ये युवा.. गुजरात चुनाव में बनेंगे बीजेपी के गले की हड्डी

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गुजरात चुनाव जैसे जैसे नजदीक आ रहें हैं वैसे वैसे चुनावी सरगर्मियां तेज हो गयी हैं। इसी सरगर्मियों के बीच भारतीय जनता पार्टी के लिए कई मुश्किलें बढ़ती नजर आ रहीं है, बीजेपी के लिए ये मुश्किलें कोई और नहीं बल्कि तीन युवा नेता बढ़ाते नजर आ रहे हैं। इन युवाओं में हार्दिक पटेल शीर्ष पर है इनके बाद अल्पेश ठाकुर और जिग्रेश मेवानी बीजेपी के लिए मुसिबत बन सकते है। गुजरात की सत्ता पर दो दशक से काबिज बीजेपी के लिए इस बार राह आसान नहीं है।

हार्दिक पटेल को प्रदेश ही नहीं बल्कि देश में नई पहचान मिली…

राज्य में भाजपा के खिलाफ जहां एक तरह खिलाफ एंटी इनकम्बेंसी फैक्टर है। तो दूसरी ओर आरक्षण, शराबबंदी, बेरोजगारी और दलित उत्पीड़न आंदोलन के जरिए अपनी पहचान बनाने वाले हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकुर और जिग्नेश मेवानी बीजेपी के राजनीतिक समीकरणों को पूरी तरह से बिगाड़ते नजर आ रहे हैं। गुजरात में सबसे मजबूत पकड़ बनाने वाले हार्दिक पटेल की गुजरात में तूती बोलती है। पटेल आरक्षण आंदोलन के जरिए हार्दिक पटेल को प्रदेश ही नहीं बल्कि देश में नई पहचान मिली।

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पटेल ने आंदोलन के जरिए गुजरात की तस्वीर को बदल कर रख दिया। हार्दिक पटेल ने 25 अगस्त,2015 को अहमदाबाद के जीएमडीसी ग्राउंड में रैली की। इस रैली में 5 लाख से ज्यादा लोगों की भीड़ हार्दिक के फऱमान पर सड़कों पर उतर आई थी।

जो फिलहाल नाराज माना जा रहा है…

पिछले दिनों हार्दिक ने बीजेपी सरकार के खिलाफ संकल्प यात्रा निकाला था और राहुल गांधी के सौराष्ट्र यात्रा के दौरान स्वागत भी किया। गुजरात में पटेल समुदाय करीब बीस फीसदी है। बीत प्रतिशत बीजेपी खेल बिगाड़ने के लिए काफी हैं। राज्य की 182 विधानसभा सीटों में से 70 सीटों पर पटेल समुदाय का प्रभाव है। पिछले दो दशक से राज्य का पटेल समुदाय बीजेपी का परम्परागत वोटर रहा है, जो फिलहाल नाराज माना जा रहा है।

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इसी का नतीजा रहा कि 2015 में हुए जिला पंचायत चुनाव में से सौराष्ट्र की 11 में से 8 पर कांग्रेस विजयी रही और भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ा। विधानसभा चुनाव रहते भाजपा पटेलों की नाराजगी को दूर नहीं किया तो जीत का सिलसिला जारी रखना आसान नहीं होगा। गुजरात में युवा दलित नेता के तौर पर जिग्नेश मेवानी ने अपनी पहचान बनाई है।

सूबे में करीब 7 फीसदी दलित मतदाता हैं…

जिग्नेश पेशे से वकील और सामाजिक कार्यकर्ता हैं। ऊना में गोरक्षा के नाम पर दलितों की पिटाई के खिलाफ हुए आंदोलन जिग्नेश ने नेतृत्व किया। जिग्नेश ने वो काम कर दिखाया, जिससे दलित समाज सदियों से मुक्त होना चाहता था। ‘आजादी कूच आंदोलन’ में जिग्नेश ने 20 हजार दलितों को एक साथ मरे जानवर न उठाने और मैला न ढोने की शपथ दिलाई। जिग्नेश की अगुवाई वाले दलित आंदोलन ने बहुत ही शांति के साथ सत्ता को करारा झटका दिया। इस आंदोलन को हर वर्ग का समर्थन मिला। आंदोलन में दलित मुस्लिम एकता का बेजोड़ नजारा देखा गया। सूबे में करीब 7 फीसदी दलित मतदाता हैं। पटेल आरक्षण आंदोलन के विरोध में अल्पेश ठाकुर खड़े हुए और गुजरात के ओबीसी के नेता बन गए।

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अल्पेश ठाकुर गुजरात क्षत्रिय-ठाकुर सेना के अध्यक्ष के साथ-साथ ओबीसी एकता मंच के संयोजक भी है। अल्पेश ने अन्य पिछड़ा वर्ग के 146 समुदायों को एकजुट करने का काम किया। एक रैली के दौरान अल्पेश ने धमकी दी थी कि अगर पटेलों की मांगों के सामने बीजेपी शासित गुजरात सरकार ने घुटने टेके तो सरकार को उखाड़ फेंका जाएगा।

अल्पेश इसी नाराजगी को कैश कराने के मूड में हैं…

अल्पेश लगातार बीजेपी को निशाने पर ले रहे हैं।अल्पेश ठाकुर शराबबंदी और बेरोजगारी को मुद्दा बना रहे हैं। अल्पेश ने गुजरात के करीब 80 देहात की विधानसभा सीटों पर बूथ स्तर पर प्रबंधन का काम किया है। अल्पेश के पास ओबीसी समाज का साथ है, जो कि गुजरात में 60 से ज्यादा सीटों पर अपना असर रखता है। पिछले कई चुनाव से पिछड़ा वर्ग मतदाता बीजेपी के साथ हैं, लेकिन कुछ समय से पिछड़ा वर्ग नाराज है। अल्पेश इसी नाराजगी को कैश कराने के मूड में हैं।

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