Dastan-e-Uttar Pradesh: 18वीं सदी में इस माध्यम से अंग्रेजों ने भारत में रखा था पहला कदम….

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Dastan-e-Uttar Pradesh: 4000 हजार सालों की अच्छी, बुरी यादें समेटे मैं हूं उत्तर प्रदेश …किसी ने खंगाला तो किसी ने पन्नों में दबा दिया लेकिन जो मेरे अंदर रचा बसा है वो मैं आज कहने जा रहा हूं और शायद यह सही समय है अपने इतिहास के पन्नों को एक बार फिर से पलटने का क्योंकि जिस काल से मेरा अस्तित्व बना एक बार मैं फिर उसी कालक्रम का साक्षी बन पाया हूं.

यह सब शायद आपको समझ न आ रहा हो क्यों कभी किसी ने इस इतिहास के पन्नों को पलटा ही नहीं …लेकिन आज मैं अपने अस्तित्व के छठवें पन्ने के साथ आपको बताने जा रहा हूं. अपने उत्तर प्रदेश की कथा जब एक शासन के कब्जे मुक्ति पाकर मैंने एक दूसरे शासन की कैद में गिरफ्त हो गया था. ऐसे में आज मैं बताने जा रहा हूं ब्रिटिश काल के आरंभ यानी औपनिवेशक काल की कथा….

18वीं शताब्दी में अंग्रेजों ने भारत पर की थी कब्जे की शुरूआत

भारत की सरजमीन पर औरंगजेब की मौत के पश्चात मुगल शासन का पतन शुरू हो गया था. इसके साथ औरंगजेब की मौत के लगभग 50 सालों के बाद मुगल शासन का पूर्णतः अंत हो गया था. इसी के साथ ही 18वीं शताब्दी से भारत पर ब्रिटिशियन ने कब्जा कर लिया. वहीं 19 वीं शताब्दी शुरुआत तक अंग्रेजों ने वर्तमान उत्तर प्रदेश पर अधिकार जमा लिया था. इसके साथ ही लगभग छह शताब्दी कतक रहे मुस्लिम शासन का अंत हो गया. अंग्रेजों ने स्वदेशी घुड़सवार सेना को अपने पराजित क्षेत्रों में किराये पर लेना शुरू कर दिया था. वहीं मुस्लिम शासन के अंत में, बहुत से मुस्लिम घुड़सवार बेरोजगार हो गए और ब्रिटिश सेना में मजबूरी में शामिल हो गए. ब्रिटिश भारत में घुड़सवार सेना लगभग पूरी तरह से मुसलमानों से बनाई गई थी, क्योंकि हिंदू लोग “सैनिक के कर्तव्यों के प्रति मुसलमानों जितने प्रवृत्त नहीं थे”.

इन घुड़सवार रेजीमेंटों में अधिकांश हिंदुस्तानी मुसलमान जातियों, जैसे रंगार (राजपूत मुसलमान), शेख, सैय्यद, मुगल और स्थानीय पठान शामिल थे, जो ब्रिटिश सेना की घुड़सवार शाखा का तीन-चौथाई हिस्सा थे. पूर्वी मुगल साम्राज्य में, स्किनर हॉर्स, गार्डनर, हियरसे हॉर्स और टैट हॉर्स जैसे अनियमित घुड़सवार सेना रेजिमेंटों ने घुड़सवार सेना की परंपराओं को बचाया, जिसका राजनीतिक उद्देश्य था क्योंकि इसमें घुड़सवार सैनिकों की जेब शामिल थी जो अन्यथा अप्रभावित लुटेरे बन सकते थे.

75 वर्षो तक अंग्रेजों ने किया भारत पर राज

18 वीं शताब्दी की अंतिम तिमाही से 19वीं शताब्दी के मध्य तक, अंग्रेजों ने लगभग 75 वर्षों तक भारत पर शासन किया था. भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तरी हिस्से में, नवाब, ग्वालियर के सिंधिया (अब मध्य प्रदेश में) और नेपाल के गोरखा को पहले ब्रिटिश प्रांत के भीतर रखा गया था, जिसे बंगाल प्रेसीडेंसी कहा जाता था. लेकिन 1833 में उन्हें उत्तर-पश्चिमी प्रांत (शुरुआत में आगरा प्रेसीडेंसी) बनाने के लिए अलग कर दिया गया. 1856 में कंपनी ने अवध साम्राज्य पर कब्जा कर लिया था, जो 1877 में उत्तर-पश्चिमी राज्यों के साथ मिल गया. परिणाम प्रशासनिक इकाई की सीमा लगभग 1950 में बनाए गए उत्तर प्रदेश राज्य की सीमा की तरह थीं. 1902 में इसका नाम था आगरा और अवध को संयुक्त प्रांत कर दिया गया था.

1857 से 1859 तक ईस्ट इण्डिया कम्पनी के खिलाफ हुआ विद्रोह मुख्य रूप से पश्चिमोत्तर राज्य तक सीमित था. 10 मई 1857 ई. को सैनिकों द्वारा मेरठ में भड़का विद्रोह कुछ ही महीनों में 25 से भी अधिक शहरों में फैल गया. 1858 ई. में विद्रोह के दमन के बाद, ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने ब्रिटिश ताज को पश्चिमोत्तर और ब्रिटिश भारत का शासन सौंप दिया. 1880 के उत्तरार्द्ध में भारतीय राष्ट्रवाद के उदय के साथ संयुक्त प्रान्त स्वतंत्रता आंदोलन में अग्रणी रहा था. प्रदेश ने भारत को मोतीलाल नेहरू, मदन मोहन मालवीय, जवाहरलाल नेहरू और पुरुषोत्तमदास टंडन जैसे राष्ट्रवादी नेता दिए.

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1922 में शुरू ब्रिटिश साम्राज्य की नींव हिलाने की हुई थी शुरूआत

1922 में भारत में ब्रिटिश साम्राज्य की नींव हिलाने के लिए किया गया महात्मा गांधी का असहयोग आन्दोलन पूरे संयुक्त प्रान्त में फैल गया. लेकिन चौरी चौरा गांव (प्रान्त के पूर्वी भाग में) में हुई हिंसा के कारण महात्मा गांधी ने अस्थायी तौर पर आन्दोलन को रोक दिया. संयुक्त प्रान्त मुस्लिम लीग की राजनीति का भी यह केन्द्र रहा. ब्रिटिश काल के दौरान रेलवे, नहरों और प्रान्त के भीतर ही संचार के साधनों का व्यापक विकास हुआ. अंग्रेज़ों ने यहां आधुनिक शिक्षा को भी बढ़ावा दिया और यहां लखनऊ विश्वविद्यालय (1921 में स्थापित) जैसे विश्वविद्यालय व कई महाविद्यालय स्थापित किए.

इसी कड़ी में कल पढे प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की कहानी…

 

 

 

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