नीट घोटाले का मास्टर माइंड कौन?

0

मध्यप्रदेश के मूल निवासी छात्रों के हितों पर डाका डालकर बाहरी प्रदेशों के छात्रों को चिकित्सा व दंत चिकित्सा महाविद्यालयों में दाखिला देने के लिए रची गई साजिश को उच्च न्यायालय के आदेश से झटका लगा है। हर कोई यह जानने को बेताव है कि प्रदेश के छात्रों के हितों पर चोट करने वाली इस साजिश यानी नीट घोटाले का ‘मास्टर माइंड’ आखिर कौन है?

सरकार ने ऐसा क्यों किया

राज्य सरकार दाखिले के मामले में अपरोक्ष रूप से बाहरी छात्रों की पैरवी करने सर्वोच्च न्यायालय पहुंच गई थी। सरकार ने ऐसा क्यों किया, इस पर अब सवाल उठ रहे हैं।

read more :  पुराने कार्ड, कलैंडर से ‘रीमिक्स’ बचा रहे है पर्यावरण

साजिश रचकर बाहरी प्रदेश के छात्रों को दाखिला दिलाने की पूरी योजना

पहली बार सेंटल बोर्ड ऑफ सेकेंडरी एज्यूकेशन ने देशव्यापी चिकित्सा और दंत चिकित्सा महाविद्यालयों में दाखिले के लिए नेशनल एलेजिबिलिटी कम इंट्रेंस टेस्ट (नीट)-2017 का आयोजन किया। इसके लिए तय किया गया था कि सफल छात्र को उसके मूल निवास वाले राज्य के महाविद्यालय में प्रवेश दिया जाएगा, मगर मध्यप्रदेश में कुछ लोगों (सरकार से जुड़े लोग व अफसर हो सकते हैं) ने साजिश रचकर बाहरी प्रदेश के छात्रों को दाखिला दिलाने की पूरी योजना बना डाली।

वर्मा ने इस साजिश के खिलाफ आवाज उठाई

साजिश रचने वाले अपनी कोशिशों में प्रारंभिक तौर पर सफल भी हुए, मगर दो व्हिसिल ब्लोअर- विनायक परिहार और तारिषी वर्मा ने इस साजिश के खिलाफ आवाज उठाई, वे जबलपुर उच्च न्यायालय गए। तारिषी के पिता सतीश वर्मा जो स्वयं अधिवक्ता हैं, उन्होंने राज्य में दाखिला लेने वाले ऐसे छात्रों की सूची हासिल कर ली, जिनका मूल निवास प्रमाणपत्र दूसरे प्रदेश का था। उनका आरोप है कि उन्होंने वस्तु-स्थिति से चिकित्सा विभाग की प्रमुख सचिव गौरी सिंह को भी अवगत कराया, मगर उन्होंने अनसुना कर दिया। मीडिया ने जब गौरी सिंह से बात करने की कोशिश की, तो वह उपलब्ध नहीं हुईं।

जबलपुर उच्च न्यायालय में याचिका दायर की

वर्मा बताते हैं कि जब उन्हें इस बात का पता चला कि नीट-2017 के नियमों को दरकिनार कर बाहरी प्रदेश के छात्रों को दाखिला दिलाया जा रहा है, तो उन्होंने जबलपुर उच्च न्यायालय में याचिका दायर की। इस याचिका पर 24 अगस्त को न्यायाधीश आर.के. झा व न्यायाधीश नंदिता दुबे की युगलपीठ ने राज्य के मूल निवासी को ही प्रवेश देने का आदेश दिया।

read more :  ‘जुड़वा 2’ का गाना ‘सुनो गणपति बप्पा मोरया’ रिलीज

सरकार की मंशा राज्य के बच्चों का हित नहीं

उन्होंने कहा कि सरकार को यह फैसला मानना चाहिए था, क्योंकि यह राज्य के बच्चों के हित में था, लेकिन इस फैसले के खिलाफ सरकार सर्वोच्च न्यायालय चली गई, वहां भी उसे झटका लगा। इससे स्पष्ट है कि सरकार की मंशा राज्य के बच्चों का हित नहीं, बल्कि कुछ और थी।

