खान मार्केट के इस बुक स्टोर ने दिल्ली को बनते देखा है, पाकिस्तान में हुई थी शुरुआत, जानें पूरा इतिहास

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राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के व्यस्ततम इलाकों में शुमार होने वाले खान मार्केट की अपनी एक खास पहचान हैं. यहीं पर अभिनव, खान मार्केट में सबसे पुराने किताबों की दुकान ‘फकीर चंद बुक स्टोर’ को चलाते है. अभिनव का ये बुक स्टोर उनके पूर्वजों से विरासत में मिला है. उनके दादा फकीर चंद ने इस स्टोर कि स्थापना पहली बार पाकिस्तान के पेशावर में की थी. बंटवारे के बाद उन्हें भारत आना पड़ा. बंटवारे के बाद फिर से फकीर चंद ने दिल्ली मे अपने बुक स्टोर को फिर से शुरू किया.

तय किया पेशावर से दिल्ली तक का सफर…

फकीर चंद बुक स्टोर की शुरुआत पाकिस्तान के पेशावर मे हुई थी. बंटवारे के बाद उन्हें भारत आना पड़ा. अभिनव का कहना है कि ‘पेशावर मे अब स्टोर नहीं है. लेकिन हमारा अभी भी पाकिस्तान से दिल का रिश्ता है.’ पाकिस्तान में शुरू हुए इस स्टोर ने जहां एक तरफ बंटवारे का दर्द झेला है तो दूसरी तरफ अपनी आंखों के सामने आज की दिल्ली को बनते देखा है.

साल 1947 के भारत-पाकिस्तान बंटवारे के एक-दो साल बाद फकीर चंद को खान मार्केट मे प्रॉपर्टी अलॉट की गई. साल 1951 से दिल्ली के खान मार्केट में फकीर चंद बुक स्टोर मौजूद है. खान मार्केट बन रहा था और फकीर चंद बुक स्टोर भी उसी के साथ बड़ा हो रहा था. एक तरह से देखा जाए तो खान मार्केट में सबसे पहले अगर किसी को प्रॉपर्टी अलॉट की गई थी तो वह फकीर चंद बुक स्टोर को की गई थी.

नहीं किया गया है बदलाव…

फकीर चंद बुक स्टोर की कहानी नई दिल्ली जितनी पुरानी है. आज भी दुकान में जरूरत के अलावा कोई भी बदलाव नहीं किये गए है. यानि जो बेहद जरूरत की चीज थी, उसके अलावा आज भी दुकान मे सब वैसा ही है, जैसा साल 1951 में था. अभिनव के परिवार को इस लेगसी को जिंदा रखना है.

फकीर चंद के बुक स्टोर ने उस समय को जिया है जो आज इतिहास बन चुका है. यही कारण रहा कि इसे नया रूप देने का नहीं सोचा गया. अभिनव का कहना है कि ‘बुक स्टोर के ब्रांच खोलकर हम अपने इतिहास को कमर्शियल नहीं करना चाहते है.’

यहां आते हैं बुक लवर्स…

आधुनिक जमाने मे सारी चीजें अब इंटरनेट के जरिये सबके पास आसानी से पहुंच जाती हैं तो क्या यह एक नॉर्मल बुक स्टोर को प्रभावित कर सकता है? इस सवाल के जवाब में अभिनव ने बताया सोच है कि फकीर चंद बुक स्टोर के पास दिल्ली का ‘ओल्ड चार्म’ है, यहां पर बुक लवर्स आते हैं जो आते ही किताबों को देखते हैं, उन्हें अपनी नजरों से परखते हैं. यहां लोग आते है किताबों कि खुशबू मे जीते हैं, हर एक बुक को देखते हैं और उनमें से कोई एक वह लेकर जाते हैं. किसी एक पर उनका दिल आ जाता है और इस तरह से यह बुक स्टोर बाकी दुकानों से अलग अपने आप को रखता है.

किताबों की अलग दुनिया…

अभिनव ने बताया ये बुक स्टोर उन लोगों की यादों को जिंदा रखता है, जिन्हें किताबों से प्यार है. वह यहां बचपन में आया करते थे. लेकिन जिंदगी कि भाग-दौड़ में वह आज दुनिया के किसी दूसरे कोने में हैं. आज भी वह जब दिल्ली आते हैं तो इस बुक स्टोर का एक चक्कर जरूर लगा जाते हैं.

कुछ ऐसे भी कस्टमर हैं जो आज यहां अपने बचपन की यादें ताजा करने आते हैं. जो पहले अपने बचपन मे यहां आते थे, वो आज यहां अपने पोता/पोती के साथ आते हैं. चाहे यादें कितनी भी पुरानी हो, मगर आज भी किताबों की खुशबू वही है जो पहले थी. यह बुक स्टोर सिर्फ अपने कस्टमर रिलेशन नहीं बनाता, बल्कि हर एक व्यक्ति को पारिवारिक माहौल भी देता है.

बुक स्टोर में दिल्ली खोजते है लोग…

अभिनव ने बताया कि युवा पीढ़ी जो दिल्ली से प्यार करती है, जो दिल्ली के इतिहास को जानना चाहती है, उन युवाओं का हमारे यहां ज्यादा ध्यान केंद्रित रहता है.

ओल्ड क्लासिक, फ्रेंच और हिंदी शायरी पढ़ने वाले लोगों का ज्यादा झुकाव रहता है. जो लोग दिल्ली में नये हैं और उन्हें दिल्ली के बारे में कुछ जानना है तो वह लोग आते हैं और इसी बुक स्टोर में दिल्ली को खोजते है और दिल्ली को इन्हीं किताबों के पन्नों से देखते हैं.

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