पंचायत चुनाव में बीजेपी की इंट्री से बिगड़ेगा सपा-बसपा का ‘खेल’ !
भारतीय जनता पार्टी में मोदी-शाह युग के उदय के साथ एक कहावत मशहूर हुई है। कहा जाता है कि चुनावों के बाद जहां दूसरी पार्टियां खुशियां या गम मनाती हैं तो दूसरी ओर बीजेपी अपने नए मिशन यानि अगले चुनाव की तैयारियों में जुट जाती है। मतलब बीजेपी 24X7 चुनावी मोड में रहती है। पार्टी आम लोगों के दिलो-दिमाग पर छाने का कोई मौका नहीं चूकती है।
उत्तर प्रदेश में अगले कुछ महीनों में होने वाले पंचायत चुनाव इसकी एक और बानगी बनने जा रही है। पंचायत चुनावों के लिए सीटों के आरक्षण की लिस्ट जारी होने के साथ ही बीजेपी खेमे में हलचल तेज हो गई है। ये पहली मर्तबा है जब बीजेपी पंचायत चुनाव में सीधे तौर पर शिरकत करने जा रही है। बीजेपी की इस रणनीति के मायने क्या हैं ?
पंचायत चुनाव को माना जा रहा है सेमीफाइनल-
उत्तर प्रदेश में साल 2022 में विधानसभा चुनाव होने हैं। लेकिन इसके पहले होने वाला पंचायत चुनाव बेहद अहम माना जा रहा है। सियासी पंडित पंचायत चुनाव को सेमीफाइनल के तौर पर देख रहे हैं। कहा जा रहा है कि पंचायत चुनाव से उत्तर प्रदेश के सियासी मूड का पता चलेगा।
बाजी किसके हाथ लगेगी, पंचायत चुनाव के नतीजों से ये काफी हद तक तय हो जाएगा। बीजेपी इस मौके को नहीं चूकना चाहती है। पार्टी ने अपने सिंबल पर चुनाव लड़ने का फैसला किया है। सियासी नब्ज टटोलने और टिकट बंटवारे को लेकर पार्टी के रणनीतिकार जुट गए हैं।
ग्रामीण इलाकों में नहीं रहा है बीजेपी का दबदबा-
उत्तर प्रदेश की राजनीति को समझने वाले ये जानते हैं कि शहरी इलाकों में बीजेपी का कोई तोड़ नहीं है। जिस वक्त प्रदेश में मायावती और मुलायम सिंह का बोलबाला था, उस वक्त भी यूपी के अधिकांश शहरों में बीजेपी की तूती बोलती थी। दौर कोई भी हो, अधिकांश नगर निगम पर बीजेपी का ही कब्जा रहा है। इसके उलट, ग्रामीण इलाकों में बीजेपी की पकड़ कमजोर रही है।
2014 के पहले बीजेपी की हार का प्रमुख कारण, कहीं न कहीं ग्रामीण इलाकों में बीजेपी का लचर प्रदर्शन रहा है। गांवों की राजनीति में जातिवाद प्रमुख फैक्टर रहता है। और समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी इस फैक्टर में काफी हद तक फिट साबित होती रही हैं। खासतौर से पंचायत चुनावों में इन्हीं दोनों क्षेत्रीय पार्टियों का दबदबा रहा है।
[bs-quote quote=”राममंदिर लहर के बाद एक ग्रामीण इलाकों में बीजेपी ने अपना जनाधार खो दिया। लगभग दो दशक तक बीजेपी ग्रामीण इलाकों में हाशिए पर रही। लेकिन अब सियासी तस्वीर पलट चुकी है। 2014 के बाद अपने मजबूत संगठन और रणनीतिकारों की बदौलत बीजेपी ने सपा और बसपा के वोटबैंक में बड़ी सेंधमारी की है। पंचायत चुनाव में सीधे उतरने का फैसला इसी ओर इशारा करता है।” style=”default” align=”center” author_name=”पवन सिंह” author_job=”वरिष्ठ पत्रकार”][/bs-quote]
योगी सरकार की होगी अग्निपरीक्षा
पंचायत चुनाव बीजेपी के लिए कई अन्य मायनों में अहम है।
-ग्रामीण इलाकों में पार्टी का क्या जनाधार है ?
– ग्रामीणों के बीच सीएम योगी आदित्यनाथ की लोकप्रियता का पता चलेगा।
-प्रदेश सरकार के चार साल का कामकाज की भी परीक्षा होगी।
-साथ ही कृषि कानून पर लोगों का मूड सामने आएगा।
दरअसल हाल के सालों में ग्रामीण इलाकों के कायाकल्प के लिए बीजेपी सरकार ने कई कल्याणकारी योजनाएं चलाई है। खासतौर से किसानों को लेकर कई कार्यक्रम चल रहे हैं। प्रधानमंत्री किसान सम्मान योजना के अलावा फसल बीमा योजना जैसी मोदी सरकार की फ्लैगशीप योजनाएं चल रही हैं। तो दूसरी ओर योगी सरकार ने भी ग्रामीण इलाकों में जिस तरह से बिजली-सड़क और पेयजल के क्षेत्र में बदलाव किया है, वह भी काबिल-ए-गौर है।
बीजेपी को उम्मीद है कि इन योजनाओं की बदौलत वह ग्रामीणों के दिलों में अपनी जगह बनाने में कामयाब रहेगा। उत्तर प्रदेश के कुल 58758 ग्राम पंचायत, जिनके कार्यकाल पूरे हो गए हैं। इसके अलावा ग्राम पंचायत सदस्य के कार्यकाल खत्म हो गए हैं। इसके अलावा सूबे के 823 ब्लॉक के क्षेत्र पंचायत सदस्य सीटों और 75 जिले की जिला पंचायत के सदस्यों की 3200 सीटों पर एक साथ चुनाव कराया जाना है।
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