'ड्रग घोटाले' में सीएमओ सहित अन्य अधिकारी नपे
उप्र ड्रग एवं फार्मास्यूटिकल (यूपीडीपीएल) लखनऊ की नकली दवाएं मुख्य औषधि भंडार से स्वास्थ्य केंद्रों पर सप्लाई कर अरबों के घोटाले के मामले में ईओडब्ल्यू (आर्थिक अपराध अनुसंधान संगठन) की जांच में चंदौली के तत्कालीन सीएमओ डॉ. उपेंद्र कंचन व डॉ. उदय प्रताप सिंह सहित अन्य अधिकारी दोषी पाए गए हैं।
लेकिन मामला ठंडे बस्ते में था
ईओडब्ल्यू ने चंदौली में डॉ. उपेंद्र व डॉ. उदय, तत्कालीन चीफ फार्मासिस्ट मुख्तार अहमद, यूपीडीपीएल के तत्कालीन उप प्रबंधक विपणन डीएल बहुगुणा व अधिशासी वाणिज्यिक अधिकारी वीएस रावत, दवा आपूर्ति करने वाली फर्म प्रिया फार्मास्यूटिकल वाराणसी के संचालक राजेश चंद्र सिंह व दाऊ मेडिकल सेंटर आगरा के संचालक सुरेश चौरसिया के खिलाफ धोखाधड़ी, षड्यंत्र, गबन व निवारण अधिनियम सहित अन्य धाराओं में रिपोर्ट दर्ज कराई है। शासन ने 14 फरवरी 2008 को यह जांच ईओडब्लयू को सौंपी थी, लेकिन मामला ठंडे बस्ते में था।
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योगी सरकार में के मामलों में कड़ी कार्रवाई के निर्देश के बाद गत दिनों जांच ने तेजी पकड़ी थी। स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी भी मामले से जुड़े दस्तावेज दबाए बैठे थे। डीजी ईओडब्ल्यू आलोक प्रसाद के मुताबिक मामले में जांच की आंच कई अन्य जिलों के अधिकारियों तक भी पहुंच सकती है। अन्य जिलों में भी पड़ताल कराई जा रही है।
जांच ईओडब्ल्यू के निरीक्षक चंद किशोर पांडेय कर रहे थे
जल्द ही अन्य संबंधित जिलों में भी अधिकारियों से पूछताछ हो सकती है। शासन के आदेश पर ईओडब्ल्यू ने वर्ष 2004-05 व वर्ष 2005-06 में मुख्य चिकित्साधिकारियों के कार्यालय के अधिकारियों व कर्मचारियों की मिलीभगत से यूपीडीपीएल लखनऊ की नकली दवाएं मुख्य औषधि भंडार से स्वास्थ्य केंद्रों पर आपूर्ति कर अरबों रूपये का घोटाला किया गया था। चंदौली जिले की जांच ईओडब्ल्यू के निरीक्षक चंद किशोर पांडेय कर रहे थे।
सरकारी धन का गबन किया गया
जांच में सामने आया कि यूपीडीपीएल की दवाएं फर्जी डायवर्जन पत्रों के आधार पर आरोपित दोनों फर्मो से अवैध तरीके से खरीदी गईं और उसका भुगतान कर सरकारी धन का गबन किया गया। यूपीडीपीएल के प्रबंध तंत्र को धोखे में रखकर बड़ा खेल किया गया। आरोप है कि डीएल बहुगुणा नियुक्त दवाओं के निजी डिस्ट्रीब्यूटरों, मंडलों के अपर निदेशक चिकित्सा एवं स्वास्थ्य, जिलों के मुख्य चिकित्साधिकारियों व चिकित्सा अधीक्षकों से सांठगाठ करके यूपीडीपीएल की ये दवाएं भारी मात्र में अवैध रूप से हासिल की जाती थी।
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जिसके बाद डीएल बहुगुणा द्वारा नियुक्त अवैध डिस्टीब्यूटर्स डायवर्जन बिलों के आधार पर उन दवाओं को दोबारा उन्हीं मुख्य चिकित्साधिकारियों व चिकित्सा अधीक्षकों को बेच दिया जाता था। इस प्रकार दवाओं का भुगतान एक ओर केंद्रीय औषधि भंडार द्वारा यूपीडीपीएल को किया जाता था और दूसरी ओर जिलों के मुख्य चिकित्साधिकारियों व चिकित्सा अधीक्षकों द्वारा डायवर्जन बिलों पर भुगतान अवैध डिस्टीब्यूटर को किया जाता था।
प्रार्थनापत्र देकर प्रकरण की शिकायत की थी
जांच में आरोपी सही पाए गए। स्वास्थ्य विभाग के अफसर मामले से जुड़े दस्तावेज दबाए बैठे थे कानपुर के पनकी स्थित निर्मल इंडस्ट्रीज एंड कंपनी के संचालक प्रवीण सिंह ने ईओडब्ल्यू मुख्यालय लखनऊ में 28 फरवरी 2006 को प्रार्थनापत्र देकर प्रकरण की शिकायत की थी।
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स्वास्थ्य भवन लखनऊ द्वारा खरीदी जाती है
ईओडब्ल्यू में तैनात सीओ अशोक कुमार वर्मा ने बताया कि प्रवीण सिंह ने अपने प्रार्थनापत्र में कहा था कि यूपीडीपीएल लखनऊ प्रदेश सरकार द्वारा पोषित एकमात्र औषधि निर्माण इकाई है, जिसके द्वारा उत्पादित औषधियां आरक्षित करके प्रतिवर्ष केंद्रीय औषधि भंडार, स्वास्थ्य भवन लखनऊ द्वारा खरीदी जाती है।
दवाओं के निजी डिस्ट्रीब्यूटर नियुक्त कर दिए थे
हर साल करीब 25 करोड़ की दवाएं क्रय करके स्वास्थ्य विभाग के मंडलीय अपर निदेशक, चिकित्सा स्वास्थ्य को वितरित की जाती है। जहां से यह दवाएं मुख्य चिकित्साधिकारियों के जरिए जिले के अस्पतालों में वितरित किए जाने का प्रावधान है। आरोप है कि यूपीडीपीएल के उप प्रबंधक डीएल बहुगुणा द्वारा शासनादेशों व महानिदेशक, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य के निर्देशों के विपरीत इन दवाओं के निजी डिस्ट्रीब्यूटर नियुक्त कर दिए थे।
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