाने चौकी-चौकी में जिसकी तपिश इस जून में लू के थपेड़ों से कहीं ज्यादा ‘गरम’ महसूस हो रही है।
मई 2018 की वो एक अनजान टेलीफोन-कॉल
मई महीने के शुरुआती दिनों में एक शाम गाजियाबाद जिला कप्तान को किसी ने फोन किया और बताया, ‘तुम्हारे जिले के तीन थानों कवि नगर, मसूरी और विजय नगर की पुलिस लोहे के सरिया की लूटपाट के काले-कारोबार में शामिल संगठित गिरोह को पालने-पोसने में दिन-रात एक किए है। कोतवाल, थानेदार, हवलदार-मुंशी-सिपाही। सब के सब ‘पुलिसिंग’ छोड़कर लोहा-सरिया लूटने-लुटवाने के कारोबार को बढ़ाने-बढ़वाने में खून-पसीना दिन-रात एक किये हुए हैं।
क्या पुलिस का यही काम है!’ पहली नज़र में फोन कॉल किसी सिरफिरे की हरकत लगी। लिहाजा पुष्टि के लिए कप्तान वैभव कृष्ण (वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक) ने उस नंबर पर कॉल-बैक कराई। पता चला कि फोन एक पीसीओ से किया गया था। फोन पीसीओ से किया जाना इस बात का संकेत लगा कि, सूचना में दम है, लेकिन खबर देने वाला सामने आना नहीं चाहता होगा।
खाकी की आबरु बचाने को कप्तान ही बने जब ‘पड़ताली’
बात जिला और सूबे (उत्तर प्रदेश पुलिस) की पुलिस की इज्जत-बे-इज्जती की थी। लिहाजा बिना किसी को कुछ बताए एसएसपी ने बहैसियत ‘पड़ताली’ इस काले-कारोबार की ‘पड़ताल’ का बोझ खुद के कंधों पर ही रखने की सोची। कुछ विश्वासपात्र सिपहसालारों के साथ। यह विश्वासपात्र 4 टीमों में बांटे गए थे।
पहली टीम में इंदिरापुरम् थाना प्रभारी इंस्पेक्टर सचिन मलिक मय सब-इंस्पेक्टर भूपेंद्र सिंह, पारस मलिक, देवेंद्र सिंह (ट्रेनी सब-इंस्पेक्टर), हवलदार अमर सिंह, सिपाही लखनवीर, रविंद्र कुमार, सिंधुल चौधरी, विनय कुमार, राहुल अली, कौशलेंद्र, पुष्पेंद्र कुमार, रामप्रकाश. दूसरी टीम में मोदी नगर के थाना प्रभारी इंस्पेक्टर गजेंद्र पाल सिंह, सब-इंस्पेक्टर वी. सी. शर्मा, अनिल कुमार और सिपाही उमेश चंद्र, प्रवीण कुमार, संतोष कुमार, विमल शर्मा, सुधीर कुमार, ओमप्रकाश, हरिशंकर, दौलत राम, संदीप कुमार।
तीसरी टीम में थाना लिंक रोड एसएचओ इंस्पेक्टर जय प्रकाश चौबे, थाना खोड़ा इंचार्ज ओ.पी. सिंह, थाना सिहानी गेट प्रभारी विनोद कुमार पांडेय के साथ सीनियर सब-इंस्पेक्टर (एसएसआई) अरुण कुमार मिश्रा, सब-इंस्पेक्टर अजय वर्मा, सिपाही पुष्पेंद्र कुमार, आवेंद्र कुमार, धीरज कुमार, प्रमोद कुमार, अमरीश कुमार। चौथी टीम में थाना मुराद नगर प्रभारी इंस्पेक्टर रणवीर सिंह, सब-इंस्पेक्टर सोहन पाल सिंह, यशपाल सिंह, हवलदार प्रमोद शर्मा, सिपाही (ड्राइवर) धर्मवीर, सिपाही संजीव कुमार, करनवीर और सिपाही संजीव कुमार (ड्राइवर) शामिल किए गए।
आगे कुंआ-पीछे खाई देखकर चकरा गईं ‘पड़ताली’ टीमें
चारों पड़ताली टीमों का नेतृत्व चूंकि एसएसपी वैभव कृष्ण खुद कर रहे थे। अपराधियों के संगठित गिरोह को संचालित कराने में गाजियाबाद पुलिस कप्तान (एसएसपी गाजियाबाद) के ही तमाम आला-मातहत (इंस्पेक्टर से लेकर सिपाही तक) शिकंजे में फंसकर ठिकाने लगने वाले थे। ऐसे में कप्तान द्वारा टीम में शामिल विश्वासपात्र मातहतों में से अधिकांश की मनोदशा अजीब-ओ-गरीब थी।
