क्या लखनऊ में तेंदुए को मारना जरूरी था?
आशीष बागची
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के आशियाना में तीन दिन पहले तेंदुआ घुस आया और उसे पुलिस ने शनिवार को गोली मार कर ढेर कर दिया। इसका पुलिस की ओर से व्यापक प्रचार यह कह कर किया गया कि महान काम हुआ है। पुलिस ने खूब बाइट दी। खूब फोटो खिंचवाये गये। आईजी की ओर से पहले तेंदुए को मारने वाली पुलिस टीम को पचास हजार के इनाम की घोषणा कर दी गयी पर अचानक इसे वापस भी ले लिया गया। कुल मिलाकर एक ऐसी कहानी गढ़ी गयी जिसे कभी वीरता की श्रेणी में रखा गया तो कभी उपहास की श्रेणी में।
कहा जाता है कि तेंदुए ने पुलिसवालों सहित एक दर्जन लोगों पर हमले किये। वन विभाग ने जो व्यवस्था की वह नाकाफी थी और तेंदुआ तीन दिनों तक आतंक मचाता रहा। अंत में उसकी नागरिकों से मुठभेड़ हो गयी और पुलिस ने उसे गोली मार दी। वह वहीं ढेर हो गया। इस मामले में वन विभाग की ओर से एक एफआईआर दर्ज करायी गयी है।
वीडियो मौजूद फिर भी अज्ञात के खिलाफ एफआईआर
तेंदुए को आशियाना थाना इंस्पेक्टर की ओर से गोली मारते हुए व इस बाबत स्वीकारोक्ति करते हुए लोगों के वीडियो भी मौजूद हैं पर अज्ञात के खिलाफ एफआईआर लिखवायी गयी। वन्य जीव अधिनियम की धारा 7,9, और 51 के तहत वन विभाग ने यह मुकदमा दर्ज किया। इसे सरोजिनीनगर के अवध डिवीज़न में दर्ज किया गया। अब चूंकि सारे साक्ष्य मौजूद हैं तो अज्ञात में दर्ज हुए मुकदमे को लेकर वन विभाग के अधिकारियों पर सवाल उठे रहे हैं। आशियाना थाने के एसओ ने खुद स्वीकारा था कि तेंदुए को गोली मारी गयी है। इसके बावजूद अज्ञात में मुकदमा दर्ज होना आश्चर्य से कम नहीं है।
वन विभाग की बेहद ही मासूमियत वाली दलील
वन विभाग ने बेहद मासूमियत भरी दलील दी कि तेंदुआ आदमखोर नहीं था। वह महज रिहायशी इलाके में घुस आया था। पर, विभाग उसे पकड़ नहीं पाया। जब वन विभाग फेल हुआ तब पुलिस ने जांबाजी से तेंदुए को पकड़ने की कोशिश की और जब तेंदुआ हमलावर हुआ तो पुलिस ने मार गिराया। कहानी इसके बाद ही शुरू हुई। जब पुलिस ने अपनी वाहवाही करनी शुरू की और टीवी और समाचार माध्यमों से पुलिस की वीरता की खबर आने लगी और वन विभाग को कोसा जाने लगा। तब जाकर वन विभाग ने अपनी नाकामी छिपाने के लिए तेंदुए की मौत पर अरण्य रोदन शुरू किया। वह यह बताना भूल गया कि उसके ट्रंकुलाइजर ने तीन दिन में तेंदुए को बेहोश होने का काम क्यों नहीं किया? वन विभाग की कहानी ‘चित भी मेरी पट भी मेरी’ की रही। वन विभाग अपनी गलती का ठीकरा पुलिस पर फोड़ रहा है और पुलिस वन विभाग पर। इस बीच जिस तेंदुए को कुछ और साल जीना था उसे मौत के आगोश में ढकेल दिया गया।
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पुलिस का गन काम किया वन विभाग का नहीं
