गंगा दशहरा आज, जानें पूजन विधि और शुभ मुहूर्त..

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मां गंगा शुक्ल दशमी के दिन हस्त नक्षत्र में धरती पर आई थीं, यही वजह है कि, आज के दिन गंगा दशहरा का पर्व मनाया जाता है. गंगा दशहरा पर दान और स्नान का अधिक महत्वपूर्ण बताया गया है. इस साल गंगा दशहरा का पर्व 16 जून यानी आज मनाया जा रहा है. हिंदू धर्म में गंगा स्नान करने से लगभग दस हजार पापों से छुटकारा मिलता है. इस दिन विष्णुपदी, पुण्यसलिला मां गंगा का जन्म हुआ, इसलिए इसे “गंगा दशहरा” या जेठ का दशहरा भी कहते हैं.

गंगाजल के स्पर्श से स्वर्ग मिलता है, जब मां गंगा ज्येष्ठ शुक्ल की दशमी को पहाड़ों से उतरकर ब्रह्मकुंड में आई, तो इस दिन को गंगा दशहरा कहते हैं. माना जाता है कि, गंगा मां के अवतरण दिवस पर गंगा जी में स्नान करने के जातक का कल्याण होता है, वही गंगा दशहरा पर स्नान और दान का खास महत्व बताया गया है.

शुभ मुहूर्त

16 जून को शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि आज रात 2 बजकर 32 मिनट से शुरू हुई है और कल सुबह 4 बजकर 34 मिनट पर समाप्त होगी. साथ ही आज पूजन 7 बजकर 8 मिनट से 10 बजकर 37 मिनट तक चलेगा.

स्नान दान का शुभ मुहूर्त

ज्योतिषियों का कहना है कि, इस वर्ष गंगा दशहरा पर तीन शुभ संयोग बन रहे हैं. गंगा दशहरा पर सर्वार्थ सिद्धि योग, अमृत सिद्धि योग और रवि योग बन रहे हैं. रवि योग इस दिन प्रातःकाल शुरू होगा. इस शुभ समय में पूजा-पाठ करना और मांगलिक कार्य करना बहुत शुभ माना जाता है. हस्त नक्षत्र में ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को गंगा धरती पर उतरी थी. हस्त नक्षत्र इस बार 15 जून यानी कल सुबह 8 बजकर 14 मिनट से शुरू हो गया है और 16 जून यानी आज सुबह 11 बजकर 13 मिनट पर समाप्त हो जाएगा.

पूजन विधि

पवित्र गंगा नदी में स्नान करना गंगा दशहरा का विधान है, अगर आप गंगा के तट पर नहीं हो सकते तो, मां गंगा का नाम लेकर आसपास की नदी या तालाब में डुबकी लगा सकते हैं. डुबकी लगाते समय, “ऊँ नमः शिवायै नारायण्यै दशहरायै गंगायै नमः” का उच्चारण करना अनिवार्य है. आप घर में नहाने के पानी में गंगाजल भी मिलाकर स्नान कर सकते हैं अगर आप चाहें. गंगा दशहरा के दिन दान करने का बहुत महत्व है. इस दिन दान-धर्म करना बहुत शुभ है. इस दिन दस चीजें देना शुभ है, पूजन सामग्री में भी दस चीजें शामिल करें.

गंगा दशहरा पर कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार, मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के पूर्वज भगीरथ अयोध्या में एक समय पर राजा हुआ करते थे. राजा भागीरथ को अपने पूर्वजों को बचाने के लिए गंगा जल में उनका तर्पण करने की आवश्यकता थी. उस समय गंगा केवल स्वर्गीय लोगों तक थीं. गंगा को धरती पर लाने के लिए भागीरथ के पिता और उनके दादा ने कई सालों तक घोर तपस्या की, लेकिन वे सफल नहीं हुए. फिर राजा भागीरथ ने हिमालय पर जाकर कठोर तपस्या शुरू कर दी.

मां गंगा राजा भागीरथ की घोर तपस्या से प्रसन्न होकर धरती पर आने को तैयार हो गई, लेकिन उस समय सबसे बड़ी समस्या यह थी कि गंगा का वेग इतना तेज था कि धरती को बर्बाद कर सकता था और सिर्फ महादेव यानी शिव ही गंगा को नियंत्रित कर सकते थे. यह जानकर भागीरथ ने भगवान शिव की पूजा करना शुरू कर दिया। तपस्या के दौरान वे लगभग एक वर्ष तक एक पैर के अंगूठे पर खड़े रहकर बिना कुछ खाए या पीए महादेव की आराधना करते रहे. इससे भगवान शिव बहुत प्रसन्न हो गए और गंगा को धरती पर लाने का उनका अनुरोध स्वीकार कर लिया.

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इसके बाद ब्रह्मा ने अपने कमंडल से गंगा प्रवाहित की और भगवान शिव ने उसे अपनी जटाओं में भर लिया. गंगा लगभग 32 दिनों तक शिव की जटाओं में विचरण करती रही. महादेव ने शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को अपनी एक जटा से गंगा को धरती पर अवतरित किया. हिमालय की चोटियों से गंगा नदी के लिए भागीरथ ने मार्ग बनाया। राजा भागीरथ ने गंगाजल से अपने पूर्वजों का तर्पण करके उन्हें मुक्ति दी.

 

 

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