भौम प्रदोष व्रत : भगवान शिव की पूजा-अर्चना से होगी सौभाग्य में अभिवृद्धि

Bhaum Pradosh Vrat

भगवान शिवजी की महिमा अपरम्पार है। हर आस्थावान धर्मावलम्बी भगवान शिवजी की पूजा-अर्चना करके लाभ उठाते हैं। तैंतीस कोटि देवी-देवताओं में भगवान शिव को देवाधिदेव महादेव माना गया है। इनकी कृपा से जीवन में सुख-समृद्धि बनी रहती है, साथ ही संकटों का निवारण भी होता रहता है।

चांद्रमास के दोनों पक्षों की त्रयोदशी तिथि के दिन प्रदोष व्रत रखा जाता हैत्रयोदशी तिथि का मान प्रदोष बेला में होना आवश्यक है। प्रदोष बेला का शुभारम्भ सूर्यास्त के पश्चात् और रात्रि के प्रारम्भ को बतलाया गया है। प्रदोष बेला 2 घटी या तीन घटी यानि 48 या 72 मिनट का होता है।

प्रख्यात ज्योतिषविद् श्री विमल जैन जी ने बताया कि वैशाख शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि 4 मई, सोमवार की अर्धरात्रि के पश्चात् 2 बजकर 54 मिनट पर लगेगी, जो कि अगले दिन 5 मई, मंगलवार की अर्धरात्रि 11 बजकर 22 मिनट तक रहेगी। प्रदोष वेला में त्रयोदशी तिथि का मान 5 मई, मंगलवार को होने से प्रदोष व्रत इसी दिन रखा जाएगा। भौम प्रदोष के व्रत से ऋण-मुक्ति तथा सौभाग्य में अभिवृद्धि होती है।

हर दिन के प्रदोष व्रत का फल-

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ज्योतिषविद् विमल जैन ने बताया कि प्रत्येक दिन (वार) के प्रदोष व्रत का अलग-अलग फल मिलता है। जैसे–रवि प्रदोष-आय, आरोग्य, सुख-समृद्धि, सोम प्रदोष-शान्ति एवं रक्षा, भौम प्रदोष-कर्ज से मुक्ति, बुध प्रदोष-मनोकामना की पूर्ति, गुरु प्रदोष-विजय व लक्ष्य की प्राप्ति, शुक्र प्रदोष-आरोग्य, सौभाग्य एवं मनोकामना की पूर्ति, शनि प्रदोष-पुत्र सुख की प्राप्ति। प्रदोष व्रत से शिवभक्तों का निरन्तर कल्याण होता रहता है। कलियुग में प्रदोष व्रत को शीघ्र फलदायी बतलाया गया है।

प्रदोष व्रत करने का विधान-

ज्योतिषविद् विमल जैन ने बताया कि व्रतकर्ता को प्रात:काल ब्रह्म मुहूर्त में उठकर अपने समस्त दैनिक कृत्यों से निवृत्त होने के उपरान्त अपने इष्ट देवी-देवताओं की पूजा अर्चना के पश्चात् शिवजी की प्रसन्नता के लिए प्रदोष व्रत का संकल्प लेना चाहिए।

ऐसे होंगे शिवजी प्रसन्न-ज्योतिषविद् विमल जैन के अनुसार दिनभर निराहार रहना चाहिए। सायंकाल पुनः स्नान करके यथासम्भव धुले हुए या स्वच्छ वस्त्र धारण कर प्रदोष काल में श्रद्धा भक्ति व आस्था के साथ भगवान शिवजी की विधि-विधान पूर्वक पंचोपचार, दशोपचार अथवा षोडशोपचार पूजा-अर्चना करनी चाहिए।

भगवान शिवजी का अभिषेक करके उन्हें वस्त्र, यज्ञोपवीत, आभूषण, सुगन्धित द्रव्य के साथ बेलपत्र, कनेर, धतूरा, मदार, ऋतुपुष्प, नैवेद्य आदि अर्पित करके धूप-दीप के साथ पूजा-अर्चना पूर्व दिशा या उत्तर दिशा की ओर मुख करके करनी चाहिए। शिवभक्त अपने मस्तिष्क पर भस्म और तिलक लगाकर शिवजी की पूजा करें तो पूजा विशेष फलदायी मानी गई है। भगवान् शिवजी की महिमा में प्रदोष स्तोत्र का पाठ एवं स्कन्दपुराण में वर्णित प्रदोष व्रत कथा का पठन या श्रवण अवश्य करना चाहिए। जिससे शिवजी शीघ्र होकर मनोकामना की पूर्ति का आशीर्वाद देते हैं।

यह व्रत महिलाएँ एवं पुरुष दोनों के लिए समान रूप से फलदायी है। व्रतकर्ता को दिन में शयन नहीं करना चाहिए। इस दिन अपनी दिनचर्या सुव्यवस्थित रखते हुए भगवान शिव की अर्चना करनी चाहिए। शिवजी की महिमा में रखे जाने वाला प्रदोष व्रत जीवन के समस्त दोषों का शमन करता है।

विमल जैन वाराणसी के प्रख्यात हस्तरेखा विशेषज्ञ, रत्न परामर्शदाता, फलित अंक ज्योतिष एवं वास्तुविद हैं।

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