क्‍या कर्नाटक में बंधुआ मजदूरी आज भी जारी है?

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भारत को आजाद हुए 70 साल से अधिक हो गये पर समाज का एक ऐसा वर्ग जिसे हम मजदूर कहते हैं वह आज भी गुलामी की जिंदगी ही जी रहा है। दो वक्‍त का भरपेट भोजन उसके लिए अभी भी ‘जन्‍नत’ ही है। बात कर्नाटक की करें तो यहां की बीएस येदियुरप्‍पा सरकार तो मजदूरों को गुलाम ही समझती है। कर्नाटक सरकार का प्रवासी मजदूरों के उनके घरों तक पहुंचाने के लिए चलायी जा रही स्‍पेशल ट्रेन को कैंसिल कर देने का फरमान कर्नाटक सरकार के इसी नियत की ओर संकेत करता है।

ये बात अलग है कि जब सरकार के इस निर्णय की चारों तरफ आलोचना होने लगी तो गुरुवार को उसने नया आदेश जारी कर मजदूरों स्‍पेशल ट्रेन को फिर से चलाये जाने के लिए कहा है। पर सवाल यह उठता है कि सरकारें मजदूरों को क्‍या समझती हैं? आखिर इन गरीब मजदूरों का कसूर क्‍या है? क्‍या गरीबी उनका गुनाह है? उनका भी कोई अच्‍छा दिन होगा कि उनके माथे पर गरीबी और भूख की मुहर आने वाले वाले और 70 सालों तक उनकी कहानी कहती रहेंगी। या फिर जिस बंधुआ मजदूरी के उन्‍मूलन का दावा सरकारें करती है वह सिर्फ बातें भर ही है?

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मजदूर चले गये तो काम कौन करेगा-

पहले ये जान लेना जरुरी है कर्नाटक में मजदूरों के साथ क्‍या हुआ। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक प्रवासी मजदूरों के नोडल आफिसर एन मंजुनाथ ने साउथ वेस्‍टर्न रेलवे के जनरल मैनेजर को लिखा है कि अब उन्‍हें किसी स्‍पेशल ट्रेन की जरूरत नहीं है। इससे पहले उन्‍होंने कर्नाटक से तीन स्‍पेशल ट्रेन चलाने के लिए रेलवे से कहा था। पर अब उन्‍होंने इन ट्रेनों को कैंसिल करने को कहा है। कर्नाटक से ये ट्रेन बिहार जाने वाली थी। कर्नाटक में देश भर के कामगार हैं पर उनमें बिहार व झारखंड वालों की संख्‍या अधिक है।

जो अधिकतर फैक्ट्रियों और कंस्‍ट्रक्‍शन साइट्स में काम करते हैं। उद्यमी संगठनों का मानना है कि मजदूरों के चले जाने के से प्रदेश में आर्थिक सुधार की गति और धीमी हो जायेगी। मजदूर एक बार घर चले गये तो उनके वापस आने में समय लगेगा या ये भी हो सकता है कि वो वापस ही न आयें। ऐसी स्थिति में लॉकडाउन के चलते पहले से ही खस्‍ताहाल हो चुकी प्रदेश की अर्थव्‍यवस्‍था को तगड़ा झटका लग सकता है।

यूपी की बात करें तो योगी सरकार देश के विभिन्‍न भागों से तकरीबन छह लाख मजदूरों को वापस लाने का दावा कर रही है। स्‍पेशल ट्रेन के अलावा मजदूरों के लिए दस हजार बसों की व्‍यवस्‍था करने का भी निर्देश दिया है। झारखंड में भी मजदूरों का स्‍पेशल ट्रेन से वापस आना जारी है। वहां के मुख्‍यमंत्री शिबू सोरेन ने तो जरूरत पड़ने पर मजदूरों को एयर लिफ्ट कराने की भी बात कही है। बिहार में नितीश सरकार ने भी मजदूरों को वापस लाने के लिए किराये का खर्च वहन करने और उन्‍हें 500 रुपये अतिरिक्‍त देने की बात भी कही है।

