विकास के बुलडोज़र से उजड़े सपने, अंधेरे में दिखता भविष्य …

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लखनऊ के वसंतकुंज में रहने वाली 50 साल की बुशराह अकबरनगर में पली और बढ़ीं. अकबरनगर में अल्पसंख्यक विभाग से मान्यता लेकर बुशराह वहां के बच्चों को पढ़ाया करती थीं. लेकिन कुकरैल रिवर फ्रन्ट की आंधी ने बुशराह निखत से उनका स्कूल छीन लिया. निखत अब अपने आस-पड़ोस के बच्चों को वसंत कुंज के 280 स्क्वायर फ़ीट के मकान में ही पढ़ा रही हैं.

बता दें कि प्रदेश की योगी सरकार ने साबरमती रिवर फ्रन्ट के तर्ज पर बनने वाले कुकरैल रिवर फ्रन्ट ने अकबरनगर में रहने वाले 20,000 लोगों को विस्थापित कर दिया है. यहां रहने वाले लोगों को सरकार ने लखनऊ के वसंत कुंज में सरकारी मकान दिए है. आसान किश्तों पर मिले इन घर ने लोगों को छत तो दे दी लेकिन किसी से उनका रोजगार छीना तो किसी से उनकी ज़िंदगी.

 

बुशराह निखत ने बातचीत में आगे बताया कि “मैं अपने पापा के 1100 स्क्वायर फ़ीट के अकबर नगर घर में बच्चों को पढ़ाया करती थी. बच्चों को 5वीं क्लास की तक कि शिक्षा देती थी, जिसकी जैसी इंकम थी उस हिसाब से मुझे फीस मिलती थी. उसी पैसे से मैं अपने घर का भरण-पोषण किया करती थी. यहां पर रोजगार नहीं और बच्चों का भविष्य खतरे में है. पैसे और रोजगार ना होने के कारण अपने बच्चों तक को पढ़ने नहीं भेज पा रही हूं”.

 

‘ना नौकरी है ना स्कूल, कैसे बनेगा भविष्य’…

इतना ही नहीं 65 साल की हनीकुन अपनी परिवार के साथ वसंत कुंज में रह रही हैं. अकबरनगर में 40 साल रहने के बाद हनीकुन को अपना वह पुराना घर तो याद आता है लेकिन उससे ज्यादा उन्हे अपने बच्चों के लिए रोजगार और पढ़ाई की चिंता सताई जा रही है.

हनीकुन ने बताया कि-“यहां पर हम रोटी-रोटी को तरस रहे है. यहां पर ना नौकरी है ना पढ़ाई की सुविधा है. हमारे बच्चे पढ़ने नहीं जा पा रहे हैं. हम लोग बहुत दिक्कत में है और मोदी जी से गुजारिश है कि हमें अकबरनगर में ही घर दे दीजिए. हम लोग वहां किसी भी तरह से गुजर बसर कर लेंगे.

 

LDA का कहना है कि कुकरैल रिवर फ्रन्ट को साबरमती रिवर फ्रन्ट के तर्ज पर तैयार किया जाना है. इसके लिए नदी में पानी लाना जरूरी है जिसके लिए सरकार ने दावा किया है कि अस्ति गांव से लेकर गोमती तक कुकरैल के रास्ते में आने वाले सभी झील, तालाब, और नदी में पानी से उसे पुर्नजीवित किया जाएगा. बताया जा रहा है कि यह नदी करीब 17 गांव से होकर गोमती में मिलती है जिसके लिए सरकार अपनी योजना बना रही है. इस योजना में आस पास के 22 तालाब और 5 झीलों को भी पुर्नजीवित किया जाएगा.

अस्ति गांव में सूखा पड़ा है कुआं- कहां से आएगा पानी …

सरकार के दावे को नकारते हुए इमरान कहते हैं कि यह नदी नहीं बल्कि नाला है. अस्ति गांव से इसका उद्गम है, और जहां से यह नाला जिसे सरकार नदी बोल रही है कुआं सूखा पड़ा है. इमरान भी अकबरनगर के निवासी थे जिनका घर सरकारी बुलडोज़र के गिरफ्त में आ गया है.
उन्होंने बताया कि सरकार की “35 मीटर के रिवरबेड की मांग थी लेकिन लोगों ने 50 मीटर तक देने के लिए हामी भारी. कुछ दिनों बाद लखनऊ डेवलपमेंट अथॉरिटी ( LDA ) द्वारा निरीक्षण कर धवस्तीकरण का काम शुरू कर दिया गया था.

