ट्रिपल तलाक के बाद यूनिफॉर्म सिविल कोड की बारी !
बीजेपी ने गुरुवार को लोकसभा में तीन तलाक पर बिल पास होने को बड़ी राजनीतिक जीत की तरह सेलिब्रेट किया। पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने इसे ऐतिहासिक कदम करार दिया। हालांकि राज्य सभा में बिल को पास कराना सरकार के लिए आसान नहीं होगा, क्योंकि वहां बीजेपी के पास बहुमत नहीं है। साथ ही पार्टी को प्रादेशिक दलों से मदद की उम्मीद भी कम ही है। फिर भी बीजेपी को लगता है कि लोकसभा में इस बिल को पास करा के उसने तुष्टीकरण की राजनीति के खिलाफ एक बड़ा संदेश देने का काम किया है। साथ ही पार्टी ने यूनिफॉर्म सिविल कोड पर अपनी ‘बदली’ रणनीति का संकेत भी दिया है।
लोकसभा में बिल के पास होने के तुरंत बाद बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने कहा, ‘मैं इस बिल का समर्थन करने के लिए सभी साथी सांसदों को धन्यवाद देता हूं। इस बिल से मुस्लिम महिलाओं की जिंदगी में उम्मीद और सम्मान का एक नया दौर शुरू होगा।’ उन्होंने यह भी कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी महिलाओं को न्याय दिलाने के लिए प्रतिबद्ध है, जो धर्म या जाति पर आधारित नहीं है।
विरोधियों ने इस बिल का यह कहते हुए विरोध किया है कि बीजेपी इसकी आड़ में यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने के अपने छिपे हुए अजेंडे को लागू करना चाहती है। जाहिर है बीजेपी ने इस आरोप को गलत बताया है। दरअसल, बीजेपी ने जिस तरीके से तीन तलाक (तलाक-ए-बिद्दत) को आपराधिक बताने वाले बिल का मजबूती के साथ समर्थन किया है, वह पार्टी की रणनीति में आए बदलाव की ओर इशारा करता है। यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर पहले पार्टी की सोच यह थी कि इसे एक ही बार में लागू करने की दिशा में आगे बढ़ा जाए, लेकिन अब बीजेपी ने इसे लेकर धीरे-धीरे और बिना आक्रामक हुए आगे बढ़ने का फैसला किया है।
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पार्टी ने यह भी तय किया है कि तीन तलाक पर लाए गए बिल को ‘जेंडर जस्टिस’ की दिशा में एक कदम के रूप में पेश किया जाएगा। ऐसा करने का फायदा यह होगा कि विरोधी दल एक हद से आगे जाकर बिल का विरोध नहीं कर पाएंगे। साथ ही बीजेपी के खिलाफ और लेफ्ट-कांग्रेस के समर्थक माने जाने वाले ऐक्टिविस्ट्स का काम मुश्किल हो जाएगा।
माना जा रहा है कि तीन तलाक पर इस रणनीति के तहत आगे बढ़ने के बाद बीजेपी का अगला कदम बहुविवाह और हलाला जैसी विवादित प्रथाओं के खिलाफ हो सकता है। ऐसे में ‘सेक्युलर’ विरोधियों की दुविधा यह होगी कि वे ऐसी चीज का विरोध किस तरह करें जिसमें मुस्लिमों और हिंदुओ के बीच बराबरी की बात की जा रही है। खास तौर पर शाह बानो प्रकरण जैसी ‘गलती’ के बाद कांग्रेस लीडरशिप के लिए ऐसा करना आसान नहीं होगा।
बीजेपी सांसद मीनाक्षी लेखी ने इस बिल पर संसद में बहस के दौरान जब इसके एक अंश को पूर्व केंद्रीय मंत्री आरिफ मोहम्मद खान को समर्पित बताया, तो यह महज इत्तफाक नहीं था। मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों के लिए लड़ने वाले आरिफ ने शाह बानो प्रकरण के बाद राजीव गांधी के मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया था। लेखी ने कहा, ‘आज कुछ सदस्य इस बिल में गुजारा भत्ता को लेकर चिंता जाहिर कर रहे हैं, लेकिन विडंबना यह है कि शाह बानो केस में कांग्रेस ने इसका प्रावधान करने से इनकार कर दिया था।’
(साभार-नवभारत टाइम्स)