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बंधुआ मजदूरी नहीं तो और क्‍या है-

बहरहाल जो भी हो कर्नाटक सरकार के इस फैसले ने मजदूरों को लेकर एक नई बहस छेड़ दी है। राजनीतिक विश्‍लेषक और स्‍वराज इंडिया के अध्‍यक्ष योगेंद्र यादव कर्नाटक सरकार के इस फैसले को सीधे सीधे बंधुआ मजदूरी करार देते हैं। एक न्‍यूज पोटर्ल को दिये गये अपने वक्‍तव्‍य में उन्‍होंने कर्नाटक सरकार के इस फैसले को गिरमिटया मजदूरों भी से जोड़ा है।

“गिरमिटिया मजदूर के बारे में कभी सुना है। कर्नाटक सरकार का निर्णय उसकी याद क्‍यों दिलाता है। 19वीं या 20वीं शताब्‍दी की शुरुआत तक भोजपुर, बिहार, झारखंड आदि इलाकों से मजदूरों को लिया जाता था और उनसे एक एग्रीमेंट के उपर अंगूठा लगवा लिया जाता था। वो सोचते थे कि उन्‍हें कलकत्‍ता आदि जगहों पर ले जाया जा रहा लेकिन वे पहुंचते थे त्रिनिदाद, फिजी, केनिया श्रीलंका जैसे देशों को। यहां उनसे बधुंआ मजदूरों की तरह काम करवाया जाता था। उनसे जो एग्रीमेंट कराया जाता था मजदूरों की भाषा में गिरमिट कहा गया और उसी से निकला है गिरमिटया मजदूर…

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स्‍वान नेटवर्क की रिपोर्ट बताती है कि

कर्नाटक के 78 परसेंट मजदूरों को उनके मालिकों ने एक भी पैसा नहीं दिया है।

वहीं 16 परसेंट मजदूरों को थोड़ा बहुत दिया गया है।

आठ परसेंट मजदूरों को कुछ पैसा दिया गया है।

अधिकांश मजदूरों के पास सिर्फ दो दिन का राशन है।

कर्नाटक का खुद का मजदूर खाली है लेकिन वो सस्‍ता नहीं है। कंस्‍टृक्‍शन साइट्स के मालिकों को सस्‍ता मजदूर चाहिए। पर वो मजदूर भाग न जाये इसलिए ट्रेन बंद करा दी। क्‍या ये बंधुआ मजदूरी नहीं है।“

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या एहसान चुका रहे हैं सीएम !-

राजीनति के धुरंधर कर्नाटक में मजदूरों के स्‍पेशल ट्रेन को कैंसिल करने के पीछे सरकार के गठन के समय पूंजीपतियों के सहयोग की कीमत के रूप में भी देख रहे हैं। अगर हम थोड़ा पीछे चले और सरकार के गठन के घटनाक्रम को देखें तो हम पायेंगे कि किस तरह से उस दौरान येदियुरप्‍पा पर कांग्रेस के विधायकों के खरीदने के आरोप लगे थे। राजनीति के गलियारों में चर्चा है कि पूंजीपतियों ने उस वक्‍त उनकी बहुत मदद की थी।

अब येदियुरप्‍पा उनके एहसान चुका रहे हैं। वैसे भी देखा जाय तो बीजेपी पर पूंजीपतियों की सरकार होने के आरोप लगते रहे हैं। अब मजदूरों को अपने घर जाने से रोक देना उसके इसी पूंजीवादी चेहरे की एक झलक है। कर्नाटक सरकार ने पहले रेलवे से ट्रेन बिहार के लिए चलाये जाने की मांग की थी। पर बाद में बिल्‍डर्स एसोसिएशन के साथ हुई मी‍टिंग के बाद सरकार ने अपने फैसले को बदलते हुए स्‍पेशल ट्रेनों को कैंसिल कर दिया।

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