क्या बुआ भतीजे का ये मेल हिला पाएगा BJP की साख?

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2014 में भी बुआ भतीजे मिलकर भाजपा की साख को नहीं हिला पाए थे। करीब 25 साल तक तक यूपी की राजनीति में मुख्यधारा में रहने के बाद अब मुश्किल का सामना कर रहीं बीएसपी और एसपी ने गठजोड़ कर बीजेपी को चुनौती देने का फैसला किया है। 2014 के आम चुनाव में बीजेपी गठबंधन ने सूबे में 73 सीटें जीतकर एक तरह से क्लीन स्वीप कर दिया था। एसपी को सिर्फ 5 और कांग्रेस को 2 सीटें मिली थीं। बीएसपी का तो खाता भी नहीं खुल सका था।

ऐसे में 2019 के आम चुनाव से पहले एसपी और बीएसपी ने गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा सीट पर उपचुनाव के लिए साथ आने का फैसला लिया है।आम चुनाव से एक साल पहले दोनों दलों के बीच यह समझौता यदि कारगर रहा तो यह गठबंधन की नींव भी साबित हो सकता है। हालांकि यह देखने वाली बात होगी कि इन दोनों सीटों पर बीएसपी अपने वोट एसपी को ट्रांसफर करा पाती है या नहीं।

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यदि बीएसपी का वोट एसपी को शत-प्रतिशत ट्रांसफर होता है, तभी दोनों के संयुक्त उम्मीदवार बीजेपी कैंडिडेट्स को मात देने की स्थिति में होंगे। आइए जानते हैं क्या है दोनों सीटों का गणित…

एसपी-बीएसपी मिलकर भी थे केशव मौर्य से पीछे

2014 के आम चुनाव में यूपी के डेप्युटी सीएम केशव प्रसाद मौर्य फूलपुर से मैदान में थे। तब बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष का जिम्मा संभाल रहे मौर्य को इस चुनाव में 5,03,564 वोट मिल थे। वहीं, एसपी और बीएसपी के कैंडिडेट को मिलाकर 358970 वोट मिले थे। साफ है कि दोनों को मिलाकर भी अंतर 144594 वोटों का था। वोट प्रतिशत के लिहाज से भी दोनों दल मिलकर भी बीजेपी से पीछे थे। बीजेपी को यहां 52 फीसदी वोट मिले थे, जबकि एसपी और बीएसपी के वोट प्रतिशत को मिला दें तो यह आंकड़ा 47 पर्सेंट का ही था। हालांकि अब यूपी में बीजेपी एक साल से सत्ता में है। ऐसे में ऐंटी-इन्कम्बैंसी भी इस सीट पर एक

फैक्टर हो सकता है।गोरखपुर में बीजेपी का गढ़ जीतना टेढ़ी खीर

5 बार लगातार सांसद रहे योगी आदित्यनाथ के सीएम बनने के बाद खाली हुई इस सीट को बीजेपी से छीनना अब भी विपक्षियों के लिए टेढ़ी खीर है। इस सीट को परंपरागत रूप से बीजेपी का गढ़ माना जाता रहा है। 2014 के आम चुनाव में योगी आदित्यनाथ ने यहां 5,39,127 वोट हासिल किए थे। एसपी कैंडिडेट राजमति निषाद को उन्होंने 312783 के बड़े अंतर से मात दी थी। बीएसपी कैंडिडेट को यहां 1,76,412 वोट मिले थे। इस तरह दोनों के वोटों को मिला दिया जाए, तब भी बीजेपी कैंडिडेट को चुनौती मुश्किल होती। हालांकि राजनीति में 2 और 2 का जोड़ हमेशा 4 ही नहीं होता। कभी-कभार यह 22 भी हो सकता है। अब देखना ये होगा कि सपा और बसपा का ये मेल भाजपा के लिए कितनी मुश्किल खड़ी कर पाता है।

NBT

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