Climate Change से जुड़े है चमोली त्रासदी के तार
7 फरवरी को उत्तराखंड के चमोली जिले में एक संभावित ग्लेशियर के गिरने से हुई बाढ़ की तस्वीरों से टेलीविजन चैनल और मोबाइल डिवाइस जलमग्न हो गए थे। धौली गंगा ने नदी को रास्ता दिया जिससे बड़े पैमाने पर विनाश हुआ। इस हादसे में 37 लोगों की मौत हो गई और तपोवन हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट जो अभी निर्माण के रास्ते पार ही चल रहा था, वो पूरी तरीके से खत्म हो गया।
बचाव अभियान के जरिए लापता लोगों की तलाश अभी भी की जा रही है। लेकिन क्या ग्लेशियर टूटना मात्र एक संभावना थी या इसे किसी और नज़रिए से भी देखा जाता है। एक्सपर्ट्स कहते है कि यह क्लाइमट चेंज का ट्रेलर था पिक्चर अभी बाकी है।
एक्स्पर्ट्स किस पर रख रहे अपना मत-
वैज्ञानिकों की टीम पूरी तरीके से उस विनाश के कारण को खोजने में लगी हुई है। संभवतः सारे कारण एक ओर ही निशाना कर रहे है। नंदादेवी की चोटी जोकी करीब सी लेवल से 5000 किलोमीटर की ऊंचाई पर है उसपे भारी स्नोफॉल की वजह से एक हैंगिंग ग्लेशियर बन गया था।
बर्फ के मूवमेंट की वजह से ग्लेशियर करीब 2000 की हाइट से नीचे गिर गया था। लेकिन अभी-भी एक सवाल इसमें अछूता रह गया, की आख़िर पानी का इतना ज़्यादा बहाव कैसे हो गया था।
इस बात पर जब बात की गई तो सबसे ज़्यादा रख सिर्फ़ एक एक्स्प्लनेशन पर बैठाया जा सका। क्या हुआ कि जनवरी और फ़रवरी के महीने बर्फ़ पिघलने भी लगे थे जिसकी वजह से छोटे-छोटे पांड में पानी बढ़ने लगे थे, और जैसे ही ग्लेशियर क्रैश हुआ उसके साथ ही पानी का भी वॉल्यूम बढ़ गया।
लेकिन वही एक और रीसर्च है जो बताती है कि पानी का वॉल्यूम बढ़ने के पीछे दूसरा कारण था। रीसर्च टीम बताती है कि सैटिलाइट इमेजेज को गौर से देखा जाए तो पता चलेगा कि नंदादेवी के उत्तरी इलकें में 25 हेक्टेर का डिप्रेशन था जहां पर पानी कलेक्ट होता जा रहा था। ये गढ़वाल हिमालय का हिस्सा है जोकि चमोलि ज़िले में ही पड़ता है।
क्लाइमट चेंज का कहां से आया लिंक?
इस तरह की हाइट और वातावरण के लिए ऐसी घटनाएं आम ही कही जा सकती है। लेकिन एक्स्पर्ट्स कहते है कि इस हादसे के तार क्लाइमट चेंज से जुड़े हुए है। हैंगिंग ग्लेशियर में ऐसी घटनाएं छोटे-छोटे स्तर पर हमेशा होती रहती है।
गौरतलब है कि जब हम बात करते है क्लाइमट चेंज की तो पता चलता है कि सर्दियों में भी अब उतनी ठंड नहीं रह गई है जिसकी वजह से हम कह सकते है एनवायरनमेंट में उतनी स्टेबिलिटी नहीं रह गई है। जिसका रिज़ल्ट चमोली जिले में हादसे से सबको मिला।
क्लाइमट चेंज को स्टडी करने में अभी भी हिमालय बहुत पीछे रह गया है जबकि विश्व में इसे सबसे ज़्यादा ज़रूरत है। हलकिं पिछले कई दशक में रीसर्च इंट्रेस्ट की वजह से हिमालय में क्लाइमट चेंज के इफ़ेक्ट्स को बहुत तेज़ी से स्टडी किया जा रहा है।
एक विस्तृत रिपोर्ट से पता चला कि हिंदू कुश हिमालय में ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से वह का टेम्परेचर लगातार बढ़ता जा रहा था। और ऐसा अनुमान भी लगाया गया है कि अगर दर को 1.5 डिग्री सेल्सियस भी रखा जाए उसके बावजूद भी टेम्परेचर बढ़ेंगे।
ग्लेशियरों के रैपिड फ्रेगमेंटेशन-
हालिया शोध में हिमालय क्षेत्र में ग्लेशियर के पीछे हटने और घटने की न केवल खतरनाक दरों का अनुमान लगाया गया है, बल्कि इससे ग्लेशियरों के रैपिड फ्रेगमेंटेशन का भी पता चलता है।
अंत में अगर बात की जाए तो केदारनाथ में हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट की तैयारी ज़ोरों पर थी। लेकिन उसके जन्म से पहले ही उसका अंतिम संस्कार हो गया। हाइवे के काम के साथ पावर प्रोजेक्ट का भी काम प्रॉग्रेस में था, जिसकी मंज़ूरी सरकार ने दी थी प्रकृति ने नहीं।
वर्तमान में निवेशों को आकर्षित करने के लिए किए गए प्रावधान संबद्ध जोखिमों के असमान संतुलन में समाप्त हो गए हैं। इसके परिणामस्वरूप, देश के नीति-निमताओं को ये सीखना चाहिए कि डेवलपमेंट सिर्फ़ इन्फ्रास्ट्रक्चर से ही नहीं होना चाहिए, बल्कि क्लाइमट चेंज के प्रभावों को झेलने की उनकी क्षमता के साथ व्यापक रूप से काम करना चाहिए।
हाइड्रोपावर और अन्य बुनियादी ढांचे-
वर्तमान में भारत को जिस चीज की आवश्यकता है, वह उसकी नीति और योजना के बारे में है, जिसमें हाइड्रोपावर और अन्य बुनियादी ढांचे के विकास के बारे में बताया गया है ताकि न केवल परियोजना का असर कम हो, बल्कि उनकी अनुकूल क्षमता भी बढ़े। और उसके साथ ही क्लाइमट चेंज के इफ़ेक्ट्स को स्टडी करके ऐसी बड़ी परियोजनाओं को हरी झंडी दिखाई जाए।
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