छप्पन भोग, शराब, गाजा, भांग और धतूरा का लगा काशी के कोतवाल को भोग

बाबा काल भैरव का हुआ हिम श्रृंगार, कोलकाता के कारीगरों ने सजाया मंदिर

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वाराणसी में काशी के कोतवाल बाबा काल भैरवनाथ के वार्षिक हिम श्रृंगार की झांकी मंगलवार को भव्य रूप से सजायी गयी. देर रात तक भक्तों ने बाबा के चरणों में हाजिरी लगायी और मंगलमय जीवन की कामना की.
मंदिर के पुजारी व सेवक पवन उपाध्याय के नेतृत्व में सुबह बाबा का पंचामृत से स्नान कराया गया, इसके बाद सिंदूर व तेल का लेपन पर चोला चढ़ाने के बाद सुगंधित पुष्पों से बाबा का भव्य श्रृंगार किया गया. मंगलाआरती के बाद मंदिर का पट आम भक्तों के लिए खोल दिया गया. सुबह से ही बाबा के दर्शन को भक्तों का तांता लगा रहा. इस दौरान कोलकाता से आए हुए कारीगरों द्वारा देशी-विदेशी फूलों से पूरे मंदिर को सजाया गया था.

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101 बर्फ की सिल्ली से बाबा के मंदिर को सजाया गया.

मंदिर की अद्भूत झांकी लोगों को अपनी ओर आकर्षण करती रही. साथ ही 101 बर्फ की सिल्ली से बाबा के गर्भगृह के साथ ही पूरे मंदिर को सजाया गया. इस दौरान छप्पन भोग व एक सौ आठ शीशी महाप्रसाद, गांजा, भांग धतूरा से भी आकर्षक सजावट की गई थी. रजत आभूषण से बाबा का सजावट किया गया था. पवन उपाध्याय ने बताया कि हर वर्ष सावन माह में बाबा का हिम श्रृंगार किया जाता है. बाबा के इस स्वरुप के दर्शन मात्र से प्राणी के जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं. शाम को कलाकारों की ओर से भजनों की प्रस्तुति की गयी. कलाकारों ने सावन के गीतों के साथ भक्ति संगीत की अद्भुत प्रस्तुतियां दी.

बाबा विश्वनाथ के आदेश पर कालभैरव सम्भालते हैं काशी की कमान

बाबा श्रीविश्‍वनाथ काशी के राजा हैं. वहीं काल भैरव को इस शहर का कोतवाल कहा जाता है. हिंदू मान्यता के अनुसार भगवान शंकर के आदेश पर काल भैरव पूरे शहर की व्‍यवस्‍था संभालते हैं. बाबा विश्वनाथ के दर्शन से पहले उनके दरबार में हाजिरी लगाकर उनसे अनुमति लेनी पड़ती है. बता दें कि ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्त होने के लिए भैरव ने काशी में तपस्या की थी उसके अनुसार कथा यह है कि एक बार ब्रह्माजी और विष्णुजी के बीच इस बात को लेकर बहस छिड़ गई की ब्रह्मा, विष्णु और महेश में सबसे महान कौन है. चर्चा के बीच शिवजी का जिक्र आने पर ब्रह्माजी के पांचवें मुख ने शिव की आलोचना कर दी, जिससे शिवजी को गुस्सा आ गया. उसी क्षण भगवान शिव के क्रोध से काल भैरव का जन्म हुआ. काल भैरव ने शिवजी की आलोचना करने वाले ब्रह्माजी के पांचवें मुख को अपने नाखुनों से काट दिया. इसके बाद ब्रह्माजी का कटा हुआ मुख काल भैरव के हाथ से चिपक गया. तब भगवान शिव ने भैरव से कहा कि तुम्‍हें ब्रह्म हत्‍या का पाप लग चुका है और इसकी सजा यह है कि तुम्‍हें एक सामान्‍य व्‍यक्ति की तरह तीनों लोकों का भ्रमण करना होगा. जिस जगह यह मुख तुम्‍हारे हाथ से छूट जाएगा, वहीं पर तुम इस पाप से मुक्‍त हो जाओगे. शिवजी की आज्ञा से काल भैरव तीनों लोकों की यात्रा पर चल दिए. उनके जाते ही शिवजी की प्रेरणा से एक कन्या प्रकट हुई. यह कन्‍या कोई और नहीं ब्रह्म हत्‍या थी, जिसे शिवजी ने भैरव के पीछे छोड़ दिया. भैरव ब्रह्म हत्‍या के दोष से मुक्ति पाने के लिए तीनों लोक की यात्रा कर रहे थे और वह कन्‍या भी उनका पीछा कर रही थी. फिर एक दिन जैसे ही भैरव बाबा ने काशी में प्रवेश किया कन्‍या पीछे छूट गई. शिवजी के आदेशानुसार काशी में इस कन्‍या का प्रवेश करना मना था. काशी को शिव जी की नगरी माना जाता है जहां वह बाबा विश्वनाथ के रूप में पूजे जाते हैं. यहां गंगा के तट पर पहुंचते ही भैरव बाबा के हाथ से ब्रह्माजी का शीश अलग हो गया और भैरव बाबा को ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति मिली. तब शिव जी ने काल भैरव को काशी का कोतवाल नियुक्त किया और वहीं रहकर तप करने का आदेश दिया.

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