Corona: महामारी का शेयर बाजार पर असर

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आशा और निराशा, दोनों के साथ ही यही होता है। ये जब बाकी जगह झलकती हैं, तो शेयर बाजार में तूफान बनकर बरसती हैं। शेयर बाजार की प्रतिक्रिया ऐसे हर मौके पर काफी तीखी और तेज होती है। कोरोनाCorona वायरस के महामारी बनने के बाद शेयर बाजार में इस तरह की बारिश तकरीबन हर रोज का खेल हो गया है। सोमवार को जब देश के 80 से ज्यादा जिलों में लॉकडाउन था, इसमें वे महानगर भी शामिल हैं, जिन्हें अर्थव्यवस्था की रीढ़ माना जाता है, ऐसे में बाजार खासकर मुंबई शेयर बाजार एकाएक भरभरा कर गिरने लगा।

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गिरावट इतनी तेज थी कि उसे रोकने के लिए सर्किट ब्रेकर का सहारा लेना पड़ा और कारोबार को 45 मिनटों के लिए पूरी तरह रोक दिया गया। आने वाले दिनों के लिए बाजार में 10 फीसदी, 15 फीसदी और 20 फीसदी के तीन सर्किट ब्रेकर लागू किए गए, यानी अगर बाजार दिन के समय 10 फीसदी से ज्यादा गिर जाता है, तो कारोबार 45 मिनटों के लिए रोक दिया जाएगा, अगर 15 फीसदी गिरता है, तो कारोबार पौने दो घंटे के लिए रोका जाएगा और अगर 20 फीसदी से ज्यादा गिरता है, तो उस दिन फिर कोई और कारोबार नहीं होगा और बाजार के खिलाड़ियों को अगले दिन का इंतजार करना होगा। सोमवार को दोपहर से पहले ही मुंबई शेयर बाजार का संवेदनशील सूचकांक दस फीसदी से ज्यादा गिर गया था।

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जब कारोबार दुबारा शुरू हुआ, तब भी यह गिरावट थमी नहीं। सोमवार को देश की 30 चुनींदा कंपनियों के शेयरों का हाल बताने वाला संवेदनशील सूचकांक कुल 3,935 अंक गिरा, यानी कुल 13.15 फीसदी। हालांकि यह गिरावट सब जगह समान नहीं थी। अगर नेशनल स्टॉक एक्सचेंज के 100 कंपनियों वाले सूचकांक निफ्टी को देखें, तो उसने सिर्फ 9.6 फीसदी ही गोता लगाया। यह बताता है कि देश की महत्वपूर्ण कंपनियों के भविष्य को लेकर बाजार में ज्यादा निराशा है। शेयर बाजार के यह दुर्गति 12 साल बाद देखने को मिली है। पिछली बार ऐसा 2008 में हुआ था, जब दुनिया का साबका सबसे बड़ी आर्थिक मंदी से पड़ा था। तब दुनिया का सकल घरेलू उत्पाद 3.5 फीसदी तक गिर गया था।

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शेयर बाजार ही नहीं, दुनिया की पूरी अर्थव्यवस्था की दिक्कत यह है कि वह इस समय ऐसी जगह खड़ी है, जहां 12 साल पहले की भीषण आर्थिक मंदी के सबक किसी काम के नहीं हैं। वह मंदी बाजार और अर्थव्यवस्था के अपने गति विज्ञान का नतीजा थी और इसीलिए उसे आर्थिक कदमों से दबाया और नियंत्रित भी किया जा सका। लेकिन इस बार ऐसा नहीं है। एक तो हमें यह पता नहीं है कि कोरोना वायरस का यह संकट कहां तक जाएगा और उसका नुकसान किस हद तक होगा। दूसरे, यह ऐसा संकट भी नहीं है, जिसका आर्थिक प्रोत्साहनों से सीधा समाधान निकाला जा सके।

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इस समय एक ही चीज सबको साफ दिख रही है कि दुनिया भर में जिस तरह का लॉकडाउन चल रहा है, उसमें आर्थिक गतिविधियां लगभग ठप हैं। उत्पादन बंद हैं और आयात-निर्यात हो नहीं रहे। इस बार दुनिया के जीडीपी में कितनी गिरावट आ सकती है, यह कोई नहीं जानता। अर्थव्यवस्था की यह उलझन बाजारों में भी दिख रही है और शेयर बाजारों में भी। ऐसे में, बाकी बाजार तो बस सूने हो जाते हैं, लेकिन शेयर बाजार मुंह के बल गिरते हैं। हालांकि यह भी सच है कि संकट खत्म होते ही सबसे पहले वे ही छलांग लगाएंगे।

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