काशी हिंदू विश्वविद्यालय में धूमधाम से मनाई गई धन्वंतरि जयंती
वाराणसी: काशी हिंदू विश्वविद्यालय आयुर्वेद संकाय के धन्वंतरि हाल में 9 वां राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस धन्वंतरि जयंती के उपलक्ष में धन्वंतरि जयंती और शिष्योंपनयन संस्कार बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया गया. इस दौरान भगवान धन्वंतरि का विधि विधान के साथ पूजन अर्चन किया गया. भगवान धनवंतरी के पास आयुर्वेद जड़ी बूटियां का भोग भी लगाया गया. वैदिक विद्वानों ने वैदिक मंगलाचरण के साथ ही पूजन अर्चन किया.
बता दे की बीएचयू के आयुर्वेद संकाय द्वारा धन्वंतरि पूजन का आयोजन संकाय में स्थित धन्वंतरि भवन में आयोजित किया गया है. जिसमें आयुर्वेदिक की विभिन्न औषधियों, पुष्पों, फलों से संसार के आरोग्यता की कामना की गई. इसके अलावा सभी चिकित्सा एवं छात्रों को संस्कृत में आयुर्वेद के अध्ययन के शपथ दिलाई गई. इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में प्रोफेसर वांगचुक दोरजी नेगी कुलपति केंद्रीय उच्च तिरुपति शिक्षण संस्थान सारनाथ विशिष्ट वक्ता प्रोफेसर मनोरंजन साहू कार्यक्रम के अध्यक्ष प्रोफेसर प्रदीप कुमार गोस्वामी कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रोफेसर सत्यनारायण संखवार और कार्यक्रम का संयोजक प्रोफेसर चंद्रशेखर पांडे रहे.
मुख्य अतिथि के रूप में विराजमान प्रोफेसर वांगचुक दोरजी नेगी ने कहा कि प्राचीन पद्धति को नए कलेवर में मानवता की सेवा के लिए प्रस्तुत किया जाना चाहिए. भारतीय ज्ञान परंपरा में मानवता के विकास से ज्ञान में वृद्धि होती है. ज्ञान संचित रहे और इसका प्रसार होना चाहिए. भविष्य ज्ञान का है. ज्ञान से हम विश्व के सिरमौर बन सकते हैं. प्रो. एस एन शंखवार ने कहा कि ऋषियों के पास ज्ञान की असीमित उपलब्धि थी. उपलब्ध विज्ञान के संरक्षण की आवश्यकता है.
गुरु शिष्य परंपरा के द्वारा विद्या का संरक्षण करना चाहिए. विद्या का प्रचार होना चाहिए. प्रदीप कुमार गोस्वामी बताया कि भारतीय पौराणिक दृष्टि से धनतेरस को स्वास्थ्य के देवता का दिवस माना जाता है. भगवान धन्वंतरि आरोग्य, सेहत, आयु और तेज के आराध्य देवता हैं. भगवान धन्वंतरि से आज के दिन प्रार्थना की जाती है कि वे समस्त जगत को निरोग कर मानव समाज को दीर्घायुष्य प्रदान करें. इस दौरान आयुर्वेद संकाय के संज्ञाहरण विभाग शिक्षक एवम शोधार्थी द्वारा लिखित पुस्तकों का भी विमोचन मुख्य अतिथि मुख्य वक्ता कार्यक्रम के अध्यक्ष द्वारा किया गया.
देश के सबसे पुराने आयुर्वेद शिक्षा केंद्रों में से एक सन 1922 में ओरिएंटल लर्निंग और थियोलॉजी संकाय के एक विभाग के रूप में शुरू हुआ और 1927 में आयुर्वेद कॉलेज, 1963 में पोस्ट-ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ इंडियन मेडिसिन और अंततः 1971 में आयुर्वेद संकाय में विस्तारित हुआ. आयुर्वेद संकाय, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के चिकित्सा विज्ञान संस्थान से संबंधित तीन संकायों अर्थात् चिकित्सा संकाय, आयुर्वेद संकाय और दंत चिकित्सा विज्ञान संकाय में से एक है.
एकीकृत चिकित्सा के क्षेत्र में अग्रणी
बता दें कि आयुर्वेद संकाय एकीकृत चिकित्सा के क्षेत्र में अग्रणी संस्थानों में से एक है. बीएचयू के आयुर्वेद संकाय द्वारा विकसित एकीकृत मॉडल को भारत और विदेशों में अन्य संस्थानों द्वारा व्यापक रूप से स्वीकार और अपनाया गया है. आयुर्वेद संकाय ने भारत में स्वास्थ्य सेवा परिदृश्य को आकार देने वाले हजारों शिक्षाविदों, शोधकर्ताओं और स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं को तैयार किया है.
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बहुविषयक पारिस्थितिकी तंत्र का हिस्सा
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के एक हिस्से के रूप में, 5 संस्थानों, 16 संकायों और 135 विभागों वाले विश्वविद्यालय मे आयुर्वेद संकाय को एक अति प्राचीनतम बहु-विषयक पारिस्थितिकी तंत्र द्वारा समर्थित किया जाता है. संकाय सदस्यों और वैज्ञानिकों को इस पारिस्थितिकी तंत्र में सभी इकाइयों की अनुसंधान सुविधाओं का उपयोग करने का अवसर मिलता है.
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आयुर्वेद संकाय में 17 विभाग हैं; आयुर्वेद के सभी नैदानिक क्षेत्रों में चिकित्सा और शल्य चिकित्सा सेवाओं के साथ एक अच्छी तरह से सुसज्जित 200 बिस्तरों वाला शिक्षण अस्पताल, पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश और झारखंड सहित भारत के एक बड़े हिस्से में स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करता है; इसमें एक फार्मेसी, एक पुस्तकालय और एक हर्बल उद्यान भी है.
शैक्षिक कार्यक्रमों की एक श्रृंखला प्रदान करता है. इस संकाय मे आयुर्वेद और संबद्ध विषयों में बीएएमएस, एमडी (आयुर्वेद), एमएस (आयुर्वेद), पीएचडी और विभिन्न डिप्लोमा और सर्टिफिकेट पाठ्यक्रमों सहित कई शैक्षणिक कार्यक्रम प्रदान करते हैं.