बुलडोज़र की गिरफ्त में आ रही है लोगों की मेहनत

वहीं अब अकबर नगर के बाद अस्ति गांव में लोगों को डर है कि इस रिवरफ्रन्ट की चपेट में उनके भी घर आ सकते है. वहां पर होने वाले सर्वे और निरीक्षण से सभी लोग हताश और निराश हैं. 40 साल के रिज़वान ने लोन लेकर अपना घर बनवाया है. उनका कहना है कि नाले को सरकार नहर बनाना चाहती है. अब रिज़्वान को इस बात की चिंता सताती है कि अगर उनका घर चला गया तो वह कहां रहेंगे.

“नाले को नहर बताकर सरकार हमारे घरों को तोड़ना चाहती है. लोग सर्वे करने आते है तो कोई बताता है कि यह 10 फीट जाएगा. कुछ अधिकारी कहते हैं कि यह पूरा मकान चला जाएगा. हम लोगों ने बड़ी मेहनत से अपना मकान बनवाया है, उसे सरकार गिरा देना चाहती है. हमारे घर को अवैध बता कर तोड़ने की साजिश की जा रही है.

इतना ही नहीं कई लोगों की जिंदगी नाले और नदी के बीच में फंसी हुई है उसी में एक है किरन. LDA के सर्वे से परेशान किरन हर उस आदमी के पास जाती है जिनसे उन्हें कुछ राहत मिल सकती है. किरन बताती है कि यहां कभी नदी थी ही नहीं, बल्कि यह एक नाला ही था.

किरन ने बताया कि बहुत परेशान कर रहे हैं LDA वाले. सरकार कुकरैल नदी बनाना चाह रही है. हमेशा से यहां बस एक नाला था. LDA वाले हमारे घर तोड़ना चाहते हैं, जिस नाले को नदी बना रहे हैं वह कुआं भी सूखा हुआ है.

नाले और नदी के फ़र्क ने 20,000 लोगों को अकबरनगर से वसंत कुंज भेज तो दिया लेकिन उनसे उनकी सुविधाएं और रोजगार के मौके छीन लिए. अकबरनगर में डेवलपमेंट के बुलडोज़र ने वहां पर रहने वाले लोगों के घरों और उनकी यादों को ज़मींदोज़ कर दिया है. स्कूल, अस्पताल और रोजगार की मांग करती राबिया का भी कुछ ऐसा ही कहती है.

विस्थापन के बाद रोजगार और स्कूल की तलाश में राबिया खातून

अकबर नगर से वसंतकुंज गई राबिया खातून ने कहा “जुमे वाले रात को पुलिस ने हमे घर खाली करने को बोल था. 3 पीढ़ी से हम अकबरनगर में रह रहे थे और उतना सामान 2 दिन से बांधना कठिन था. मुझे तो घर भी नहीं मिला, सिर्फ वहां से निकालने को कहा गया था. अब यहां आस-पास ना स्कूल है ना अस्पताल है. बच्चों को पढ़ने कैसे भेजे, रोजगार का कोई आगम नहीं है.

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रोजगार और सुविधाओं की गुहार लगाती राबिया 5 लोगों के साथ एक छोटे से घर में रह रही हैं. ऐसा ही कुछ 2004 में दिल्ली के यमुना पूस्ता में हुआ था जब 1,50,000 लोगों को वहां से हटाया गया था .इस बात पर कि उनकी वजह से यमुना नदी गंदी हो रही है और फ्लडप्लैन की ज़मीनों पर झुग्गी-झोपड़ियां बनाई जा रही है.

 

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2013 में पारित Rehabilitation and Resettlement Act के अनुसार जब भी सरकार लोगों को उनके जगह से शिफ्ट करें तो यह सरकार की जिम्मेदारी है कि उन्हें उतनी सुविधाएं और रोजगार के अवसर भी दिए जाने चाहिए. लखनऊ के अकबरनगर में रहने वाले लोगों के हिसाब से उन्हें रोजगार के कोई अवसर नहीं मिले हैं. सुविधाओं से वंछित अब लोग अपना भरोसा खोते जा रहे हैं.

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