सर्वधर्म समभाव के प्रतीक थे बनारस के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बाबू जगत सिंह
1799 भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष की अनकही गाथा- पुस्तक का हुआ लोकार्पण
काशी समरस की भूमि है. इसने सभी धर्माेें संप्रदायों और वैचारिक दर्शन को अपने भीतर समेट रखा है. इस कारण यहां वही व्यक्तित्व सम्मान का पात्र बन सका है जिसने खुले मन से सभी धर्म एवं संप्रदायों का सम्मान किया है. उन्होंने काशी को सबकी काशी बनाने में अपनी भूमिका का निर्वहन किया है. इस दृष्टि से एक विस्मृति जननायक बाबू जगत सिंह, जिन्होंने मंदिर के साथ मस्जिद बनवाई, गुरुद्वारे के लिए जमीन दी और पुरातात्विक स्थल सारनाथ की खोज में अपना महत्व योगदान दिया.
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साहित्यकार एवं समालोचक डॉ. रामसुंदर सिंह ने मंगलवार को काशी हिंदू विश्वविद्यालय के महामना मालवीय मूल्य अनुशीलन सभागार में बाबू जगत सिंह पुस्तक पर अपने विचार व्यक्त किये. कार्यक्रम शुभारंभ के पूर्व ज्योति शंकर त्रिपाठी ने गणेश स्तुति की. साथ ही मनचासीन समस्त व्यक्तियों ने दीप प्रज्वलन किया.
समाज की गलत समझ को किताब ने ठीक करने की कोशिश की
इस अवसर पर डॉक्टर प्रभात कुमार झा ने कहा कि व्यापक समाज की गलत समझ को इस किताब ने ठीक करने की कोशिश की है. यह पुस्तक इतिहास की कसौटी पर पूरी खरी उतरी है. प्रोफेसर सदानंद शाही ने कहाकि ठोस तथ्यों के आधार पर यह किताब समूचे भारत के मुस्तकबिल के लिए एक दृष्टि दे सकती है. बनारस के इतिहास में कुछ जोड़ने के लिए यह किताब आई है. पहली क्रांति का बिगुल बजाने वाले बाबू जगत सिंह है. माटी संस्था के संयोजक डॉक्टर आसिफ आजमी ने कहाकि विध्वंस पहले भी सही नहीं था और आज की तारीख में भी सही नहीं है. डॉक्टर अभय कुमार ठाकुर ने बताया कि यह किताब एक चुनौती है. इतिहासकारों व पुरातत्व वेत्ताओं को उन्हें नवाचार पर मजबूर होना पड़ेगा. डॉक्टर प्रियंका झा ने कहा कि हमें संशोधन करने की जरूरत पड़ेगी. इतिहास शिक्षण में गहरी राष्ट्रीयता ने बाबू जगत सिंह को विद्रोह के लिए मजबूर किया. सवालों का जवाब पुस्तक लेखक डॉक्टर एच ए कुरैशी ने दिया. स्वागत
कार्यक्रम में यह रहे मौजूद
उद्बोधन प्रदीप नारायण सिंह ने संचालन अशोक आनंद ने और धन्यवाद ज्ञापन डॉ. अरविंद कुमार सिंह ने किया. कार्यक्रम में प्रोफेसर रामचंद्र पांडेय, चंद्रमा भंते, प्रोफेसर राणा पीवी सिंह, त्रिपुरारी शंकर एडवोकेट, पद्श्री चंद्रशेखर सिंह, मौलाना अब्दुल बातिन नोमानी, शिवनाथ यादव, रामाज्ञा जी, केदार तिवारी, डॉक्टर हरेंद्र राय, सीमा राय, डा. रामावतार पांडेय, डॉ. आनंद कुमार सिंह, प्रोफेसर जयराम सिंह आदि रहे.