G-7 ग्रुप: न रूस है, न चीन, जबकि इस बार भारत को बुलाया गया था
बीते 24 से 26 अगस्त को फ्रांस देश में G-7 की समिट का आयोजन किया गया था। G-7 ग्रुप में दुनिया के कुछ ताकतवर और तथाकथित मुखिया देश मौजूद हैं। गौरतलब है कि, इस साल G-7 समिट कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी फ्रांस पहुंचे थे। ज्ञात हो कि, भारत G-7 समूह का सदस्य नहीं है। इसके बाद भी इस साल भारत को ख़ास न्यौता भेजा गया था।
इस बार भारत को क्यों बुलाया गया:
दरअसल, भारत को इस बार G-7 समिट में हिस्सा लेने के लिए बुलाये जाना कोई आश्चर्य की बात नहीं है। गौरतलब है कि, टाइम-टाइम पर G-7 में हिस्सा लेने के लिए ‘बाहरी’ देशों को न्योता दिया जाता है। कई सारे संगठनों को भी बुलाया जाता है। ज्ञात हो कि, भारत बड़ी अर्थव्यवस्था है। आबादी में दूसरे नंबर पर है। भारत का बाज़ार बहुत बड़ा है। इसके अलावा पर्यावरण से जुड़ी चिंताओं में भी भारत का सहयोग चाहिए। जियोपॉलिटिक्स भी एक बड़ी वजह होती है किसी देश को न्योता देने की। भारत को इस साल के सम्मेलन में आने का इनविटेशन फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रों ने दिया था। गौरतलब है कि, मैक्रों आर्थिक समानता की वकालत करते हैं। उनका कहना है कि, G-7 को इसपर ख़ास ध्यान देना चाहिए। इस बार भारत के अलावा उन्होंने साउथ अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया और चिले को भी बुलाया था।
आसान शब्दों में समझें क्या है G-7?:
G-7 का पूरा नाम ग्रुप ऑफ सेवन है। दुनिया के सात सबसे बड़े इंडस्ट्रियल देशों का संगठन है। ये देश, अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस, इटली, जापान और कनाडा है। इसमें पहले रूस भी शामिल था। तब इसे ग्रुप ऑफ 8 कहा जाता था। बाद में रूस ने क्रीमिया को यूक्रेन से छीनकर खु़द में मिला लिया था। जिससे बाकी देश नाराज़ हो गए थे। जिसके बाद उन्होंने साल 2014 में रूस को निकाल बाहर कर दिया था।
क्या है G-7 का इतिहास:
साल 1975 में छह देश जुटे थे- अमेरिका, ब्रिटेन, पश्चिमी जर्मनी, फ्रांस, जापान और इटली। तब कोल्ड वॉर का टाइम था। दुनिया में कैपिटलिस्ट और कम्युनिस्ट की लड़ाई छिड़ी हुई थी। ये छह देश कैपिटलिज़म वाले थे। जिन्होंने अपना ग्रुप बनाया और बही-खाते, कारखानों, पॉलिटिक्स और सुरक्षा पर बात करना तय हुआ। इनको देखकर फिर अगले साल, यानी 1976 में कनाडा भी साथ आ गया था। फिर 1991 में सोवियत संघ टूट गया। आधा-आधा बंटे दो जर्मनी (ईस्ट और वेस्ट) साथ मिलकर दोबारा पूरे हो गए। सोवियत टूटने के सातवें साल, यानी 1998 में रूस भी इस ग्रुप से जुड़ गया। इस तरह पहले G-6, फिर G-7 और फिर G-8 ग्रुप बनता गया।
आधिकारिक तौर पर सदस्य नहीं पर EU मेम्बर:
यूरोपीय महाद्वीप में कुल 44 देश हैं। इनमें से 28 देशों का अपना एक ग्रुप है। जिसे यूरोपियन यूनियन (EU) कहा जाता है। गौरतलब है कि, EU आधिकारिक तौर पर मेम्बर न होते हुए भी G-7 का हिस्सा है।
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