जेनेरिक दवा बगैर मेडिक्लेम नहीं?
यह चिकित्सा जगत में भूचाल लाने वाली खबर है। यह खबर जेनेरिक दवाइयों को लेकर है। कहा गया है कि या तो जेनेरिक दवाएं लें या फिर भूल जाएं मेडिक्लेम। यह बवाल तब शुरू हुआ जब मैक्स बूपा हेल्थ इंश्योरेंस कंपनी ने इंडियन मेडिकल असोसिएशन (आईएमए) के डॉक्टरों को हाल ही में जेनेरिक दवाइयों को लेकर एक सर्कुलर जारी किया। आईएमए ने कहा कि उनके लिए इसे मानना असंभव है क्योंकि कई दवाएं खास तौर पर वे जो गंभीर बीमारी जैसे कैंसर में जीवन रक्षक मानी जाती हैं, केवल ब्रैंड्स की ही उपलब्ध होती हैं।
आपको बता दें कि हाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने दो दिन के गुजरात दौरे के दौरान सूरत में किरण मल्टी सुपर स्पेशिएलिटी अस्पताल व रिसर्च सेंटर का उद्घाटन किया था और इस दौरान देश को सस्ता इलाज मुहैया कराने का दावा किया था, साथ ही जेनेरिक दवाइयों के इस्तेमाल पर भी काफी जोर दिया था। पहले यह जानना जरूरी है कि जेनेरिक दवाएं होती क्या हैं? चिकित्सकों का कहना है कि किसी एक बीमारी के इलाज के लिए तमाम तरह की रिसर्च और स्टडी के बाद एक रसायन (साल्ट) तैयार किया जाता है जिसे आसानी से उपलब्ध करवाने के लिए दवा की शक्ल दे दी जाती है। इस साल्ट को हर कंपनी अलग-अलग नामों से बेचती है। कोई इसे महंगे दामों में बेचती है तो कोई सस्ते। लेकिन इस साल्ट का जेनेरिक नाम साल्ट के कंपोजिशन और बीमारी को ध्यान रखते हुए एक विशेष समिति द्वारा निर्धारित किया जाता है। किसी भी साल्ट का जेनेरिक नाम पूरी दुनिया में एक ही रहता है।
विशेषज्ञों का कहना है कि आमतौर पर डॉक्टर्स महंगी दवाएं लिखते हैं इससे ब्रांडेड दवा कंपनियां खूब मुनाफा कमाती हैं लेकिन क्या आप जानते हैं आप डॉक्टर की लिखी सस्ती दवाएं भी खरीद सकते हैं। जी हां, आपका डॉक्टर आपको जो दवा लिखकर देता है उसी साल्ट की जेनेरिक दवा आपको बहुत सस्ते में मिल सकती है। महंगी दवा और उसी साल्ट की जेनेरिक दवा की कीमत में कम से कम पांच से दस गुना का अंतर होता है। कई बार जेनरिक दवाओं और ब्रांडेड दवाओं की कीमतों में 90 पर्सेंट तक का भी फर्क होता है।
यहां यह बताना जरूरी भी है कि जेनेरिक दवाएं बिना किसी पेटेंट के बनाई और सरकुलेट की जाती हैं। हां, जेनेरिक दवा के फॉर्मुलेशन पर पेटेंट हो सकता है लेकिन उसके मैटिरियल पर पेटेंट नहीं किया जा सकता। इंटरनेशनल स्टैंडर्ड से बनी जेनेरिक दवाइयों की क्वालिटी ब्रांडेड दवाओं से कम नहीं होती। न ही इनका असर कुछ कम होता है। जेनेरिक दवाओं की डोज, उनके साइड-इफेक्ट्स सभी कुछ ब्रांडेड दवाओं जैसे ही होते हैं।
बवाल तब मचा जब मैक्स बूपा ने अपने नोटिस में कहा, ‘इस नोटिफिकेशन (मेडिकल काउंसिल आॅफ इंडिया) को देखते हुए मैक्स बूपा आपके हॉस्पिटल्स द्वारा किए गए सभी मेडिक्लेम (जेनेरिक दवाओं के छोड़कर) रोक देगा।’ इस सर्कुलर को 5 मई से प्रभावी होना था। 21 अप्रैल 2017 को देश की सर्वोच्च मेडिकल रेग्युलेटर (मेडिकल काउंसिल आॅफ इंडिया) एमसीआई ने एक सर्कुलर जारी किया था जिसके मुताबिक, ‘सभी फिजिशियन स्पष्ट रूप से और कैपिटल लेटर्स में जेनेरिक दवाएं लिखेंगे साथ ही यह भी सुनिश्चित करेंगे कि उसका नुस्खा और उपयोग भी लिखा हो।’
डॉक्टरों का कहना है कि केवल जेनेरिक दवाएं लिखना असंभव है। उचित दवा और ब्रैंड चुनने की आजादी डॉक्टर के पास है न कि किसी मेडिकल स्टोर और इंश्योरेंश कंपनी के पास।
दरअसल यही एक बिंदु है जहां सवाल खड़े होते हैं। आमतौर पर डॉक्टर्स महंगी दवाएं लिखते हैं इससे ब्रांडेड दवा कंपनियां खूब मुनाफा कमाती हैं। सरकार इसे ही रोकना चाहती है ताकि सभी को समान रूप से मेडिकल सुविधाएं मिल सकें।
Also read : मामा को मिली ‘नदी नायक’ की उपाधि
जहां पेंटेट ब्रांडेड दवाओं की कीमत कंपनियां खुद तय करती हैं वहीं जेनेरिक दवाओं की कीमत को निर्धारित करने के लिए सरकार का हस्तक्षेप होता है। जेनेरिक दवाओं की मनमानी कीमत निर्धारित नहीं की जा सकती। वर्ल्ड हेल्थ आर्गनाइजेशन के मुताबिक, डॉक्टर्स अगर मरीजों को जेनेरिक दवाएं प्रिस्क्राइब करें तो विकसित देशों में स्वास्थ्य खर्च 70 पर्सेंट और विकासशील देशों में और भी अधिक कम हो सकता है।
जानकार मानते हैं कि कंपनियां बेहिसाब मुनाफा कमाना चाहती हैं। तो क्या हम और आप इस मुद्दे पर सरकार के साथ खड़े नहीं हो सकते। जेनेरिक दवाओं के मुद्दे पर सरकार का साथ हम-आप ही दे सकते हैं।
(अन्य खबरों के लिए हमें फेसबुक पर ज्वॉइन करें। आप हमें ट्विटर पर भी फॉलो कर सकते हैं।)