एनके सिंह: पत्रकारिता में सामाजिक सरोकार की झलक
पत्रकारिता में 40 साल से अधिक की लंबी यात्रा तय कर चुके नरेन्द्र कुमार सिंह (एन.के. सिंह) ने पत्रकारिता में अनेक झंडे गाड़े हैं। एनके सिंह हमेशा समाज से जुड़े रहे हैं। व्यावसायिक पत्रकारिता के इस दौर में भी उनकी पत्रकारिता में सामाजिक सरोकार स्पष्ट झलकते हैं। अंग्रेजी और हिन्दी पत्रकारिता में अपनी नई लकीर खींच चुके एनके सिंह पाठकों के बीच बेहद लोकप्रिय रहे हैं। उन्होंने हमेशा अखबार को पाठकों से जोड़ने की दिशा में काम किया।
कर्म क्षेत्र
वे हैं तो बिहार के लेकिन उनका कर्म क्षेत्र पूरा भारत की रहा है, जिसमें से मध्य प्रदेश में उन्होंने अपनी सेवाएं लंबे समय तक दी और अब वे मध्य प्रदेश के ही निवासी हो गए हैं। सौम्य व्यवहार के धनी सिंह फिलहाल स्वतंत्र रहकर रचनात्मक लेखन और सामाजिक कार्यों को आगे बढ़ा रहे हैं।
करियर की शुरुआत
एनके सिंह ने वर्ष 1976 में ‘नई दुनिया’ के संपादकीय पेज से अपने करियर की विधिवत शुरुआत की। इसके अलावा ‘हिन्दुस्तान टाइम्स’ के मध्यप्रदेश के स्थानीय संपादक के रूप में, ‘इंडियन एक्सप्रेस’ के गुजरात संस्करणों के संपादकों के रूप में और ‘दैनिक भास्कर’ के राजस्थान संस्करणों के संपादक के रूप में वे काम कर चुके हैं। वे ‘दैनिक भास्कर’ भोपाल के स्थानीय संपादक भी रहे और ‘इंडिया टुडे’ पत्रिका के एसोसिएट्स एडिटर और विशेष संवाददाता के रूप में करीब 14 साल तक एमपी में कार्य कर चुके हैं। पीपुल्स समाचार समूह के संपादक के रूप में भी उन्होंने कार्य किया।
‘संपादक के नाम पत्र‘
करीब चार दशक पहले अप्रैल 1976 से मार्च दिसंबर 1978 तक उन्होंने ‘नई दुनिया’ में राजेन्द्र माथुर के साथ वरिष्ठ उप संपादक के रूप में कार्य किया। नीरस और बेकार समझे जाने वाले ‘संपादक के नाम पत्र’ कॉलम की जिम्मेदारी एनके सिंह को दी गई। अपनी समझबूझ से उन्होंने इस कॉलम का बेहतर इस्तेमाल किया। ‘संपादक के नाम पत्र’ धीरे-धीरे इतना लोकप्रिय हो गया कि प्रतिदिन औसत 265 पाठकों के पत्र आने लगे।
उन्हें कई अवसरों पर अखबार का एक पूरा पन्ना ही पाठकों के पत्रों के लिए समर्पित करना पड़ता था। पाठकों के बीच इस कॉलम की लोकप्रियता का आलम यह था कि कई शहरों और कस्बों में स्वयंस्फूर्त पत्र लेखक मंच बन गए।
डॉक्यूमेंट्री रही चर्चित
बिहार के एक छोटे से गांव में जन्मे सिंह ने इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के लिए भी काम किया है। बीबीसी ने भोपाल गैस कांड पर 1985 में डॉक्यूमेंट्री तैयार की थी। सिंह ने इसके लिए स्क्रिप्ट लिखी थी। यह डॉक्यूमेंट्री खूब चर्चित रही। ब्रिटेन के ही ग्रनाडा टीवी की ओर से भोपाल गैस कांड पर बनाई गई डॉक्यूमेंट्री के लिए भी उन्होंने सलाहकार के रूप में काम किया। इस डॉक्यूमेंट्री को न्यूयॉर्क फिल्म फेस्टिवल में खोजी पत्रकारिता के लिए दो स्वर्ण पदक मिले।
16 साल के उम्र में ही लेख प्रकाशित
महज 16 साल की उम्र में एनके सिंह का पहला लेख कलकत्ता की पत्रिका ‘फ्रंटियर’ में प्रकाशित हुआ। 19 साल के होते-होते उनके लेख सेमिनार और इलस्ट्रटेड वीकली ऑफ इंडिया जैसी प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में छपने लगे। 1977 में इकॉनोमिकल एंड पॉलिटिकल साप्ताहिक में उन्होंने शंकर गुहा नियोगी पर एक लेखमाला लिखी थी। इसी लिखी माला के माध्यम से देश ने शंकर गुहा नियोगी को जाना।
सुप्रीम कोर्ट भी प्रभावित
एनके सिंह के द्वारा समसामयिक मुद्दों पर उठाए गए विषयों पर सुप्रीम कोर्ट ने कई बार पहल की और पीड़ितों को न्याय दिलाने की शुरुआत की। इनमें पत्थर खदानों में काम कर रहे बंधुआ मजदूरो का मुद्दा प्रमुख है, जो मध्य प्रदेश में कार्य कर रहे थे। इसके अलावा मंदसौर में स्लेट-पेंसिल उद्योग में काम कर रहे मजदूरों को सिलिकोसिस बीमारी का मुद्दा भी प्रमुख रहा और इटारसी के पास केसला फायर रेंज में बमों की खोल बीनने वाले गरीब कबाड़ियों का मुद्दा भी।