मदरसों को दारुल उलूम का आदेश, सरकारी मदद से रहें दूर

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दारुल उलूम देवबंद(Darul Uloom) ने देश के तीन हजार मदरसों को निर्देश दिया है कि वे सरकार द्वारा दी जाने वाली किसी भी प्रकार की सहायता को स्वीकार न करें। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, इन मदरसों का ज्यादातर खर्च समुदाय के लोगों द्वारा दिए जाने वाले दान से चलाया जाता है। सरकार द्वारा दी जाने वाली मदद केवल शिक्षकों को उनकी सैलरी देने के लिए इस्तेमाल की जाती है।

मदरसों को अपनी सपत्ति का रखना होगा ब्यौरा

अब इसे भी समुदाय द्वारा दिए जाने वाले दान से दिए जाने का फैसला किया गया है। सोमवार को हुई मदरसा प्रबंधन राबता-ए-मदारिस की बैठक ने आठ प्रमुख फैसले लिए हैं। इस बैठक में फैसला लिया गया है कि मदरसों को अपनी प्रत्येक संपत्ति का रिकॉर्ड रखना होगा।

‘गैर-मुस्लिम समुदाय के साथ बनाए जाएं रिश्ते’

इसके साथ ही मदरसों से गैर-मुस्लिम समुदाय के लोगों के साथ सौहार्दपूर्ण रिश्ते बनाने के लिए कहा गया है। इतना ही नहीं, मदरसों के समारोह में उन्हें आमंत्रित करने के लिए भी कहा गया है। एक इंटरव्यू के दौरान दारुल उलूम(Darul Uloom) के मोहातमीम अबुल कासिम नोमानी ने कहा कि मदरसा चलाने के लिए सरकार द्वारा दी जाने वाली किसी भी प्रकार की सहायता न लेने को लेकर उनकी स्थिति हमेशा से ही साफ रही है।’

‘हम नहीं चाहते सरकार करे दखलंदाजी’

रिपोर्ट के अनुसार, नोमानी ने कहा, ‘अगर एक बार हमने सरकारी सहायता स्वीकार कर ली तो हम उनके दिशा-निर्देशों से चलने के लिए बाध्य हो जाएंगे। हमारे अपने अनुशासनात्मक कोड हैं, पोशाक है और अपना पाठ्यक्रम भी है। हम नहीं चाहते कि सरकार इसमें दखलंदाजी करे। हम नहीं चाहते कि सरकार हमसे रोज शिक्षकों और छात्रों की अटेंडेंस मांगे।

तीन हजार मदरसों को दारुल उलूम ने दिए आदेश

हमें यह दिशा-निर्देश दिए जा सकते हैं कि हम मदरसों को कब खोलें और कब बंद करें, लेकिन अन्य कोई भी सरकारी निर्देशों को स्वीकार नहीं किया जा सकता और इसलिए तीन हजार मदरसों को इसे लेकर आदेश दिया गया है।’ वहीं, दारुल उलूम(Darul Uloom) के मुफ्ती आरिफ कासमी ने कहा कि दुनिया में मौजूद मुस्लिम समुदाय के लोगों द्वारा दारुल उलूम को दान मिलता है। इसमें किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप इसकी बुनियादी प्रकृति और सिद्धांतों के खिलाफ होगा।

जनसत्ता

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