कांग्रेस को फर्श से अर्श पर पहुंचाएंगी प्रियंका गांधी?
कांग्रेस (Congress) ने बुधवार को एक ऐतिहासिक ऐलान किया वो ऐलान था प्रियंका गांधी को पार्टी का महासचिव बनाए जाने का। इस ऐलान के साथ ही प्रियंका गांधी ने राजनीति की पारी में कदम रख दिया है।
प्रियंका गांधी को कांग्रेस का महासचिव बनाए जाने के बाद से जहां एक तरफ पार्टी में खुशी लहर दौड़ गई है तो वहीं विपक्षी दलों में खलबली मच गई है। लोग प्रियंका गांधी में इंदिरा गांधी का अक्स देखने लगे है। ऐसा हो भी क्यों न प्रियंका हूबहू अपनी दादी इंदिरा गांधी के तरह दिखती है चाहे उनका पहनावा हो या बोलने का तरीका। अब तक वो अपने भाई राहुल गांधी और मां सोनिया गांधी क लिए प्रचार करती रही हैं। ऐसे में कयाल लगाए जा रहे है कि क्या प्रियंका गांधी 2019 में 1999 जैसा जादू चल पाएगा।
बुधवार तड़के 4 बजे, कांग्रेस के उत्तर प्रदेश के प्रभारी गुलाम नबी आजाद एक कमर्शल फ्लाइट से लखनऊ के लिए रवाना हुए, जहां उन्हें पूर्व और मध्य क्षेत्र के पार्टी नेताओं के साथ बैठक करनी थी। इसके बाद गुरुवार सुबह 6 बजे उन्हें वापस राजधानी आकर पश्चिमी क्षेत्र के नेताओं के साथ मंथन करना था। आजाद का शेड्यूल व्यस्त था लेकिन उन्हें इस बात का जरा भी अंदाजा नहीं था कि कुछ घंटे के बाद प्रियंका गांधी वाड्रा और ज्योतिरादित्य सिंधिया को उनकी जगह यूपी का प्रभारी बना दिया जाएगा
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने यह हाई-वोल्टेज फैसला इतनी सतर्कता से उठाया कि उनके खास लोगों को भी भनक नहीं लगी। हर कदम पर रखी गई सीक्रेसी इस फैसले के महत्व को सामने रखती है। आपको बता दें कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने बुधवार दोपहर में अपनी बहन प्रियंका गांधी को कांग्रेस पार्टी का महासचिव बनाने का ऐलान किया। दरअसल, लंबे समय से कांग्रेस का मानना रहा है कि प्रियंका गांधी उनका ट्रंप कार्ड हैं जो राजनीति की तस्वीर बदल सकती हैं।
कांग्रेस के सूत्रों और विशेषज्ञों ने बताया कि वर्ष 1998 में रायबरेली और अमेठी में बीजेपी का कमल खिला था लेकिन वर्ष 1999 में प्रियंका की मेहनत की वजह से इन दोनों ही सीटों पर कांग्रेस की वापसी हुई। वर्ष 1998 में रायबरेली से राजीव गांधी के रिश्ते के भाई अरुण नेहरू और अमेठी से संजय सिंह बीजेपी के टिकट पर चुनाव जीते थे। प्रियंका ने वर्ष 1999 के चुनाव के दौरान रायबरेली और अमेठी की जनता से बेहद भावुक अपील की थी।
उन्होंने कहा, ‘क्या आप उस आदमी को वोट देंगे जिसने मेरे पिता की पीठ में छुरा भोंका था।’ प्रियंका की यह अपील काम कर गई और अटल बिहारी वाजपेयी की लहर के बावजूद इन दोनों सीटों पर कांग्रेस को जीत मिली थी। करीब दो दशक बाद उनकी सक्रिय राजनीति में एंट्री ऐसे समय पर हो रही है जब कांग्रेस संकट के दौर से गुजर रही है। यही नहीं, उसके सेक्युलर साथियों समाजवादी पार्टी और बीएसपी ने बीजेपी विरोधी गठबंधन से कांग्रेस को अलग कर दिया है।
कांग्रेस कार्यकर्ताओं का मानना है कि राहुल गांधी का आक्रामक नेतृत्व अंतत: काम करने लगा है। साथ ही वे यह महसूस करते हैं कि प्रियंका गांधी लोगों में काफी लोकप्रिय हैं। कई कार्यकर्ता उनमें इंदिरा गांधी का चेहरा देखते हैं। कांग्रेस के रणनीतिकारों का मानना है कि यह हरेक राज्य में कांग्रेस को अपने परंपरागत वोटरों को जोड़ने में मदद करेगा। वर्ष 2004 से वर्ष 2014 तक कांग्रेस के सत्ता में रहने के दौरान प्रियंका गांधी ने खुद को केवल अमेठी और रायबरेली तक ही सीमित रखा था।
हालांकि वह सोनिया गांधी और राहुल गांधी के साथ हरेक महत्वपूर्ण फैसले में हिस्सा लेती थीं। सूत्रों के मुताबिक वर्ष 2014 में कांग्रेस की डूबती नैया को पार लगाने के लिए प्रियंका आगे आईं थीं। उन्होंने वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव के दौरान समाजवादी पार्टी के साथ गठजोड़ कराया और प्रशांत किशोर को भी साथ लाई थीं लेकिन विधानसभा चुनाव में खराब प्रदर्शन के बाद उन्होंने अपनी गतिविधियों पर विराम दे दिया।
अब राहुल गांधी से होगी तुलना!
कांग्रेस नेताओं के मुताबिक प्रियंका की दुविधा काफी बड़ी थी। जब-जब पार्टी के अंदर से प्रियंका के राजनीति में आने की बात होती तो वह इसे खारिज कर देती थीं। वह अब सक्रिय राजनीति में आ गई हैं लेकिन इससे राहुल गांधी से उनकी तुलना होगी। वह ऐसा नहीं चाहेंगी। माना जा रहा है कि पार्टी ने बेहद सोच-समझकर यह फैसला लिया है। दरअसल, तीन हिंदी भाषी राज्यों में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद राहुल गांधी के नेतृत्व कौशल पर उठ रहे सवालों पर अब विराम लग गया है और इसी से प्रियंका के राजनीति में आने का रास्ता साफ हो गया।
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