सावधान हो जाएं नहीं तो गंगा के निचले क्षेत्र में पड़ सकता है सूखा!

बीएचयू के डीएसटी-महामना जलवायु परिवर्तन विभाग का रिसर्च

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वाराणसी। काशी हिंदू विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने अपने शोध में एक चौकाने वाले खुलासे में कहा है कि आने वाले समय में गंगा के निचले इलाके में सूखे का सामना करना पड़ सकता है। विश्व के तापमान में बढ़ोतरी से दुनिया भर में हाइड्रो-क्लाइमेट स्थितियां उत्पन्न हो रही है जिसके चलते बाढ़ और सूखे का ख़तरा बढ़ रहा है। तापमान में बढ़ोतरी से ज्यादा बारिश की स्थितियां भी पैदा हो रही हैं। ज्यादा बारिश होने से पानी की मात्रा में भी इज़ाफा होगा।

यह शोध काशी हिंदू विश्वविद्यालय के पर्यावरण एवं धारणीय विकास संस्थान के डीएसटी-महामना जलवायु परिवर्तन उत्कृष्ट शोध केन्द्र के प्रो. आर. के. मल्ल और पीएचडी के शोधार्थी पवन कुमार चौबे द्वारा किया गया है। पवन कुमार चौबे ने अपने शोध में लिखा है कि भविष्य में जलवायु परिवर्तन के चलते शहरी क्षेत्रों में कहीं-कहीं बाढ़ का सामना करना पड़ेगा साथ ही शोध के दौरान जोखिम वाले शहरी क्षेत्रों का भी पता लगाया गया है। पवन कुमार चौबे ने अपने शोध में यह भी कहा है कि समय रहते अगर प्रभावी कदम नहीं उठाया गया तो स्थितियां काफी विकराल हो जाएगी।

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पूर्वोत्तर क्षेत्र की नदियों में जलस्तर बढ़ने की संभावना

अध्ययन में यह पाया गया कि पश्चिमी घाट और पूर्वोत्तर नदियों में अत्यधिक वर्षा की घटनाओं से जलस्तर बढ़ने की संभावना है, जबकि गंगा के ऊपरी क्षेत्रों में और सिंधु नदी में भारी वर्षा की आकृति में 14.3% प्रतिशत की वृद्धि देखी गई। इसके अलावा निकट भविष्य में भारत के पश्चिमी भाग की नदियों के ऊपरी हिस्से में भारी वर्षा की संभावना में लगभग 4–10 प्रतिशत की वृद्धि देखने को मिल सकती है। मुंबई और पुणे जैसे मुख्य नगर जो भारत के पश्चिम में बहने वाले नदी क्षेत्र में स्थित हैं  उनमें भविष्य में नगरीय बाढ़ के लिए उच्च संभावना हो सकती है।

अध्ययन में CMIP-6 जलवायु मॉडल का किया गया प्रयोग

अध्ययन में CMIP-6 जलवायु मॉडल का उपयोग करके भारत की विभिन्न नदियों पर भविष्य के हाइड्रो क्लाइमेट घटनाओं जैसे बाढ़ और सूखे की घटनाओं की जांच की गई। CMIP 6  मॉडल मौसम और पर्यावरण से जुड़े कई आधारों को लेकर भविष्य के जलवायु अनुमानों का पता लगाने में सहायक होता है। गंगा के निचले क्षेत्र में निकट भविष्य में मासिक औसत वर्षा में लगभग 7 से 11 मिमी/दिन की कमी देखी गई है। साथ ही साथ भारत के पूर्वी घाट की नदियों में दैनिक वर्षा में लगभग 20% की कमी पाई गई, हालांकि  साल 2050 के बाद यह 15% की वृद्धि दर्ज कर सकती है।

इस अध्ययन के परिणाम दिखाते हैं कि भारत के नदियों में बाढ़ और सूखा पड़ने की घटनाओं में वृद्धि देखी जा सकती है। इसके अलावा, शोध ने विभिन्न नदियो के अंतर्गत आने वाले नगरों को नए हॉट स्पॉट्स के रूप में भी पहचाना है, जिससे शहरी क्षेत्र के बाढ़ से निपटने के लिए प्रभावी रणनीतियां बनाने में मदद मिल सकती है।

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