अमेरिका के पूर्व विदेश मंत्री हेनरी किसिंजर का निधन, थे भारत विरोधी और चीन हितैषी

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अमेरिका के पूर्व विदेश मंत्री हेनरी किसिंजर का बुधवार को निधन हो गया. वह 100 साल के थे. 1923 में जर्मनी में जन्मे किसिंजर अपने पीछे पत्नी, नैन्सी मैगिनेस किसिंजर, उनकी पहली शादी से दो बच्चे, डेविड और एलिजाबेथ और पांच पोते-पोतियां को छोड़ गए हैं. वह हिटलर के चंगुल से भागकर अमेरिका आ गये थे. द्वितीय विश्वयुद्ध में सेवा देने से पहले किसिंजर 1943 में अमेरिकी नागरिक बन गए थे.

किसिंजर पूर्व राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (जनवरी 1969-नवंबर 1975) थे। इसके अलावा तत्कालीन राज्य सचिव (सितंबर 1973-जनवरी 1977) के रूप में कार्य करने से पहले राष्ट्रीय सुरक्षा मामलों पर विदेश विभाग और पेंटागन के साथ कार्य किया.

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पाकिस्तान से युद्ध में भारत की हार के लिये रची थी साजिश

1971 में जब भारत-पाकिस्तान युद्ध चल रहा था तब हेनरी किसिंजर अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार थे. उस समय अमेरिका के राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन थे. तब उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के लिये भद्दी गाली का प्रयोग किया था. तब इन दोनों ने मिलकर भारत को डराने-धमकाने की कोशिश की थी. इस युद्ध की शुरुआत से ही ये दोनों भारत के खिलाफ थे. लोकतंत्र की दुहाई देने वाले देश अमेरिका ने तब पाकिस्तान का साथ दिया. मुक्ति वाहिनी और भारतीय सेना को क्षति पहुंचाने के इरादे से किसिंजर ने अमेरिकी युद्धपोत बंगाल की खाड़ी के लिये रवाना कर दिया था. युद्ध की शुरुआत में जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी अमेरिका रिचर्ड निक्सन से मिलने गईं तो उन्हें लंबा इंतजार करवाया गया. मुलाकात के दौरान भी निक्सन ने काफी बेरुखी दिखाई. अमेरिकी राष्ट्रपति का बर्ताव देखकर ही इंदिरा गांधी ने समझ लिया था कि बांग्लादेश की आजादी के लिये उसे अमेरिका की तरफ से कोई भी मदद नहीं मिलेगी. हेनरी किसिंजर ने रिचर्ड निक्सन को सलाह दी थी कि वह चीन को भारत की सीमा के नजदीक अपनी सेना तैनात करने के लिए कहें. दरअसल, किसिंजर का मानना था कि इससे भारत पर दबाव बढ़ेगा और वह पूर्वी पाकिस्तान में जारी युद्ध को बंद कर देगा. लेकिन, ऐसा नहीं हुआ.

तब सोवियत संघ ने दिया था भारत का साथ


सोवियत संघ जो भारत का समर्थन कर रहा था उसके भय से चीन ने भारतीय सीमा के नजदीक सेना तैनात करने से इनकार कर दिया. इसके बाद भी 15 दिसंबर 1971 को अमेरिकी नौसैनिक बेड़े यूएसएस एंटरप्राइज सहित सातवें बेड़े के कई सारे युद्धपोतों ने बंगाल की खाड़ी में प्रवेश किया. हालांकि, इस दिन यह पोत ढाका से हजार किमी से भी ज्यादा दूरी पर थे. वह धीरे-धीरे आगे बढ़ रहे थे. अमेरिकी नौसैनिक बेड़ा भारत की तरफ बढ़ जरूर रहा था, लेकिन इसकी स्पीड बहुत कम थी. ऐसा इसलिए कि तब तक सोवियत संघ ने भारत के समर्थन में अपने नौसैनिक बेड़े को सक्रिय कर दिया था. इसे देखते हुए अमेरिका सोवियत संघ से सीधे युद्ध करने से बचने के लिये अपने फैसले पर पुर्नविचार करना शुरू कर दिया था. बाद में अमेरिकी नौसैनिक बेड़े समेत सारे जहाजों को वापस बुला लिया गया.

