इमरजेंसी: इतिहास का काला अध्याय या बड़ा राजनैतिक कदम?

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भारत के इतिहास में कई ऐसे मोड़ आए हैं जो आज भी चर्चा का विषय बने हुए हैं, और उनमें से एक महत्वपूर्ण मोड़ है इमरजेंसी. 25 जून 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी की घोषणा की, जो 21 महीने तक जारी रही. यह अवधि भारतीय लोकतंत्र के लिए एक चुनौतीपूर्ण समय थी, जिसमें देश ने राजनीतिक उथल-पुथल और सामाजिक अस्थिरता का सामना किया. इसी ऐतिहासिक घटना पर आधारित प्रोफेसर आनंद कुमार की नई किताब “इमरजेंसी राज की अंतर्कथा” 26 को विमोचित हुई है.

इमरजेंसी की घोषणा के पीछे कई कारण थे. इंदिरा गांधी की सत्ता को चुनौती देने वाले कई कारक थे, जिनमें इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा उनके चुनाव को अवैध ठहराना और विपक्षी दलों द्वारा बढ़ते विरोध प्रदर्शन शामिल थे. इमरजेंसी के दौरान प्रेस की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाया गया, बड़े पैमाने पर गिरफ्तारियां हुईं, और जबरन नसबंदी जैसे कठोर कदम उठाए गए.

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प्रोफेसर आनंद कुमार की किताब में इन घटनाओं का विस्तार से विवरण दिया गया है. यह किताब जन-नायक जयप्रकाश नारायण, खुद प्रोफेसर आनंद कुमार, और अन्य नेताओं के संघर्ष को प्रभावी तरीके से प्रस्तुत करती है, जो उस समय की सत्ता की अंधेरी तस्वीर को बदलने के लिए लड़ रहे थे.

Professor Anand Kumar

इमरजेंसी के प्रभाव और सबक

इमरजेंसी ने भारतीय राजनीति और समाज पर गहरा प्रभाव डाला. इसके दौरान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और अन्य क्रांतिकारी संगठनों को एक नया मुद्दा मिला, जिससे वे जन-आंदोलन में संलग्न हुए. लोगों की स्वतंत्रता और अधिकारों के हनन ने भविष्य में नागरिक अधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ाई.

इमरजेंसी ने आम जनता के जीवन पर भी व्यापक प्रभाव डाला. इस अवधि में नागरिक अधिकारों का व्यापक हनन हुआ. प्रेस की स्वतंत्रता को खत्म कर दिया गया, जिससे जनता को सटीक जानकारी नहीं मिल पाई. सरकार के कठोर कदम, जैसे जबरन नसबंदी अभियान, ने लोगों के जीवन को प्रभावित किया और उनके मन में सरकार के प्रति असंतोष बढ़ा.

सांस्कृतिक रूप से, इमरजेंसी ने भारतीय समाज में एक गहरी छाप छोड़ी. इस दौरान कई साहित्यकारों, फिल्म निर्माताओं और कलाकारों ने इमरजेंसी के प्रभावों पर अपने विचार व्यक्त किए. इस समय की घटनाओं ने भारतीय सिनेमा और साहित्य को भी प्रभावित किया. सत्यजीत रे, मृणाल सेन और श्याम बेनेगल जैसे फिल्म निर्माताओं ने अपनी फिल्मों में इस समय के सामाजिक और राजनीतिक परिवर्तनों को उजागर किया.

प्रोफेसर आनंद कुमार और उनकी किताब

प्रोफेसर आनंद कुमार एक समाजशास्त्री हैं और उन्होंने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU), दिल्ली से अपनी शिक्षा प्राप्त की है. उनकी किताब “इमरजेंसी राज की अंतर्कथा” का उद्देश्य भविष्य की पीढ़ियों के लिए इमरजेंसी की घटनाओं का विस्तृत और सटीक विवरण प्रस्तुत करना है ताकि वे इतिहास को बेहतर ढंग से समझ सकें.

किताब का विमोचन

26 June को में दिल्ली के कॉन्स्टिट्यूशन क्लब ऑफ इंडिया में इस किताब का विमोचन हुआ, जहां मैंने इस ऐतिहासिक घटना पर गहन चर्चा सुनी और सीखी. यह किताब हमें उस समय की सच्चाई से रूबरू कराती है और हमें सोचने पर मजबूर करती है कि इमरजेंसी के मायने क्या थे और इसके पीछे की सोच क्या थी.

“इमरजेंसी राज की अंतर्कथा” इतिहास के इस महत्वपूर्ण अध्याय को समझने के लिए एक आवश्यक पढ़ाई है, जो न केवल उस समय की घटनाओं का सटीक विवरण प्रस्तुत करती है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि कैसे उस समय के संघर्षों ने आज के भारतीय लोकतंत्र को आकार दिया.

इमरजेंसी का समय भारतीय लोकतंत्र के लिए एक कड़ा सबक था. प्रोफेसर आनंद कुमार की किताब इस इतिहास को हमारे सामने जीवंत करती है और हमें उस समय के संघर्षों और उनके परिणामों को समझने का अवसर प्रदान करती है. यह किताब हमारे भविष्य की पीढ़ियों के लिए एक अमूल्य संसाधन है, जो उन्हें इतिहास के इन पन्नों को बेहतर ढंग से समझने और सीखने में मदद करेगी.

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