Gandhi Jayanti Special : जानें कहां है ऐसा मंदिर जहां होती गांधी जी की पूजा, चढावे में चढ़ती ये चीजें..

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यूं तो मंदिर का जिक्र आते ही देवी – देवता का प्रतिमा ही आंखो के सामने साक्षत हो जाती है, लेकिन क्या आपने सुना या देखा किसी मंदिर में स्वतंत्रता सेनानी या क्रांतिकारी का मंदिर है, जहां उसकी पूजा होती है, तो आपको बता दें कि, धर्म और देशभक्ति का संगम देखना हो तो छत्तीसगढ़ के धमतरी के सटियारा आए। यह मंदिर छत्तीसगढ़ का ही नहीं, बल्कि शायद देश का इकलौता मंदिर है, जहां पर लोग देवी – देवताओं के साथ स्वतंत्रता संग्राम के नायक रहे महात्मा गांधी की पूजा की जाती है।

गांधी जयंती पर होती है विशेष पूजा

 

छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिला मुख्यालय से करीब 40 किमी दूर चंद्रपुर से आगे गुड़ेली से लगे हुए गांव पर हर साल विशेष चहल-पहल रहती है। वैसे तो 2 अक्टूबर के दिन पूरे देश में गांधी जी का जन्म दिन मनाता है, लेकिन सारंगढ़ अंचल का लालधुर्वा छत्तीसगढ़ का इकलौता गांव है, जहां महात्मा गांधी की याद में एक देशभक्त ने अपने मिट्टी के घर में गांधी का मंदिर बनाया है और हर रोज गांधी जी की पूजा अर्चना की जाती है। देश में जब आजादी की जंग छिड़ी हुई थी, तभी सारंगढ़ अंचल के लालाधुर्वा निवासी देशभक्त क्रांतिकारी सैनिक बोर्रा चौहान ने भी हिस्सा लिया था। बोरा चौहान देशप्रेम से इस कदर ओतप्रोत थे कि भारत को आजादी दिलाने वाले राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की प्रतिमा को उन्होंने घर मे मन्दिर बनाकर स्थापित कर लिया।

70 सालों से की जाती है पूजा

करीब 70 सालों से नियमित गांधी जी को पूजने का सिलसिला चल रहा है। आज भी हर रोज सुबह शाम चौहान परिवार में गांधी जी भगवान की तरह पूजे जाते हैं, इसके अलावा 2 अक्टूबर को गांधी जी की विशेष पूजा-अचर्ना की जाती है। बोर्रा चौहान की मृत्यु के बाद से लगातार उनके परिवार के सदस्यों द्वारा इस परंपरा को जीवित रखा गया है। पूरन चौहान बताते हैं कि वे अपने पूवर्जों से विरासत में मिली हुई इस परंपरा को कभी खत्म होने नहीं देंगे और हर रोज गांधी मंदिर में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की प्रतिमा को पूजते रहेंगे।

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इस तरह की है पूजा पद्धति

बताया जाता है कि, समिति से जुडे़ लोगों के गुरूदेव दुखू ठाकुर महात्मा गांधी के परमभक्त थे और वह गांधी विचारों को आगे बढ़ाने गंगरेल के डूबान में गांधी मंदिर की स्थापना किया था। उन्होने अपने साथ अलग अलग स्थानों से कई परिवारों को भी जोड़ा और गांधी जी के विचारों को अपनाकर काम करने सहित उन्हे आगे बढ़ाने की अहवान किया। गंगरेल बांध बनने के मंदिर डूब गया, जिसे बाद में नदी किनारे फिर से बनाया गया। तब से लेकर आज तक गुरूदेव और गांधी जी की पूजा की जा रही है। इसके अलावा यहां भारत माता की भी पूजा की जाती है। हालांकि इनकी पूजा पद्धति अन्य जगहों से अलग है और मंदिर समिति के लोग चावल के आटे का इस्तेमाल करते है। वे मानते है कि यहां पूजा करने से दुख संताप दूर होते है।

 

 

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