हर व्यक्ति को अपनी बात रखने का अधिकार

सरकार के सर्वोच्च न्यायालय जाने के फैसले को सही ठहराते हुए राज्य के चिकित्सा शिक्षा राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) शरद जैन ने मीडिया से कहा, “हर व्यक्ति को अपनी बात रखने का अधिकार है, लिहाजा हम मार्गदर्शन के लिए सर्वोच्च न्यायालय गए थे, वहां से जो आदेश मिला है, उसका पालन किया जा रहा है।”जैन को जब बताया गया कि एक छात्र द्वारा दो राज्यों का मूल निवास प्रमाणपत्र बनवाया गया है, तो उनका जवाब था कि जिन छात्रों ने ऐसा किया है, उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।

2400 लोगों पर मामले दर्ज हुए, 2100 जेल गए

बताते चलें कि वर्ष 2013 में व्यावसायिक परीक्षा मंडल (व्यापमं) द्वारा आयोजित पीएमटी परीक्षा में घोटाले का खुलासा हुआ था। व्यापमं घोटाले की गूंज देश और विदेश तक पहुंची। उसका मास्टर माइंड डॉ. जगदीश सागर को माना गया। इंदौर पुलिस उसके जरिए कई रसूखदार लोगों तक पहुंची। एसटीएफ, एसआईटी ने जांच की, 2400 लोगों पर मामले दर्ज हुए, 2100 जेल गए और अब जांच सीबीआई के पास है। उसके बाद व्यापमं घोटाले की तरह एक और घोटाले की कोशिश हुई, जो सवाल खड़े कर रही है।

राज्य के मुख्यमंत्री के लिए शर्म की बात

पूर्व विधायक और सामाजिक कार्यकर्ता पारस सखलेचा का कहना है, “यह राज्य के मुख्यमंत्री के लिए शर्म की बात है कि वह राज्य के बच्चों के हित के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय गए। शीर्ष न्यायालय जाने का फैसला मुख्यमंत्री और चिकित्सा शिक्षा मंत्री ही ले सकता है, और उन्होंने ही लिया होगा।”

सरकार का सारा जोर घोटालों और भ्रष्टाचार पर है

उन्होंने आगे कहा, “जहां तक नीट घोटाले के मास्टर माइंड का सवाल है तो उसे खोजेगा कौन? जब व्यापमं घोटाले की दो साल से जांच कर रही सीबीआई तमाम दस्तावेजी सबूत होने के बावजूद आरोपियों को नहीं पकड़ रही, तो इसमें किसे पकड़ेगी।” वहीं, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव का कहना है कि शिवराज सरकार का सारा जोर घोटालों और भ्रष्टाचार पर है, यही कारण है कि पहले व्यापमं हुआ, जिसमें 50 से ज्यादा लोगों की जान गई। सरकार के मंत्री से लेकर अफसर तक जेल गए, बाद में रिहा हो गए, और अब तो हद ही हो गई, जब प्रदेश के बच्चों के हित में आए उच्च न्यायालय के फैसले को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई। इससे शर्मनाक बात और क्या होगी।

चिकित्सा शिक्षा विभाग ने दोबारा काउंसिलिंग शुरू कर दी

सूत्रों की मानें तो बाहरी प्रदेशों के जिन छात्रों ने मध्यप्रदेश में दाखिला लिया था, उनमें अधिकांश उत्तर प्रदेश, राजस्थान, बिहार और गुजरात के हैं, जहां भाजपा या राजग की सरकारें हैं। इस कारण संभावना इस बात की ज्यादा है कि कोई ऐसा गिरोह इसमें काम कर रहा हो, जिसकी राजनीतिक पहुंच ऊपर तक हो। वरना कौन ऐसी सरकार होगी, जो अपने राज्य के छात्रों के हित के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय चली जाएगी। सर्वोच्च न्यायालय से मुंह की खाने के बाद मप्र के चिकित्सा शिक्षा विभाग ने दोबारा काउंसिलिंग शुरू कर दी है। सबकी नजर अब इस पर है कि बाहरी प्रदेश के जो छात्र दाखिला पा चुके थे, उनका क्या होता है।

(अन्य खबरों के लिए हमें फेसबुक पर ज्वॉइन करें। आप हमें ट्विटर पर भी फॉलो कर सकते हैं।)

Leave A Reply

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. Accept Read More