उन्हें आगे कुआं और पीछे खाई नजर आ रही थी। कप्तान साहब जिस मामले के पड़ताली हों, उसकी टीम के किसी सदस्य की गलती का मतलब बिना आगे-पीछे देखे-समझे सीधे सजा तय थी। मरता क्या नहीं करता। एक तरफ कप्तान का आदेश और सामने निशाने पर थे अपने ही हम-पेशा-हम-प्याला (पुलिसकर्मी). एक तरफ कप्तान का हुक्म।
दूसरी ओर शिकार के रूप में सामने थे अपराधियों-जालसाजों के मददगार वे मास्टर-माइंड पुलिस वाले ‘उस्ताद’ जो, दौलत की चाहत में वर्दी की इज्जत को नेशनल हाईवे-24 (अब राष्ट्रीय राजमार्ग-9 दिल्ली से डासना) पर सर-ए-राह तार-तार करवाने का काला-कारोबार करने में दिन-रात पसीना बहा रहे थे। पुलिस और पब्लिक की ‘चाकरी’ और ‘विश्वास’ को सरकारी पुलिसिया बूटों की एडियों के नीचे रौंद कर।
कप्तान के जाल में फंसने से अपने ‘कमाऊ-पूत’ भी न बचे
अमूमन पुलिस वाले जब, पुलिस वाले को ही घेरने की जुगत भिड़ाते हैं, तो अक्सर आरोपी पुलिसकर्मी साफ बच निकलते हैं। इस बार मगर ऐसा नहीं हुआ। बकौल इस सनसनीखेज ‘पड़ताल’ के पड़ताली और गाजियाबाद जिले के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक वैभव कृष्ण, ‘शिकायत गंभीर थी। आरोपियों में हमारे तीन थानों के (विजय नगर, मसूरी और कवि नगर) थानाध्यक्ष और उनके मातहत थानेदार-दारोगा-हवलदार-सिपाहियों की लंबी फेहरिस्त शामिल बताई जा रही थी।
वो भी लोहे-सरिया के उस काले कारोबार में जिसमें, सुंदर भाटी जैसा खतरनाक गैंगस्टर और कुख्यात अपराधी अनिल दुजाना जैसे नाम शामिल हों। बस इसीलिए सतर्कता ज्यादा बरतनी पड़ी कि, कहीं ऐसा न हो इस घिनौने काम में शामिल हमारे अपने ही न बच जाएं। जो महकमे (गाजियाबाद जिला पुलिस-यूपी पुलिस और खाकी वर्दी) के लिए कलंक साबित हो रहे हैं। यही वजह थी जो, टीम में शामिल सिपाही तक को मैंने समझा दिया था कि अनजाने में भी गलती की ‘माफी’ नहीं सजा मिलेगी।
बस मेरी यह सख्ती कहिए या फिर हिदायत. इस ‘पड़ताल’ के आखिर तक काम आई। परिणाम आपके और पब्लिक के सामने है। कवि-नगर, मसूरी और विजय नगर थानाध्यक्षों और उनके कुछ मातहतों के कथित संरक्षण में चल रहे ‘ऊपरी-कमाई या उगाही’ के संरक्षित गिरोह को तबाह कर दिया मैंने एक ही रात में।’
‘पड़ताल’ जो यूपी पुलिस के लिए नजीर बन गई
जांच चूंकि अपने ही महकमे के कुछ कथित रूप से कमाऊ इंस्पेक्टरों, दारोगा-थानेदारों-हवलदार-सिपाहियों के खिलाफ थी। लिहाजा गाजियाबाद के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक ने इस पड़ताल की लगाम खुद के हाथ में रखने में ही पुलिस महकमे की खैरियत समझी। करीब दो सप्ताह की दिन-रात की हाड़तोड़ मशक्कत का नतीजा सामने आया। पुलिस वालों के साथ मिलकर जबरन उगाही, वसूली-सरिया लूट के काले कारोबार में शामिल 43 बदमाश (पुलिस वाला कोई नहीं गिरफ्तार किया गया!) गिरफ्तार किए गए।
