विशेष सत्र के अंतिम दिन दिल्ली सेवा बिल पर होगी चर्चा, जानें क्यों है विवाद …
Delhi service bill controversy : दो दिन के लिए शुरू किये गये दिल्ली विधानसभा के विशेष सत्र कुछ विशेष कारणों के चले एक और दिन बढा दिया गया था। जिसके चलते आज विशेष सत्र का यह तीसरा और आखिरी दिन है। प्राप्त जानकारी के अनुसार , सदन की कार्यवाही के दौरान आम आदमी पार्टी दिल्ली सेवा बिल का विरोध करेगी, इसके जरिए पार्टी भाजपा नेताओं और केन्द्र सरकार पर निशाना साधने का भी प्रयास करेगी ।
इसके साथ यह बात भी कही जा रही है कि, दिल्ली की आप पार्टी शुरू से दिल्ली सेवा बिल को लेकर विरोध करती रही है, इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में आप ने याचिका भी दायर की थी जो इस समय विचाराधीन है। आप को आशा है कि शीर्ष अदालत दिल्ली सेवा कानून को निष्प्रभावी घोषित कर देगी । आज दोनों मसले यानी दिल्ली सेवा कानून और जनता से जुड़े मसलों पर चर्चा न होने पर सदन में हंगामे के आसार है. विधानसभा की कार्यवाही सुबह 11 बजे शुरू होते ही आज सदन में हंगामे के आसार हैं।
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क्या है दिल्ली सेवा विधेयक?
दिल्ली सेवा बिल में धारा 3A को हटा दिया गया है। धारा 3Aअध्यादेश में थी, इस धारा में कहा गया है कि, किसी भी सर्विसेस पर दिल्ली विधानसभा का कोई नियंत्रण नहीं होगा, इस धारा के अनुसार किसी भी सर्विसेस पर उपराज्यपाल को ज्यादा अधिकार रहेगा। हालांकि, इस बिल में एक प्रावधान ‘नेशनल कैपिटल सिविल सर्विस अथॉरिटी’ के गठन से जुड़ा है। ये अथॉरिटी अफसरों की ट्रांसफर-पोस्टिंग और नियंत्रण से जुड़े मामलो को लेकर फैसला लेगी।
इसके साथ ही इसकी अथॉरिटी के चेयरमैन मुख्यमंत्री होंगे. उनके अलावा इसमें मुख्य सचिव और प्रमुख सचिव (गृह) भी होंगे। ये अथॉरिटी जमीन, पुलिस और पब्लिक ऑर्डर को छोड़कर बाकी मामलों से जुड़े अफसरों की ट्रांसफर और पोस्टिंग की सिफारिश करेगी। ये सिफारिश उपराज्यपाल को की जाएगी। इतना ही नहीं, अगर किसी अफसर के खिलाफ कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई की जानी है तो उसकी सिफारिश भी ये अथॉरिटी ही करेगी। अथॉरिटी के सिफारिश पर आखिरी फैसला उपराज्यपाल का होगा. अगर कोई मतभेद होता है तो आखिरी फैसला उपराज्यपाल का ही माना जाएगा।
क्यों लाया गया है ये बिल?
– साल 1991 में संविधान में 69वां संशोधन किया गया. इससे दिल्ली को ‘राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र’ यानी ‘नेशनल कैपिटल टेरेटरी’ का दर्जा मिला. इसके लिए गवर्नमेंट ऑफ नेशनल कैपिटल टेरेटरी एक्ट 1991 बना.
– 2021 में केंद्र सरकार ने इस कानून में संशोधन किया. केंद्र ने कहा कि 1991 में कुछ खामियां थीं. पुराने कानून में चार संशोधन किए गए. इसमें प्रावधान किया गया कि विधानसभा कोई भी कानून बनाएगी तो उसे सरकार की बजाय ‘उपराज्यपाल’ माना जाएगा. साथ ही ये भी प्रावधान किया गया कि दिल्ली की कैबिनेट प्रशासनिक मामलों से जुड़े फैसले नहीं ले सकती.
– दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार ने इस कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. इस पर 11 मई को सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया. सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया कि दिल्ली की नौकरशाही पर चुनी हुई सरकार का ही कंट्रोल है और अफसरों की ट्रांसफर-पोस्टिंग पर भी अधिकार भी उसी का है.
– सुप्रीम कोर्ट ने ये भी साफ कर दिया है कि पुलिस, जमीन और पब्लिक ऑर्डर को छोड़कर बाकी सभी दूसरे मसलों पर उपराज्यपाल को दिल्ली सरकार की सलाह माननी होगी.
– इसी फैसले के खिलाफ 19 मई को केंद्र सरकार एक अध्यादेश लेकर आई. अध्यादेश के जरिए अफसरों की ट्रांसफर और पोस्टिंग से जुड़ा आखिरी फैसला लेने का अधिकार उपराज्यपाल को दे दिया गया.
– इसी अध्यादेश को कानून की शक्ल देने के लिए संसद में ये बिल लाया गया है. इस बिल में कुछ ऐसी बातें भी हैं जो अध्यादेश में नहीं थी.
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केंद्र और दिल्ली सरकार में विधेयक को लेकर क्यों है विवाद
गौरतलब है कि, दिल्ली के अधिकारों को लेकर केन्द्र और केजरीवाल सरकार में हमेशा से जंग रही है। विधानसभा और सरकार के कामकाज के लिए एक रूपरेखा प्रदान करने के लिए राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (GNCTD) अधिनियम, 1991 लागू हुआ था, साल 2001 में इस विधेयक में संशोधन कर दिया गया । जिसके चलते सरकार के संचालन, कामकाज में बदलाव किये गये थे। इसके साथ ही उपराज्यपाल कुछ अतिरिक्त अधिकार प्रदान किये गये। इसके मुताबिक, चुनी हुई सरकार के लिए किसी भी फैसले के लिए एलजी की राय लेनी अनिवार्य किया गया था।
GNCTD अधिनियम में किए गए संशोधन में कहा गया था, ‘राज्य की विधानसभा द्वारा बनाए गए किसी भी कानून में सरकार का मतलब उपराज्यपाल होगा.’ इसी वाक्य पर मूल रूप से दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार को आपत्ति थी. इसी को आम आदमी पार्टी ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. केजरीवाल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से मांग की थी कि राजधानी में भूमि और पुलिस जैसे कुछ मामलों को छोड़कर बाकी सभी मामलों में दिल्ली की चुनी हुई सरकार की सर्वोच्चता होनी चाहिए।