‘कोरोना वायरस’ ने छीन ली ‘फूलों वाली खुशियां’!

कोरोना वायरस ने सब तरह की प्रगति को ठप्प कर दिया है। इससे तकरीबन हर तबका बुरी तरह प्रभावित है

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कोरोना वायरस ने सब तरह की प्रगति को ठप्प कर दिया है। इससे तकरीबन हर तबका बुरी तरह प्रभावित है। इस प्रभाव से खुशियों का प्रतीक फूल व्यवसाय (Floriculture) भी अछूता नहीं है। उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले के वजीरगंज क्षेत्र में लॉक डाउन में 6 करोड़ रुपये से अधिक का कारोबार प्रभावित है।

फूल की खेती से जुड़े किसान सत्तार ने कहा, ‘कारोबार से जुड़े हजारों लोग बेरोजगार हो चुके हैं या यूं कहें कि ‘कोरोना वायरस’ ने इनसे ‘फूलों वाली खुशियां’ ही छीन ली है। खेतों में खड़े फूलों की मुरझाहट ने उन्हें तोड़कर फेंकने पर मजबूर कर दिया है। तकरीबन 20 से 25 लाख प्रति हेक्टेयर लाभ वाली इस खेती से जुड़े सैकड़ों किसानों को तकरीबन 6 करोड़ का घाटा हुआ है।’

किसानों के चेहरे मुरझाए-

मंदिरों के कपाट बंद होने से भी बिक्री ठप्प रही। नवरात्र में भी मंदिरों पर श्रद्धालुओं की लगने वाली लम्बी कतारे नहीं दिखीं और सन्नाटा पसरा रहा। घरों में सजने वाली झांकियां भी नदारद रहीं। वजीरगंज क्षेत्र में फूलों की खेती से जुड़े तकरीबन 250 लोगों की वजह से सीधे तौर पर हजारों को रोजगार मिला था। केवल नवरात्र में हजारों दुकान, घर और मंदिरों में फूलों की नियमित डिलेवरी करते थे। यह लोग मंदिरों और श्रद्धालुओं के घरों में झांकियां भी सजाते थे। लेकिन लॉक डाउन ने फूलों के इस कारोबार पर ग्रहण लगा दिया और प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से हजारों को बेरोजगार कर दिया है।

वजीरगंज क्षेत्र में तकरीबन 25 से 30 हेक्टेयर क्षेत्र में छोटे-बड़े सैकड़ों किसानों द्वारा फूलों की खेती की जाती है। एक हेक्टेयर में आने वाली औसत लागत तकरीबन 4-5 लाख के सापेक्ष इन्हें 20 से 25 लाख के बीच शुद्ध मुनाफा होता था, लेकिन लॉकडाउन ने इनके खेत में खिले फूलों को मुरझा दिया है। कहीं बेच न पाने की दशा में फूलों की तुड़ाई नहीं हो पा रही है और वे मुरझाने लगे हैं। इस वजह से किसानों के हमेशा खिले रहने वाले चेहरे भी मुरझा चुके हैं।

Floriculture : 6 करोड़ का घाटा-

गुलाब और गेंदा की खेती करने वाले सत्तार ने बताया, ‘लॉकडाउन ने फूलों के व्यवसाय को काफी नुकसान पहुंचाया है। 7 मार्च से आज तक मण्डी नहीं जा सके है। पूरी लागत डूब गयी है। फूल को तोड़वाकर फेंकवाना पड़ता है। नवरात्रि में इस बार तो मंदिर कपाट बंद होंने कारण भी काफी नुकसान हुआ।’

उन्होंने बताया, ‘गुलाब को तैयार होने में सालों लगते हैं। गेंदा तीन माह में तैयार हो जाता है। इस समय तो ट्रान्सपोर्ट बंद होने के कारण फूलों का बाहर जाना भी बंद हो गया।’

इस व्यवसाय से जुड़े अभिनव सिंह के मुताबिक, नवरात्र के दिनों में वजीरगंज क्षेत्र में 5 लाख रुपये का औसत कारोबार होता था। अष्टमी, नवमी और दसवीं तिथि तक यह बढ़ कर तीन गुना हो जाता था। लेकिन इस बार लॉक डाउन के इन दिनों में 15 लाख रुपये डूब गए।

एक अन्य किसान ने बताया कि गेंदा, रजनीगंधा, बेला, गुलाब, जरबेरा, कार्नेशन, आर्किट के अलावा तुलसी पत्ता, अशोक पत्ता, पान पत्ता, आम का पत्ता, मोरपंख पौधे और दूब की मांग रहती है। लेकिन लॉक डाउन के कारण न केवल काउंटर बंद हैं बल्कि गांव-देहात और दूसरे जिलों से आने वाले फूलों की आवक भी बंद है।

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