बकौल टीम के पड़ताली अफसर एसएसपी गाजियाबाद वैभव कृष्ण, ‘इतनी बड़ी धरपकड़ के लिए मैंने कवि नगर, विजय नगर और मसूरी थाने के कई संभावित और संदिग्ध इलाकों की अपनी चारों टीमों से पूरी रात के लिए घिरवा दिया।
इन तीनों थानों के इंचार्जों को इसकी कान-ओ-कान हवा नहीं लगने दी। इस बीच मेरी टीमों ने कुख्यात सुंदर भाटी, रवि कांणा, अवध गैंग और अन्य गिरोह के करीब 43 संदिग्धों को एक ही रात में दबोच लिया। इनमें प्रमुख था सतीश यादव। लूटा गया यह सरिया सतीश यादव अपने गोदाम में रखता था। इसके अलावा उसने कई और गोदाम भी किराए पर ले रखे थे। सूत्र बताते हैं कि, पुलिस वालों के बाद लूटपाट के इस संगठित गिरोह को पालने-पोसने में अगर सबसे बड़ा सहयोग किसी का था तो वह सतीश यादव ही था।
कप्तान के नाम से मचा कोहराम, अपने ही कांप रहे हैं
पूरी रात चली पड़ताल और छापेमारी के दौरान पुलिस टीमों ने 16 ट्रक, 393 टन और 275 किलोग्राम लूटी गई सरिया (गोदामों में छिपाकर रखी गई थी), करीब 50 हजार रुपए नकद, 24 मोबाइल फोन, 6 रिमोट, 2 इलैक्ट्रॉनिक चिप जब्त कीं।
पड़ताली और एसएसपी गाजियाबाद वैभव कृष्ण इस हैरतंगेज पड़ताल के बारे में आगे बताते हैं, ‘रोजाना यह गिरोह करीब पांच सौ ट्रकों से सरिया लूटता था। हर ट्रक से 50 किलोग्राम से लेकर एक कुंटल सरिया लूटा जाता था। इस हिसाब-किताब से रोजाना इस खेल में करीब डेढ़ करोड़ का सरिया लुट रहा था। लुटा सरिया सीधे गोदामों में छिपा दिया जाता।
वहां से लुटेरे (गिरोह के सदस्य) लूट में हासिल सरिया ढाई से 3000 हजार रुपए कुंटल की कीमत से स्थानीय कुछ लोहा व्यापारियों को बेच देते थे। लोहा व्यापारी लुटे सरिए को आगे बाजार भाव या उससे कुछ कम पर 4500 रुपए कुंटल की दर से खुले बाजार में बेच कर एक हजार से डेढ़ हजार रुपए प्रति कुंटल की दर से मुनाफाखोरी कर रहा था. इस पूरे खेल में कवि नगर, विजय नगर और मसूरी थाना पुलिस की मिलीभगत सामने आई है। कवि नगर और विजय नगर थाना प्रभारी इंस्पेक्टरों और एक चौकी इंचार्ज को लाइन-हाजिर कर दिया गया है।’
काले-कारोबार में ‘धर्म-कांटों’ का ‘अधर्म’
हर रोज हाईवे पर हो रहे करोड़ों के वारे-न्यारे के इस काले कारोबार में ट्रकों का वजन जिन धर्मकांटों पर किया जा रहा था, वे भी इस मामले के भंडाफोड़ के बाद ‘धर्म-संकट’ में फंस गए हैं। बकौल एसएसपी गाजियाबाद वैभव कृष्ण, ‘इतना बड़ा संगठित गिरोह बिना धर्मकांटों की मदद के यह काला कारोबार कर ही नहीं सकता है।
क्योंकि हर ट्रक चालक माल-ट्रक का वजन धर्मकांटों पर ही कराता है. ऐसे में कुछ धर्मकांटे इस गिरोह के साथ मिलकर कुछ न कुछ ‘अधर्म’ जरुर कर रहे होंगे।’ ऐसे कितने और कौन-कौन से धर्मकांटे हैं? किन-किन धर्मकांटों को बंद करा दिया गया? किन किन धर्मकांटों पर पड़ताल पूरी होने तक के लिए सील लगा दी गयी? धर्मकाँटों पर दिन-रात ‘अधर्म’ का घिनौना खेल खेलने वाले मालिकों में से कितने गिरफ्तार हुए? आदि-आदि के बारे में फिलहाल ‘पड़ताली’ एसएसपी के पास कोई ठोस जबाब-जानकारी नहीं थी।
जेल में बंद सुंदर भाटी और अनिल दुजाना से पूछताछ!