पुलिस के पास असलहा था तो उसने उससे काम कर दिया पर वन विभाग अपने ट्रंकुलाइजर गन से काम नहीं कर पाया। आशियाना इलाके में जो दहशत कई दिनों से थी वो वहां के लोग ही समझ सकते हैं। अब आते हैं आशियाना थाने के एसएचओ त्रिलोकीनाथ सिंह की बाइट पर जिसमें वे बोल गए होंगे कि हाथा-पाई व गुत्थम-गुत्था हुई। यह सही है कि एसएचओ ने मौत को बेहद करीब से देखा होगा। बहुत कम ऐसा होता है कि पुलिस का जय-जयकार होता है। जनता ने पुलिस का जयकारा जरूर लगाया। कारण काम साहसिक तो किया ही था। तेंदुआ अगर किसी को मार देता तब तक इंतजार नहीं किया जा सकता था। आर्मी भी तो आई थी पकड़ने, उसको वापस कर दिया गया था। यह पूछा जाना चाहिये कि किसने उसे वापस किया था। सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव कह रहे हैं अब तो जानवरों का भी एनकाउंटर हो रहा है। जाहिर है कि तेंदुए की जान तो गयी पर राजनीति की धार चमक गयी।
न्यूज चैनेलों व सोशल मीडिया पर खूब आलोचना
पुलिस, वन विभाग, विपक्षी दल, न्यूज चैनल सबपर पुलिस की जांबाजी और वन विभाग की कार्यप्रणाली को लेकर खूब लानत-मलानत हो रही है। जितने मुंह उतनी ही बात हो रही है।
किसके इलाके में कौन रह रहा है?
शहर में जंगली जानवरों के घुसने की खबर नई नहीं है। इसके पहले भी ऐसी घटनाएं लगातार कई शहरों में घट चुकी हैं। सबसे बड़ा सवाल यह कि शहर में तेंदुआ, बाघ या उसके इलाके में हम हैं। हमारे घर में वे घुसे हैं या फिर हम उनके घर में। जानवर सवाल कर नहीं सकता और विरोध भी। लेकिन शहर या फिर आबादी वाले क्षेत्र में उसका घुसना ही कई सवाल पैदा कर देता है। क्या यह सच नहीं है उसके क्षेत्र में हमने विकास के नाम पर कंक्रीट के जंगल बिछा दिए हैं। जंगल काट दिए हैं, बस्ती बसाने के लिए। उद्योग स्थापित करने के लिए। जंगलों में अवैध खनन ने उनके घर छीन लिए हैं। सच तो यही है। फिर भी सवाल यही कि जानवर जंगल क्यों छोड़ रहे हैं?
वन विभाग के अफसर कहते हैं,‘‘देश में सर्वे के अनुसार लगभग 14 हजार तेंदुए हैं। तेदुआ घने जंगल में रहता है। इसका स्वभाव है कि वह बाघ से नहीं भिड़ता। इसलिए यह जंगल के बाहरी क्षेत्र में ज्यादातर रहता है। जंगल के बाहरी क्षेत्र में हिरण, चीतल, सांभर,चिंकारा आदि शाकाहारी जानवर होते हैं, लेकिन इनकी संख्या भी अब बहुत कम हो गई है। साथ ही जंगलों में पानी की समस्या दिनों दिन बढ़ती जा रही है। यही वजह है की तेंदुए आबादी वाले क्षेत्र में जहां पालतू पशु होते हैं, उधर कूच करने लगे हैं। चूंकि तेंदुआ खुले बदन घूमने वाले पशु हों या फिर बच्चे, आदमी, उनमें फर्क नहीं समझता। वह बच्चों को भी उठा ले जाता है।
समुचित पारिस्थितिकी तंत्र जरूरी
लोग काफी समय से जंगली जानवरी जैसे तेंदुआ, बाघों के संरक्षण की बात कह रहे हैं। लगातार मांग हो रही है कि वन्यजीवों के लिए समुचित पारिस्थितिकी तंत्र बनाया जाए। साथ ही वन क्षेत्र में इंसानी दखल को कम किया जाये। ऎसा तब ही संभव है जब हम सब इस बात को समझें कि जीने का हक सबको है।
तेंदुए का शहर में घुसना, उसे बेहोश करके वन विभाग की ओर से पकड़ने की व्यवस्था न किया जाना, पुलिस व नागरिकों की ओर से उसे पत्थर व गोली मारकर मौत की नींद सुला देना व पुलिस की जय जयकार करना इस समस्या का समाधान नहीं है।