इलेक्ट्रिक गाड़ियों ने पकड़ी भारत की रोड: कम होगा क्लाइमेट चेंज का प्रभाव

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बहुत ही शांत और सरल तरीके से चलने वाली इलेक्ट्रिक गाड़ी अब इंडियन मार्केट में धीरे-धीरे लोगों की जरूरत बनती जा रही है. ऐसे में हमें ये जानना जरूरी है कि क्या इलेक्ट्रिक गाड़ी जितनी ऐड्वर्टाइज़ की जा रही है वो उतनी साफ है या नहीं? बिजनस स्टैन्डर्ड की एक रिपोर्ट के अनुसार 2023 के फर्स्ट-हाफ में टाटा मोटर्स ने 34,000 इलेक्ट्रिक गाड़ियों को बेच कर ईवी कार्स के मार्केट में 72 पर्सेन्ट का शेयर ले लिया था, जिसके बाद MG मोटर्स के पास कुछ 10 पर्सेन्ट का मार्केट शेयर था. इंडिया में टाटा, मॉरिस, महिंद्रा,और किया ही सिर्फ इलेक्ट्रिक गाड़ियां फिलहाल बेच रही है.

जलवायु परिवर्तन है बड़ा मुद्दा

इलेक्ट्रिक गाड़ियों के बारे में हमे ये जानना जरूरी है कि आखिर यह गाड़ियां कितनी Climate Friendly है. इस मुद्दे को जलवायु परिवर्तन से जोड़ने की बेहद जरूरत है. अगर मार्केट के हिसाब से देखा जाए तो इलेक्ट्रिक गाड़ी का उदय जलवायु परिवर्तन के वजह से ही हुआ है. इंसानों ने प्राकृतिक रिसोर्सेज के दोहन के साथ-साथ उसए बर्बाद भी किया, जिसकी वजह से हमें एनवायरनमेंट फ़्रेंडली रिसोर्सेज की जरूरत पड़ रही है. दिन-प्रतिदिन मेट्रो सिटीस में ग्रीन कवर खत्म होता जा रहा है, ग्लोबल वार्मिंग की वजह से हर साल टेम्परेचर रिकार्ड तोड़ रहे है, मौसम का पैटर्न बदलता जा रहा है. यह कुछ बिन्दु है जो हमे ये बताती है कि Climate Change हमारे लिए कितना बड़ा मुद्दा बन गया है. ऐसे मे इलेक्ट्रिक गाड़ी जिससे हम अपने शहरों मे राहत की कयास लगा रहे है उनके बारे मे भी जानना जरूरी है.

बैटरी बनती है रेयर अर्थ-एलिमेंट्स से

इलेक्ट्रिक गाड़ी में इस्तेमाल होने वाली बैटरी रेयर अर्थ एलिमेंट्स से बनती है, जिसकी वजह से इन बैटरी की प्राइस महंगी होती है. इलेक्ट्रिक गाड़ियों की बैटरी को बनाने मे लिथीअम और कोबाल्ट का मुख्य रूप से इस्तेमाल होता है. वॉशिंग्टन पोस्ट के आर्टिकल से पता चलता है कि, लिथीअम और कोबाल्ट की माइनिंग में मशीन का इस्तेमाल बहुत ज्यादा है. 60-70 प्रतिशत लिथीअम और कोबाल्ट साउथ अफ्रीका के कांगो में पाया जाता है. इस माइनिंग से पर्यावरण को कई तरह के नुकसान होते है जैसे, ग्राउन्डवॉटर मे गंदगी बढ़ जाती है. माइनिंग के प्रोसेस मे मशीन का इस्तेमाल बेहद है जिसकी वजह से वायु और जल प्रदूषण भी बढ़ता है. लिथीअम और कोबाल्ट की माइनिंग के दौरान सल्फर आक्साइड गैस का उत्सर्जन होता है जिससे फसल और आदमी दोनों को नुकसान पहुंचता है.
इलेक्ट्रिक गाड़ियों मे इस्तेमाल होने वाली बैटरी के बारे और जानकारी दे रहे इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ सस्टैनबल डेवलपमेंट के सलाहकार सिद्धार्थ गोयल.

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बैटरी का चार्जिंग सोर्स

देखिए हम चाहे कितनी भी ग्रीन एनर्जी की बात कर लें, इसमे कोई शक नहीं है कि इलेक्ट्रिक गाड़ी क्लीन और ग्रीन नहीं है. इन गाड़ियों मे किसी भी तरह का इमिशन नहीं है, ना तो इन गाड़ियों में किसी भी तरह की आवाज़ है. इलेक्ट्रिक गाड़ी को चार्ज करने का जो स्रोत है वह ग्रिड वाली ही बिजली है, और यह बिजली कोयले से बनती है. The Wire के आर्टिकल के अनुसार देश मे 13, 79,311 इलेक्ट्रिक वेहीकल रेजिस्टर्ड है, जिसमे कार, बस, दो-पहिया और तीन-पहिया वाहन भी है. 2018 के बाद से इंडियन मोबिलिटी मार्केट मे एक बड़ा शिफ्ट आया है, जिसकी वजह से लोगों ने अपनी जरूरत को भी Climate Friendly बनाने की कोशिश की है.

काफी साफ है इलेक्ट्रिक गाड़ियां

इलेक्ट्रिक गाड़ी को इंडियन मार्केट में लाना बहुत जरूरी था. इंडिया भी क्लाईमेट चेंज के लिए अपने आप को तैयार कर रहा है. 2030 तक इंडिया को 50 पर्सेन्ट बिजली के स्रोत बिना फॉसील फ्यूल के चाहिए, और इतना ही नहीं बल्कि इमिशन टारगेट के अनुसार 45 पर्सेन्ट की कटौती इंडिया इमिशन में करेगा. ऐसे मे जब भी हम इलेक्ट्रिक गाड़ियों की तरफ अपनी नज़र डालते है, तब एक सुकून भारी सांस ले पाते है. जानकारी के लिए आपको बता दे कि पेट्रोल गाड़ी में एक लिटर तेल जलने से करीब 2.3 किलो कार्बन डाइआक्साइड उत्सर्जित होती है, वही डीज़ल कार मे एक लिटर डीज़ल जलने से 2.7 किलो कार्बन डाइआक्साइड उत्सर्जित होता है. और अगर हम बात करें इलेक्ट्रिक गाड़ियों की तो उसमे ज़ीरो इमिशन होता है.

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EV कार्स अभी हम सबकि जरूरत है, और इसे आगे बढ़ाने के लिए नई टेक्नॉलजी पर दिन-प्रति-दिन काम हो रहा है. इस विडिओ से हमारा प्रयास यह था कि हम आपको इलेक्ट्रिक गाड़ी के बारे में हर वो जानकारी दे पाए जो हम सबके लिए जरूरी है.

 

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