बांग्लादेश हिंसाः BNP और भारत का कैसा है संबंध, किन चीजों पर पड़ेगा असर
Bangladesh Violence: आरक्षण को लेकर बांग्लादेश में शुरू हुआ बवाल अब गृहयुद्ध का रूप ले चुका है, इस बवाल ने इस कदर तूल पकड़ा है कि, बांग्लादेश की पीएम शेख हसीना को कुर्सी और देश दोनो ही छोड़कर भारत आना पड़ा है. हालांकि, इसके बाद भी स्थिति जस की तस ही बनी हुई है और प्रदर्शनकारी ज्यादा ही हावी हो गये हैं. कहा जा रहा है कि शेख हसीना को अपने देश में काफी समय से विपक्षी पार्टियों के प्रदर्शन का सामना करना पड़ रहा था. शेख हसीना को कुर्सी से बेदखल करने की साजिश पहले से रची जा रही थी.
बांग्लादेश और भारत के संबंध …
अगर भारत की आजादी के बाद भारत-बांग्लादेश ऐतिहासिक संबंधों की बात करें तो इसकी नींव साल 1971 में बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के साथ पडी. पाकिस्तान के अत्याचारों से त्रस्त पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लदेश) की बांग्लाभाषी जनता को राहत दिलाने में भारत की महत्वपूर्ण भूमिका रही. कहा जा रहा है कि यदि उस समय भारत हस्तक्षेप नहीं करता तो शायद आज बांग्लादेश का अस्तित्व भी नहीं होता.
इतना ही नहीं भारत के इतना करने के बाद बांग्लादेश ने भारत के साथ सीमा विवाद, पानी विवाद समेत कई तरह के विवादों को लेकर भारत को आंखे दिखाना शुरू कर दिया. और 1996 में शेख हसीना की सरकार बनने के बाद पानी पर अहम् समझौता हुआ और भारत- बांग्लादेश के सम्बन्ध मजबूत होने लगे.
बांग्लादेश में तख्तापलट के बाद इन चीजों पर पड़ेगा असर…
बांग्लादेश में हुए तख्तापलट और जारी हिंसा के बीच हवाई सेवाएं रोक दी गई है, जिसका सीधा असर व्यापर पर पड़ेगा. कहा जा रहा है कि पीएम मोदी और बांग्लादेश की पीएम शेख हसीना के बीच तीस्ता सिंचाई प्रोजेक्ट को लेकर बातचीत चल रही थी, जिस पर चीन की बुरी नजर है.
माना जा रहा है कि बांग्लादेश से शेख हसीना का तख्तापलट हो जाना भारत के लिए कठिन समय है. क्योंकि अब बांग्लादेश में वह सब कुछ होगा जो पाकिस्तान और चीन चाहेगा. बांग्लादेश में तख्तापलट के बीच भारत को बिजनेस, राजनीतिक और सामरिक दृष्टि से भी चौकन्ना रहना होगा.
BNP और भारत का कैसा रहा है संबंध…
बता दें कि बांग्लादेश की BNP सरकार और भारत के संबंध शुरू से ही अच्छे नहीं रहे हैं. तब भारत को सुरक्षा संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ा था. बीएनपी शासन के दौरान, भारत विरोधी गतिविधियां काफी बढ़ गईं. इतना ही नहीं 2001 से 2006 के बीच जमात-ए-इस्लामी जैसे इस्लामी समूहों के साथ गठबंधन करके बीएनपी की भारत विरोधी बयानबाजी को और बढ़ावा मिला.
भारत विऱोधी है BNP
गौरतलब है कि बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी शुरुआत से ही भारत विऱोधी रही है. दोनों पक्षों के बीच भरोसे की भारी कमी थी. यह भी कहा जाता रहा है कि उनकी सरकार की भारत विरोधी तत्वों को समर्थन देने और उन्हें पनाह देने के लिए भी आलोचना की गई थी, वहीँ BNP प्पकिस्तान और चीन समर्थक और देश में जमात- ए – इस्लामी को समर्थन करती है जो एक तरह का आतंकी संगठन है.
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तख्तापलट के बाद बांग्लादेश में हिन्दुओं पर असर…
गौरतलब है कि बांग्लादेश में हिन्दुओं की आबादी करीब 8 फीसदी है जो अल्पसंख्यक समुदाय से भी ज्यादा है. क्यूंकि यहां बांग्लादेश के गठन से ही हिन्दुओं का दबदवा है. बता दें कि हाल ही में हुए चुनाव में 12 हिन्दू सांसद चुने गए थे. 2019 में यह संख्या 19 थी. इस बार हसीना सरकार में 4 हिन्दू मंत्री भी थे. बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के वक्त से ही हिंदू यहां की राजनीति के केंद्र में रहे हैं. खालिदा जिया की पार्टी में भी हिंदुओं की हिस्सेदारी है. पार्टी के टॉप 15 पोस्ट में एक हिंदू घनश्याम चंद्र रॉय भी शामिल हैं. बांग्लादेश के 3 जिले ऐसे हैं, जहां पर हिंदुओं की आबादी 20 प्रतिशत से ज्यादा है. ये जिले हैं- गोपालगंज, मौलवीबाजार और ठाकुरगांव. इन 3 जिलों में लोकसभा की 10 सीटें हैं.
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