Dastan-e-Uttar Pradesh: वो साल जब भारतीयों ने अंग्रेजी शासन के खिलाफ शुरू किया विद्रोह

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Dastan-e-Uttar Pradesh: 4000 हजार सालों की अच्छी, बुरी यादें समेटे मैं हूं उत्तर प्रदेश …किसी ने खंगाला तो किसी ने पन्नों में दबा दिया, लेकिन जो मेरे अंदर रचा बसा है वो मैं आज कहने जा रहा हूं और शायद यह सही समय है अपने इतिहास के पन्नों को एक बार फिर से पलटने का क्योंकि जिस काल से मेरा अस्तित्व बना एक बार मैं फिर उसी कालक्रम का साक्षी बन पाया हूं.

यह सब शायद आपको समझ न आ रहा हो क्यों कि कभी किसी ने इस इतिहास के पन्नों को पलटा ही नहीं …लेकिन आज मैं अपने अस्तित्व के सातवें पन्ने के साथ आपको उस समय के उत्तर प्रदेश की कथा बताने जा रहा हूं जब एक शासन के कब्जे मुक्ति पाकर मैं एक दूसरे शासन की गिरफ्त हो गया था. हां आज मैं बताने जा रहा हूं ब्रिटिश शासन के खिलाफ शुरू हुई प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की कथा….

मेरठ में पहली बार भड़की थी स्वतंत्रता की आग

18वीं शताब्दी के मध्य तक पूरे भारत में ब्रिटिश शासकों का पूर्णतयः राज हो चुका था, हम भारतीय अंग्रेजों के जायज और नजायज नियमों को लेकर उनके द्वारा दी जा रही यातनाओं को झेलने के लिए मजबूर थे. लेकिन कहते हैं कि, ”शासक कितना भी क्रूर हो एक समय पर उसका डर खत्म ही हो जाता है”. कुछ ऐसा ही अंग्रेज शासकों के खिलाफ भी हुआ, अब भारतीय में उनके डर से ज्यादा उनको अपने देश से उखाड़ फेंकने का जुनून सवार हो गया था .

साल 1857 का वो ऐतिहासिक दिन 10 मई था, जब उत्तर प्रदेश के मेरठ से भारत की आजादी की पहली चिंगारी भड़की थी. अंग्रेजों के शासन को उखाड़ फेंकने के लिए प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की पहली नींव साल 1857 में मेरठ डाली गयी थी और फिर यह चिंगारी आग का रूप लेते हुए पूरे भारत देश में फैल गयी. मेरठ के क्रांतिस्थल और अन्य स्मारक आज भी अंग्रेजों के खिलाफ हुई आजादी की क्रांति की याद दिलाते हैं.

इस तारीख को सैनिकों ने दिल्ली पर किया था कब्जा

मेरठ के सदर बाजार क्षेत्र से एक बड़ी भीड़ ने अंग्रेज फौज पर हमला बोला दिया था. नौ मई को कोर्ट मार्शल में 85 सैनिकों को चर्बीयुक्त कारतूसों का उपयोग करने से इनकार करने पर गिरफ्तार किया गया. विक्टोरिया पार्क में निर्मित नई जेल में उन्हें बेड़ियों और जंजीरों से जकड़कर कैद कर दिया गया था, इस जेल को 10 मई की शाम को ही तोड़कर 85 सैनिकों को रिहा किया गया था. रात में कुछ सैनिक दिल्ली पहुंच गए, जबकि अन्‍य ने ग्यारह मई की सुबह भारतीय सैनिकों से मिलकर दिल्ली पर कब्जा कर लिया.

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प्रथम स्वस्तंत्रता संग्राम में इन क्रांतिकारियों ने लिया हिस्सा

बताते है कि, यह विद्रोह एक वर्ष तक चला और पूरे उत्तर भारत में फैल गया. यह भारत का पहला स्वतन्त्रता सन्ग्राम था. मेरठ शहर ने इस विद्रोह की शुरुआत की थी. इसका कारण अंग्रेजों द्वारा गाय और सुअर की चर्बी से बना कारतूस देना बताया गया. डलहौजी की राज्य हड़पने की नीति भी इस संग्राम का एक बड़ा कारण था. दिल्ली, लखनऊ, कानपुर, इलाहबाद, झाँसी और बरेली में अधिकांश लड़ाई हुई. झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई, अवध की बेगम हज़रत महल, बख्त खान, नाना साहेब, मौलवी लियाकत अली, मौलवी लियाकत अली इलाहबाद महगांव, मौलवी अहमदुल्ला शाह्, राजा बेनी माधव सिंह और अजीमुल्लाह खान सब इस लड़ाई में भाग लिये.

 

इसी कड़ी में कड़ी में कल पढे स्वतंत्रता के पश्चात का काल…..

 

 

 

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