किसान ऐसे कम खर्च में कीड़ों और रोगों से बचाएं फसल

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अक्सर किसान फसल में लगने वाले कीटों से परेशान रहते हैं। अपनी फसल को बचाने के लिए वे कीटनाशक का प्रयोग करते हैं। कई बार ऐसा होता है कि किसान जानकारी के अभाव में अधिक कीटनाशक दवाओं का प्रयोग कर देते है जो उनकी फसल को नुकसान पहुंचा देता देता है। अब किसानों को फसल में कीटनाशक के प्रयोग करने की जरूरत नही पड़ेगी। आईपीएम के जरिए कम खर्च में ही फसल को कीड़ों से बचाया जा सकता है।

फसल को बचाने का सबसे आसान और सत्ता तरीका

जब आपकी फसल में कीड़े या कोई रोग लगता है तो किसान कीटनाशक डालते हैं। खेत में खरपतवार होता है उसकी दवा (खतपतवारनाशक) डालते हैं। ये रासायनिक दवाएं न सिर्फ काफी महंगी पड़ती हैं बल्कि किसानों की सेहत, फसल और यहां तक खेती की मिट्टी को बहुत नुकसान पहुंचाती हैं। लेकिन किसान बिना कीटनाशक भी खेती कर सकते हैं। बिना रसायनिक दवाओं के खेती करने के तरीके को एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन कहते हैं। ये बहुत सरल, सस्ता और उपयोगी तरीका है।

एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन को अंग्रेजी में इंट्रीग्रेटेड पेस्ट मैनेजमेंट सिस्टम यानी आईपीएम कहते हैं। आप सरल शब्दों में समझिए अगर एक एकड़ खेत में लगी किसी फसल में किसान रासायनिक कीटनाशक डालते हैं तो अगर महीने भर में 2000 रुपए का खर्चा आता है तो आईपीएम में शायद 20 रुपए से लेकर मुश्किल २०० रुपए का खर्चा आएगा। क्योंकि आईपीएम में प्राकृतिक विधियों का इस्तेमाल किया जाता है। इसमें कोशिश रहती है रोग या कीट खेत में लगने न पाएं, और अगर लग जाएं तो उन्हें बढ़ने से रोक दिया जाए। खेत में रसायन के प्रयोग से वातावरण में रहने वाले मित्र कीट भी खत्म हो जाते हैं, जिससे पर्यावरण का संतुलन बिगड़ जाता है, इन समस्याओं के प्रभावी निदान के लिए किसान इंटीग्रेटेड पेस्ट मैनेजमेंट या एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन अपना सकते हैं।

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क्या है एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन इसमें कीट, रोग व खरपतवार के नियंत्रण के बजाय उसका प्रबंधन किया जाता है। इसके जरिए जीवों को नष्ट करने के बजाय ऐसे उपाय अपनाए जाते हैं, जिससे वो खत्म न हो बल्कि उनकी संख्या कम हो जाए और वो नुकसान न पहुंचा पाएं। व्यवहारिक नियंत्रण व्यवहारिक नियंत्रण में परम्परागत अपनाए जाने वाले कृषि क्रियाओं में ऐसा क्या परिवर्तन लाया जाए, जिससे कीड़ों और बीमारियों से होने वाले आक्रमण को या तो रोका जाए या कम किया जाए। ये विधियां किसान लंबे समय से करते आ रहे हैं, लेकिन किसानों ने रसायनों के आने से इनका उपयोग कम होता जा रहा है। ये भी पढ़े – ये विधि अपनाने पर बचेगा कीटनाशक का खर्च खेतों से फसल अवशेषों का हटाना तथा मेड़ों को साफ रखना।

गहरी जुताई करके उसमें मौजूदा कीड़ों और बीमारियों की विभिन्न अवस्थाओं और खरपतवारों को नष्ट करना। खाद और अन्य तत्वों की मात्रा निर्धारिण के लिए मिट्टी परीक्षण करवाना। साफ, उपयुक्त व प्रतिरोधी किस्मों का चयन करना और बोने से पहले बीजोपचार करना। पौधारोपण से पहले पौधे की जड़ों को जैविक फफूंदनाशक ट्राइकोकरमा बिरडी से उपचारित करें। फसल बुवाई और काटने का समय इस तरह सुनिश्चित करना ताकि फसल कीड़ो और बीमारियों के प्रमुख प्रकोप से बचे सकें। पौधे की सही सघनता रखें ताकि पौधे स्वस्थ रहे। समुचित जल प्रबंधन फसल की समय से उचित नमी में सन्तुलित खाद व बीज की मात्रा डाले ताकि पौधे प्रारम्भिक अवस्था में स्वस्थ रहकर खरपतवारों से आगे निकल सके। फसल चक्र अपनाना जैसे एक ही फसल को उसी खेत में बार बार न बुवाई करना। इससे कई कीड़ों और बीमारियों का प्रकोप कम हो जाता है। यांत्रिक नियंत्रण इस विधि को फसल रोपाई के बाद अपनाना आवश्यक है।

इसके अंतर्गत निम्न तरीके अपनाएं जाते है:-

इस विधि से नर कीटों को प्रयोगशाला में या रासायनों से फिर रेडिऐशन तकनीकों से नपुंसकता पैदा की जाती है और फिर उन्हें काफी मात्रा में वातावरण में छोड़ दिया जाता है। इससे मादा कीट अंडे नहीं दे पाती हैं। कीड़ों के अण्ड समूहों, सूडियों, प्यूपों तथा वयस्कों को इकट्ठा करके नष्ट करना। रोगग्रस्त पौधों या उनके भागों को नष्ट करना। खेत में बांस के पिंजरे लगाना और उनमें कीड़ो के अण्ड समूहों को इकट्ठा करके रखना ताकि मित्र कीटों का संरक्षण और हानिकारक कीटों का नाश किया जा सके। प्रकाश प्रपंच की सहायता से रात को कीड़ों को आकर्षित करना और उन्हें नष्ट करना। कीड़ों की निगरानी व उनको आकर्षित करने के लिए फेरोमोन ट्रेप का प्रयोग करना तथा आकर्षित कीड़ों को नष्ट करना। हानिकारक कीट सफेद मक्खी के नियन्त्रण के लिए यलो स्टिकी ट्रेप का प्रयोग करें।

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