भारत के बौद्ध पथ पर विदेशी पर्यटक बढाने की कवायद, जापान के विश्वविद्यालय और बीएचयू में समझौता
वाराणसी के सारनाथ समेत भारत के बौद्ध परिपथ पर विदेशी पर्यटकों की संख्या बढ़ाने की कवायद शुरू की गई है. इसी परिप्रेक्ष्य में बीएचयू और जापान के तकाराजुका विश्वविद्यालय के बीच समझौता होगा. यूपी और बिहार के सात और नेपाल के एकमात्र बौद्ध स्थल में निवेश बढ़ाये जाने के साथ काशी और जापान की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत की एक सूची तैयार कर रिसर्च किया जाएगा. तकाराजुका विश्वविद्यालय में हिंदी भाषा की पढ़ाई होगी. बीएचयू के छात्र जापान और वहां के छात्र यहां आकर एक प्लेटफार्म पर चर्चा करेंगे. जापान के पर्यटन विकास का मॉडल वाराणसी और पूरे बौद्ध परिपथ में लागू किया जाएगा. इससे जापान से बनारस आने वाले वाले बौद्ध पर्यटकों की संख्या बढ़ेगी.
इसी सिलसिले में बीएचयू में जापानी छात्रों और प्रोफेसरों के साथ हाइब्रिड मोड में एक सम्मेीलन किया गया. इसी में इस सहयोग को लेकर सहमति बनी है. सेमिनार में जापान के सबसे खूबसूरत शहरों में से एक मियाकोजिमा के पर्यटन मॉडल पर चर्चा हुई. बताया गया कि स्थानीय संसाधनों और पारंपरिक शिल्प की वजह से यहां पर दुनिया भर के पर्यटक आते हैं.
घटे जापानी पर्यटक, चीन की तरफ आकर्षित
सम्मेलन के आयोजक पर्यटन विशेषज्ञ डॉ. राणा प्रवीन ने कहा कि अभी भी वाराणसी और भारत में जापानी पर्यटकों का काफी कम हिस्सा है. जबकि, विदेशी और घरेलू पर्यटक जापान के किसी भी एक शहर में नहीं आते. 2019 तक भारत में 2.38 लाख जापानी पर्यटक आते थे, लेकिन 2020 तक ये संख्या 50 हजार तक सीमित हो गई.
डॉ. राणा ने कहा कि जापानी पर्यटकों की कमी के पीछे रिसर्च करने पर पता चला कि उन्हें जो भी सहूलियत चाहिए, वो नहीं मिल पा रही है. इससे जापान के काफी पर्यटक बौद्ध टूरिज्म के लिए चीन चले जा रहे हैं. हमें इसी ट्रेंड को रोकना है. इसके लिए अब सहयोग की जरूरत है. इंडिया-जापान 2025 विजन तैयार किया गया था. बौद्ध सर्किट पर जापान काफी पैसा निवेश कर रहा है. ये निवेश बनारस और भारत भर के बौद्ध स्थलों तक तेजी से लाना होगा.
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स्कॉलरशिप और एक्सचेंज प्रोग्राम को बढ़ाना होगा
सम्मेलन में कला संकाय के प्रमुख प्रो. माया शंकर पांडेय और कई विशेषज्ञ मौजूद थे. इनमें शामिल श्रीलंका के छात्र निरदुसा शांतिकुमार और बीएचयू के उज्जवल झा ने कहा कि इस सहयोग के तहत स्नातक, परा स्नातक और संयुक्त पीएचडी प्रोग्राम शुरू करने होंगे. स्कॉलरशिप और एक्सचेंज प्रोग्राम को भी बढ़ाना होगा. म्यांमार के प्या फ्यो थांट ने कहा कि जापान के पर्यटन उद्योग ने यहां की संस्कृति और अंतरराष्ट्रीय बाजार को भी प्रभावित किया है. बीएचयू के छात्र शशांक कुमार और अनन्य लखेरा ने बताया कि छठवीं शताब्दी में भारत से ही बौद्ध धर्म जापान में गया, इसलिए जापान भारत में बौद्ध सर्किट पर निवेश करता है.