गाजियाबाद पुलिस की मिलीभगत से चल रहे लोहा लूट के इस काले कारोबार में पुलिस अब जेल में बंद पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुख्यात बदमाश सुंदर भाटी, अनिल दुजाना और उनके गैंगस्टरों से भी पूछताछ करने की तैयारी में है। आशंका है कि, यह गिरोह सरिया भरकर आने वाले ट्रक ड्राईवरों को जान से मारने की धमकी देकर भी लूटपाट करवा रहे थे।
पुलिस इस बात से भी इंकार नहीं कर रही है कि, जेल में बंद बदमाश सरिया के काले कारोबार से मिली मोटी रकम को कही और किसी आपराधिक धंधे या फिर हथियारों की खरीद-फरोख्त में इस्तेमाल न कर रहे हों। फिलहाल इस मामले में थाना विजय नगर में ही एफआईआर नंबर 656/18 पर आईपीसी की धारा 420/386/411/413/226/34 के तहत आपराधिक मामला दर्ज करके पड़ताल जारी रखी गई है।
‘छेदों’ में मौजूद सवाल चीख रहे हैं ‘पड़ताल’ अभी अधूरी है!
गाजियाबाद जिला और यूपी पुलिस में भले ही इस पड़ताल को लेकर कोहराम मचा हो। कोहराम मचाने से कुछ हासिल नहीं होता। ठोस और सही पड़ताल का अगर जिक्र किया जाए, तो इस पड़ताल में तमाम सवाल पैदा होते हैं। मसलन जब 43 लोगों को गिरफ्तार करके जेल भेज दिया गया, तो फिर विजय नगर, कवि नगर, मसूरी थानों के पुलिस इंस्पेक्टरों (थानाध्यक्षों) को भी गिरफ्तार करके बाकी आरोपियों को साथ ही जेल क्यों नहीं भेजा गया? कानून के रखवाले, कानून के बारे में बदमाशों से ज्यादा जानकारी रखते हैं।
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पुलिस वालों को पता था कि वे, संगठित गिरोह चलवाकर खाकी वर्दी और कानून को जूतों के नीचे रौंद रहे हैं। तो फिर ‘जांच अभी जारी है’ के तकिया-कलाम का सिराहना लगाकर आरोपी पुलिस वालों को ‘बिगड़ी’ बात संभाल लेने का मौका आखिर किसकी शह पर और क्यों दिया गया है? दूसरे जो मोटी आसामियां (लोहा व्यापारी) चोरी-लूट के सरिया को खरीदकर बाजार में बेच रही थीं।
उनके खिलाफ नामजद एफआईआर दर्ज करके आखिर उन्हें भी गिरफ्तार करके जेल क्यों नहीं भेजा गया? उत्तर प्रदेश पुलिस और राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की पब्लिक में ‘कोहराम’ मचा देने वाली इस पड़ताल में मौजूद छेदों से आ रहे ऐसे ही और भी तमाम सवाल कोहराम मचाने के बजाये, गुपचुप मगर साफ-साफ इशारा कर रहे हैं कि, पड़ताल अभी अधूरी है।
‘पड़ताल’ के पड़ताली अफसर यह हैं वैभव कृष्ण
वैभव कृष्ण 2010 बैच के यूपी कैडर के आईपीएस हैं। पेशेवर डॉक्टर के. के. शर्मा के पुत्र वैभव कृष्ण का जन्म 12 दिसंबर 1983 को बड़ौत, जिला बागपत, उत्तर प्रदेश में हुआ. कुशाग्र बुद्धि वैभव ने कालांतर में आईआईटी रुड़की से बी.टेक किया। उसके बाद यूपीएससी सिविल सर्विसेज की तैयारी में जुट गए। आईपीएस में 86वां रैंक हासिल करने वाले वैभव को अपना गृह-राज्य यूपी कैडर भी मिल गया। पहली पोस्टिंग मिली गाजीपुर जिले में पुलिस अधीक्षक पद पर।
2016 में बुलंदशहर में हुए सनसनीखेज हाईवे गैंग-रेप कांड में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने एसएसपी वैभव कृष्ण को सस्पेंड करके यूपी पुलिस महकमे को हिला दिया था। फिलहाल गाजियाबाद में एसएसपी की चंद दिन की नौकरी में ही अपने की कई थानों के इंचार्जों के खिलाफ ‘पड़ताल’ का मोर्चा खोलकर अब वैभव कृष्ण दुबारा महकमे में चर्चा में हैं। गुस्से से आग-बबूला सामने मौजूद इंसान को मीठा बोलकर शांत करने की उनकी कला पब्लिक और पुलिस दोनो में चर्चित है।