किसान और किसानी से जुड़ा पर्व बैसाखी की धूम आज पूरे देश में देखने को मिल रही है। देश के कई हिस्सों में बैसाखी को अलग-अलग नामों से जाना जाता है।
ये त्यौहार खासकर कृषि पर्व के तौर पर मनाया जाता है क्योंकि इस दौरान पंजाब में रबी की फसल पककर तैयार हो जाती है। असम में इस पर्व को बिहू कहा जाता है। इस दौरान यहां फसल काटकर इसे मनाया जाता है। बंगाल में भी इसे पोइला बैसाख कहते हैं। पोइला बैसाख बंगालियों का नया साल होता है।
क्या है इसका इतिहास-
अगर बात करें बैसाखी के इतिहास की तो साल 1699 में सिखों के 10वें और अंतिम गुरु गोबिंद सिंह ने बैसाखी के दिन ही आनंदपुर साहिब में खालसा पंत की नींव रखी थी। इस दौरान खालसा पंथ की स्थापना का मकसद लोगों को तत्कालीन मुगल शासकों के अत्याचारों से मुक्त करना था।
बैसाखी की पंजाब में खास धूम रहती है। बैसाखी के दिन पंजाब के लोग ढोल-नगाड़ों पर नाचते-गाते हैं। गुरुद्वारों को सजाया जाता है, भजन-कीर्तन कराए जाते हैं। लोग एक-दूसरे को नए साल की बधाई देते है। घरों में कई तरह के पकवान बनते हैं और पूरा परिवार साथ बैठकर खाना खाता है।
पूरे उत्तर भारत में रहती है बैसाखी की धूम-
इसके अलावा पूरे उत्तर भारत में भी बैसाखी मनाई जाती है। केरल में यह त्योहार विशु कहलाता है। बैसाखी के दिन ही सूर्य मेष राशि में संक्रमण करता है इसलिए इसे मेष संक्रांति भी कहते हैं।
यह भी पढ़ें: मना लो लोहड़ी ओए.. दूल्हा पट्टी वाला होए…
यह भी पढ़ें: जानवर को काट कर नहीं बल्कि केक काट कर मनाए त्यौहार
(अन्य खबरों के लिए हमें फेसबुक पर ज्वॉइन करें। आप हमें ट्विटर पर भी फॉलो कर सकते हैं।)