4 जुलाई से सावन मास की शुरूआत हो रही है। सावन माह हिंदू धर्म में पवित्र महीनों में एक माना जाता है। सावन मास भगवान भोलेनाथ को अधिक पसंद है। सावन में भगवान शंकर को प्रसन्न करने के लिए जहां सोमवार का व्रत रखा जाता हैं। तो वहीं भगवान शिव की पत्नी माता पार्वती को प्रसन्न करने के लिए सावन के मंगलवार को व्रत किया जाता है। पुराणों में पाया गया है कि माता पार्वती को भी सावन माह प्रिय होता है। इसलिए मां गौरा से मनोकामना मांगने के लिए सावन के हर मंगलवार को मंगला गौरी व्रत किया जाता है। माना जाता है कि यह व्रत उतना ही कठिन होता है, जितना कि मां गौरा ने महादेव को पति बनाने के लिए तप के दौरान किया था। मगर फिर भी मंगला गौरी व्रत को कुछ आसान विधि से भी किया जाए तो भी मां गौरी प्रसन्न हो जाती हैं। आज हम आपको इसी खास विधि के बारे में बताने जा रहे हैं। साथ ही यह भी बताएंगे कि मंगला गौरी की पूजा में सिल बट्टा क्यों रखा जाता है।
अविवाहित भी करती हैं मंगला गौरी व्रत
सावन की महीने में पड़ने वाले सभी मंगलवार के दिन मंगला गौरी का व्रत रखा जाता है। मंगला गौरी व्रत को सुहागन महिलाओं के साथ कुंआरी लड़कियां भी रख सकती हैं। क्योंकि मां गौरा ने जब महादेव के लिए तप-व्रत किया था, तब वह स्वयं भी कुंआरी अवस्था में ही थी। इसलिए इस व्रत को शादी-शुदा और अविवाहित महिलाएं भी रख सकती हैं। इस दिन महिलाएं अखंड सौभाग्य की मनोकामना से व्रत रखकर पूजा करती हैं। मान्यता है कि कुंवारी कन्याएं अगर इस व्रत को करती हैं तो उन्हें उत्तम व योग्य वर की प्राप्ति होती है। साथ ही शीघ्र विवाह के योग भी बनते हैं।
गौरी पूजा में रखा जाता है सिलबट्टा
मंगला गौरी व्रत में मां गौरा को हर सामग्री 16-16 की संख्या में चढाई जाती हैं। इसलिए इस व्रत को कहीं-कहीं शोडश व्रत भी कहते हैं। मगर खास बात ये है कि इस व्रत में मां गौरी की पूजा में सिलबट्टा को रखा जाता है। यहां बता दें कि सिलबट्टा पत्थर से बना होता है, जो हर घर में मसाला या अन्य पदार्थों को पीसने (ग्रिंडर) करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। हालांकि आधुनिक समय में ये कुछ ही घरों में पाया जाता है। लेकिन मान्यता है कि मंगला गौरी या गौरी पूजा में सिल बट्टा रखना आश्यवक होता है। खासकर जब सावन में गौरी पूजा की जा रही हो।
मां गौरा सिल पर पीसती हैं भांग
गौरी मां की पूजा में सिलबट्टा रखने के पीछे एक धारणा निहीत है। दरअसल, सावन माह में भगवान भोलेनाथ को भांग पीना काफी ज्यादा पसंद होता है। इसलिए मां गौरी भगवान शंकर के लिए सिलबट्टे पर भांग पीसती हैं। यही वजह है कि गौर पूजन स्थल पर सिल बट्टा रखा जाता है। इससे मां गौरी जल्दी प्रसन्न होती हैं।
आटे का भी बना सकते हैं सिल
अब कई घरों में पत्थर के सिल नहीं होते हैं। ऐसे में गौरी पूजा के लिए आटा या मिट्टी का भी सिल बनाया जा सकता है। गौरी पूजा में आटे का सिल बट्टा बनाकर उसे भी पूज सकते हैं। इससे पूजा विधि में कोई फर्क नही पड़ता है। आटे या मिट्टी का सिल बट्टा बनाना आसान भी रहता है, क्योंकि आटा हर समय उपलब्ध हो जाता है।
मंगला गौरी व्रत की पूजा आम व्रतों के जैसी ही की जाती है। बस इस पूजा में सभी वस्तुएं सोलह की संख्या में चढ़ाई जाती हैं। क्योंकि मां गौरी को सोलह श्रंगार पसंद है। फूल-पत्ती से लेकर सभी सामग्री मिलाकर वस्तुओं की संख्या 16 होनी चाहिए। व्रत के दिन मां गौरी का ध्यान करना चाहिए। पूरा दिन मां को समर्पित ना कर सकें तो सुबह और शाम को गौरा मां की पूजा करनी चाहिए। पूजा में मां की मंगला कथा और मंगला पाठ भी करना चाहिए। इसके साथ ही समय निकालकर श्री मंगला गौरी मंत्र ॐ गौरीशंकराय नमः का 108 बार जाप करना चाहिए।
मंगला गौरी व्रत की पूजा सामग्री
मंगला गौरी व्रत पूजा के दौरान सभी वस्तुएं सोलह की संख्या में होनी चाहिए। क्योंकि यह अंक सुहागनों के लिए अत्यंत शुभ होता है।पूजन सामग्री में पूजा के लिए चौकी, सफेद और लाल रंग का कपड़ा, धूपबत्ती, कपूर, माचिस, आटे का चौमुखी दीपक, कलश और अगरबत्ती, गेहूं और चावल, सोलह-सोलह तार की चार बत्तियां, स्वच्छ और पवित्र मिट्टी, जिससे कि मां गौरी की प्रतिमा का निर्माण किया जा सके। अभिषेक के लिए दूध, पंचामृत और साफ जल, कुमकुम, चावल, अबीरा, हल्दी, मां गौरी के लिए नए वस्त्र, सोलह प्रकार के फूल, माला ,फल, आटे के लड्डू और पत्ते, 7 प्रकार के अनाज और पंचखोका, 16 सुपारी, पान ओर लौंग, 1 सुहागन पिटारी (मेहंदी, नेलपॉलिश, 16 चूड़ियां, हल्दी, कंघा, तेल, आईना, मंगलसूत्र, बिछिया आदि सामान होता है), नेवैद्य रखा जाता है।
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