पिछले 20 सालों में 15 हाई प्रोफाइल मामलों में जूनियर जजों ने दिया फैसला

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देश के इतिहास में पहली बार सुप्रीम कोर्ट के 4 जजों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर चीफ जस्टिस के रवैये पर सवाल उठाए। चारों सीनियर जजों का आरोप है कि चीफ जस्टिस महत्वपूर्ण केस वरिष्ठता के आधार पर नहीं बल्कि अपनी पसंद के जूनियर जजों को सौंप रहे हैं। देश की सबसे बड़ी अदालत में इस तरह का विवाद भले ही देश के इतिहास में पहली बार खुलकर सामने आया हो, लेकिन अहम मामले जूनियर जजों को सौंपे जाने के उदाहरण पहले भी देखने को मिल चुके हैं।

जूनियर जजों की अध्यक्षता वाली बेंचों को सौंपे गए थे…

पिछले 20 साल की बात की जाए तो कई महत्वपूर्ण केस जूनियर जजों को सौंपे गए हैं।टाइम्स ऑफ इंडिया ने पिछले 2 दशकों में ‘देश के लिए संवेदनशील मुकदमों’ की एक लिस्ट तैयार की है। काफी रिसर्च के बाद तैयार इस लिस्ट में सामने आया है कि कम से कम ऐसे 15 केस हैं जिन्हें सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस द्वारा सीनियर जजों को नहीं, बल्कि जूनियर जजों की अध्यक्षता वाली बेंचों को सौंपे गए।

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राजीव गांधी हत्याकांड, बोफोर्स कांड, बाबरी मस्जिद गिराने के मामले में लाल कृष्ण आडवाणी पर चलने वाला केस, सोहराबुद्दीन एनकाउंटर केस, गुजरात दंगों से जुड़ा बेस्ट बेकरी केस और बीसीसीआई की पूरी कार्यप्रणाली बदल देने वाला केस, इन सभी मुकदमों में एक बात कॉमन है और वह यह कि इन सभी में जजों की सीनियर बेंच ने नहीं बल्कि जूनियर जजों ने ही फैसला दिया।

फैसले के खिलाफ कोई आवाज नहीं उठाई गई…

राजीव गांधी मर्डर केस जूनियर जजों को सौंपा गया राजीव गांधी की हत्या की दोषी नलिनी और कुछ अन्य ने 1998 में मृत्युदंड के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी। उस वक्त यह देश के सबसे हाई प्रोफाइल मामलों में से एक था। तत्कालीन चीफ जस्टिस ने इस केस को सुनवाई के लिए उस समय सुप्रीम कोर्ट के काफी जूनियर जज जस्टिस के टी थॉमस, जस्टिस डी पी वाधवा और जस्टिस एस एस एम कादरी के पास भेजा। उस वक्त चीफ जस्टिस के इस फैसले के खिलाफ कोई आवाज नहीं उठाई गई।दोषी नेताओं के

चुनाव लड़ने पर रोक का फैसला

वकील लिली थॉमस ने इसी तरह 2005 में एक रिट याचिका दायर कर किसी भी मामले में दोषी करार और दो या उससे अधिक साल के लिए सजा पाने वाले जनता के प्रतिनिधियों (सांसद, विधायक) के चुनाव लड़ने पर रोक लगाने की मांग की थी। भारतीय राजनीति के लिए यह एक ऐतिहासिक फैसला रहा। उस समय के चीफ जस्टिस ने इस केस को कोर्ट नंबर 9 के पास भेजा। उस वक्त इस बेंच की अध्यक्षता जस्टिस ए के पटनायक ने की थी, जो कि सुप्रीम कोर्ट में उस वक्त जूनियर जज थे।

nbt

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