Dastan-e-Uttar Pradesh: औरंगजेब की मौत के बाद शुरू हुआ था मुगल शासन का पतन
Dastan-e-Uttar Pradesh: 4000 हजार सालों की अच्छी, बुरी यादें समेटे मैं हूं उत्तर प्रदेश …किसी ने खंगाला तो किसी ने पन्नों में दबा दिया लेकिन जो मेरे अंदर रचा बसा है वो मैं आज कहने जा रहा हूं. और शायद यह सही समय है अपने इतिहास के पन्नों को एक बार फिर से पलटने का क्योंकि जिस काल से मेरा अस्तित्व बना एक बार मैं फिर उसी कालक्रम का साक्षी बन पाया हूं.
यह सब शायद आपको समझ न आ रहा हो क्यों कभी किसी ने इस इतिहास के पन्नों को पलटा ही नहीं …लेकिन आज मैं अपने अस्तित्व के पांचवे पन्ने के साथ आपको बताने जा रहा हूं. अपने उत्तर प्रदेश की उस मुश्किल समय की कहानी जब हमारे भारत पर मुस्लिम शासकों ने कब्जा कर लिया था. ऐसे दिल्ली के साथ–साथ उनका कब्जा उत्तर प्रदेश में भी हो गया था. ऐसे में आज मैं बताऊंगा मुस्लिम शासन के विघटन की कथा…
मुगल शासन के पतन की ये थी वजह
1526 ई. से भारत पर शुरू हुए मुगल शासन के विघटन की शुरूआत औरंगजेब के पश्चात बाबर की राजगद्दी संभालने से ही हो गयी थी. इसके पश्चात 1707 में हुई औरंगजेब की मौत के बाद से मुगल युग का पतन शुरू हो गया था. हालांकि, मुगल काल का लिखित तौर पर औरंगजेब के निधन के पश्चात लगभग 50 साल तक मुगल शासन हिंदुस्तान पर था. इसके बाद मुगल शासन का अंत हुआ था. लेकिन औरंगजेब की मौत के बाद सांस्कृतिक पहचान और शासकीय सिद्धांतों से अभिन्न रूप से जुड़ी संस्थाओं और प्रक्रियाओं में गिरावट के लक्षण नजर आने लगे थे.
इसके साथ ही योग्य शासकों की कमी के कारण मुगल सेना भी कमजोर पड़ने लगी थी. वहीं अकबर के विपरीत कोई और सैन्य नवाचार या नई तकनीक पेश नहीं की गई. उत्तरी भारत में राजनीतिक माहौल ने यह स्पष्ट कर दिया कि मुगल साम्राज्य का गौरव समाप्त हो रहा था. इतिहासकारों ने मुगल साम्राज्य का पतन के लिए कई कारकों को जिम्मेदार ठहराया है.
कमजोर मुगल शासन पर अंग्रेजों ने जमाया कब्जा
19वीं शताब्दी की शुरुआत तक अंग्रेजों ने वर्तमान उत्तर प्रदेश पर कब्जा कर लिया था. इसके साथ ही लगभग छह शताब्दी के मुस्लिम शासन का अंत हो गया. अंग्रेजों ने स्वदेशी घुड़सवार सेना को अपने पराजित क्षेत्रों में किराये पर लेना शुरू कर दिया था. वहीं मुस्लिम शासन के अंत में, बहुत से मुस्लिम घुड़सवार बेरोजगार हो गए और ब्रिटिश सेना में मजबूरी में शामिल हो गए. ब्रिटिश भारत में घुड़सवार सेना लगभग पूरी तरह से मुसलमानों से बनाई गई थी, क्योंकि हिंदू लोग “सैनिक के कर्तव्यों के प्रति मुसलमानों जितने प्रवृत्त नहीं थे”.
इन घुड़सवार रेजीमेंटों में अधिकांश हिंदुस्तानी मुसलमान जातियों, जैसे रंगार (राजपूत मुसलमान), शेख, सैय्यद, मुगल और स्थानीय पठान शामिल थे, जो ब्रिटिश सेना की घुड़सवार शाखा का तीन-चौथाई हिस्सा थे. पूर्वी मुगल साम्राज्य में, स्किनर हॉर्स, गार्डनर, हियरसे हॉर्स और टैट हॉर्स जैसे अनियमित घुड़सवार सेना रेजिमेंटों ने घुड़सवार सेना की परंपराओं को बचाया, जिसका राजनीतिक उद्देश्य था क्योंकि इसमें घुड़सवार सैनिकों की जेब शामिल थी जो अन्यथा अप्रभावित लुटेरे बन सकते थे.
मुसलमानों ने उर्दू को बचाने शुरू की थी ये मुहिम
बीसवीं सदी की शुरुआत में मुस्लिमों की आत्म-चेतना के विकास में उर्दू मुख्य भूमिका निभा रही थी. उत्तर प्रदेश के मुसलमानों ने उर्दू को बचाने और प्रचार करने के लिए अंजुमन या संघों को तैयार किया था. इसके साथ ही 1905 में इन पहले मुस्लिम संगठनों ने ढाका में अखिल भारतीय मुस्लिम लीग की स्थापना की थी, जिनके कई नेता अशरफ श्रेणी के थे.
Also Read: Dastan-e-Uttar Pradesh: हर जगह चलने लगा था मुस्लिम शासकों का ही शासन
उत्तर प्रदेश के मुसलमानों ने पाकिस्तान बनाने की मांग उठाई थी. इस आंदोलन के अंतिम परिणामस्वरूप भारत विभाजित हो गया और पाकिस्तान बन गया. इससे बहुत से मुस्लिम कर्मचारी पाकिस्तान चले गए और उत्तर प्रदेश में मुसलमानों का विभाजन हुआ, जिससे पाकिस्तान में मुहाजिर जातीय समूह बना. पाकिस्तानी राष्ट्र के निर्माण में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण रही.
इस कड़ी कल पढे ब्रिटीश शासन का आरंभ यानी औपनिवेशक काल की कथा……