ग्लोबल वार्मिंग से बचाएगी ‘देसी गाय’

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भारत में गाय को देवी का दर्जा प्राप्त है। गाय के भीतर देवताओं का वास माना गया है। गाय हमारी माता है या नहीं, यह भी एक राजनैतिक और सामाजिक मुद्दा हो सकता है। गाय को राष्ट्रीय पशु होना चाहिए या नहीं, कुछ लोग इसमे भी एक व्यापक मुद्दा तलाश रहे हैं। लेकिन इतनी मुसीबतों में पड़ी ये गाय ही हमें ग्लोबल वार्मिंग से होने वाले नुकसान से बचा सकती है।

शोध में हुआ खुलासा

हरियाणा में स्थित करनाल के राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान (एनडीआरआई) में अब तक हुए कई शोध और पिछले पांच वर्षों से नेशनल इनोवेशन्स इन क्लाइमेट रेसीलिएंट एग्रीकल्चर (एनआईसीआरए) प्रोजेक्ट के तहत चल रहे शोध का निष्कर्ष निकला है। शोध में इस बात की पुष्टि हुई है कि विदेशी और संकर नस्ल के दुधारू पशुओं के मुकाबले देसी गायों में ज्यादा तापमान सहने की क्षमता है और जलवायु परिवर्तन से वह कम प्रभावित होती हैं।

गर्मी सहने की क्षमता अधिक

देसी गायों की खाल गर्मी सोखने में सहायक है। उनमें कुछ ऐसे जीन भी मिले हैं, जो गर्मी सहने की क्षमता बढ़ाते हैं। वैज्ञानिकों के मुताबिक ज्यादा तापमान से संकर नस्ल की गाय के दूध में 15-20 प्रतिशत तक की कमी आ सकती है, लेकिन देसी नस्ल की गायों पर इसका असर नहीं पड़ता। तापमान में यह वृद्धि अगर लंबे समय तक चलती रहती है, तो दूध देने की क्षमता के साथ ही पशुओं की प्रजनन क्षमता पर भी विपरीत असर पड़ता है।

दूध पर पड़ता है प्रभाव

एनडीआरआई के वैज्ञानिकों के मुताबिक गर्मी और सर्दी में अधिकतम और न्यूनतम तापमान में थोड़े से अंतर का प्रभाव पशुओं की दूध देने की क्षमता पर पड़ता है। अध्ययन से पता चला है कि गर्मी में 40 डिग्री से ज्यादा और जाड़े में 20 डिग्री से कम तापमान होने पर दूध के उत्पादन में 30 फीसदी तक की गिरावट आ जाती है।

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