पाकिस्तानी जनरल ने किया था सरेंडर


इसके बाद पाकिस्तानी जनरल नियाज़ी ने भारतीय जनरल सैम मानेकशॉ के साथ हस्ताक्षर कर सरेंडर कर दिया. 16 दिसंबर, 1971 को ढाका में 93,000 पाकिस्तान सैनिकों के आत्मसमर्पण के साथ ही युद्धविराम की घोषणा कर दी गयी. पश्चिम पाकिस्तान की आजादी के साथ ही बांग्लादेश का जन्म हुआ.

हेनरी किसिंजर: 2012 के बाद भारत के प्रति दिखाया नरम रुख


अक्टूबर 1974 में भारत की पहली यात्रा से लेकर मार्च 2012 में भारत की यात्रा के बीच किसिजंर ने वैश्विक मंच पर हिंदुस्तान के बढ़ते कद को पहचान लिया था. वह पिछले एक दशक से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में अमेरिका और भारत के मजबूत सम्बंधों की वकालत कर रहे थे. साल 2014 में मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद पूर्व अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार किसिंजर भारत के साथ मजबूत सम्बंधों की वकालत कर रहे थे. प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी अमेरिका यात्रा के दौरान उनके साथ कुछ बैठकें की थीं. जब मोदी इस साल जून में आधिकारिक राजकीय यात्रा पर अमेरिका पहुंचे थे तो किसिंजर सेहत ठीक न होने के बावजूद उप राष्ट्रपति कमला हैरिस और विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन की संयुक्त मेजबानी में विदेश विभाग में आयोजित समारोह में मोदी का भाषण सुनने के लिए वाशिंगटन तक आए थे. किसिंजर ने जून 2018 में यूएसआईएसपीएफ के पहले वार्षिक नेतृत्व सम्मेलन में कहा था, ‘‘जब मैं भारत के बारे में सोचता हूं तो मैं उनकी रणनीति की प्रशंसा करता हूं.’ इस सम्मेलन में उनकी मौजूदगी बहुत महत्वपूर्ण थी.

हेनरी किसिंजर: चीन से था गहरा नाता


हेनरी किसिंजर का मानना था कि अपने मुनाफे के लिये किया गया कोई भी काम गलत नहीं होता. उन्हीं के समय अमेरिका ने यह विचार अपनाया कि जियोपोलिटिक्स में कोई भी स्थाई दोस्त या दुश्मन नहीं होता. इससे पहले अमेरिका की यह नीति रही कि वह सिर्फ लोकतंत्र को अपनाने वाले देशों के साथ ही रिश्ते रखेगा. राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन और गेराल्ड फोर्ड के प्रशासन के समय अमेरिका के विदेश मंत्री और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के तौर पर उन्होंने अमेरिका और चीन के बीच रिश्तों में जमी बर्फ पिघलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. चीन को आर्थिक शक्ति बनाने के पीछे किसिंजर का बेहद अहम योगदान था. इन्हीं के फैसले के बाद तमाम अमेरिकी कम्पनियों ने 1971 के बाद से ही चीन में तमाम कारखाने खोले। इससे चीन को इसका भरपूर लाभ मिला. रोजगार में बढ़ोतरी के अलावा चीन की इकोनोमी में विकास दर की बढोतरी देखी जाने लगी. इस वर्ष जुलाई में वह निजी दौरे पर चीन गये थे. चीन में उनका भव्य स्वागत हुआ था. चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग खुद उनका स्वागत करने पहुंचे थे.

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