हमेशा से सोशल मीडिया से बचने वाली बहुजन समाज पार्टी सु्प्रीमो मायावती ने बुधवार को आखिरकार सोशल मीडिया में एंट्री मार दी। उनके इस पहल को जहां उनके समर्थकों स्वागत किया तो वहीं दूसरी तरफ विरोधियों ने और अन्य टिप्पणियां करने से बाज नही आ रहे है।
उनके ट्विटर हैंडल से ट्वीट किए गए जिसके बदले कई अपत्तिजनक टिप्पणियां की जा रही है। लोग उन्हें ट्रोल कर रहे है औऱ बदले में बेतुके शब्दों का प्रयोग किया जा रहा है। उनका जमकर मजाक उड़ाया जा रहा है।
आपत्ति जनक टिप्पणी और ट्रोल पर हो सकती है जेल
दिल्ली हाईकोर्ट के वकील के मुताबिक अगर मायावती के खिलाफ ट्विटर पर भी जातिसूचक शब्दों का इस्तेमाल किया जाता है तो ये सीधे-सीधे एससी-एसटी एट्रोसिटी एक्ट का मामला बनता है। कोर्ट में ऐसे जुर्म को साबित करने के लिए ख़ास जाति के खिलाफ ‘स्ट्रॉन्ग लैंग्वेज’ का प्रमाण होना चाहिए।
एससी-एसटी एक्ट के तहत ऐसे कमेंट के लिए भी शिकायत कराई जा सकती है जिसमें स्पष्ट न कहकर ‘ख़ास इंटेन्शन’ के तहत किसी जाति का होने पर ट्रोल किया गया हो, लेकिन इसे कोर्ट में साबित करना काफी मुश्किल है।
एक वकील के अनुसार ये ज़रूर मानते हैं कि जुर्म हुआ है या नहीं ये तो कोर्ट में साबित होगा लेकिन गिरफ़्तारी ज़रूर हो जाएगी, ऐसे में ट्विटर पर भी किसी तरह का कमेंट करने से पहले सोच लेना चाहिए। साइबर एक्सपर्ट के मुताबिक ऐसे मामलों में आईटी एक्ट, आईपीसी और सीआरपीसी तीनों के तहत शिकायत दर्ज कराई जा सकती है। ट्रोलिंग के मामले में तो अगर एससी-एसटी एक्ट कोर्ट में साबित नहीं भी हो पाए तो ट्रोलिंग और हरासमेंट के लिए आईटी एक्ट के तहत भी आपको सजा मिल सकती है।
अगर ट्रोलिंग का मामला हो तो..
राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के सदस्य योगेंद्र पासवान के मुताबिक सोशल मीडिया पर भी अगर किसी व्यक्ति विशेष के लिए अभद्र और जातिसूचक कमेंट या ऐसी चर्चा की जाती है तो ये सीधे-सीधे एससी-एसटी एट्रोसिटी एक्ट का मामला बनता है। पासवान के मुताबिक मायावती के खिलाफ हो रही ट्रोलिंग के सन्दर्भ में भी ये मामला बनता है। पासवान ने बताया कि अगर ऐसी ट्रोलिंग काफी ज्यादा है और कोई और आयोग से शिकायत करता है तो आयोग स्वतः संज्ञान लेकर भी पुलिस को मामला दर्ज करने के लिए कह सकता है।
तुरंत दर्ज होती है एफआईआर
बता दें कि अनुसूचित जाति का कोई व्यक्ति अगर किसी के खिलाफ एससी-एसटी एट्रोसिटी एक्ट के तहत शिकायत दर्ज कराता है तो आरोपी व्यक्ति के खिलाफ तुरंत प्राथमिकी दर्ज हो जाती है और बिना जांच के उस व्यक्ति को गिरफ्तार कर लिया जाता है। एससी/एसटी एक्ट में दर्ज मामलों की सुनवाई भी स्पेशल कोर्ट में होती है। इस एक्ट में अग्रिम जमानत मिलने का प्रावधान नहीं है। इन मामलों में जमानत केवल हाईकोर्ट से मिलती है।
अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लोगों पर होने वाले अत्याचार और उनके साथ होनेवाले भेदभाव को रोकने के मकसद से अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार रोकथाम) अधिनियम, 1989 बनाया गया था।
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