26/11 हमला: जानें, पूरी कहानी उस इंस्पेक्टर की जुबानी

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गिरगाव चौपाटी पर 16 पुलिस वालों को लीड करते हुए उस रात एपीआई हेमंत बावधनकर ने बैरिकेटिंग की थी। तभी रात करीब 12.15 मिनट पर कंट्रोल से कॉल आई कि आतंकी स्कोडा कार से गिरगांव चौपाटी की तरफ भाग रहे हैं। सभी 16 पुलिस वाले सतर्क हो गए।
स्माइल के ऊपर कई राउंड गोलियां चलाई
तभी अचानक बैरिकेटिंग से करीब 50 मीटर की दूरी पर एक कार खड़ी हुई दिखाई दी। जिसने अपना अपर स्टार्ट किया था और ग्लास वाटर शुरू करके वाइपर चला रहा था। जब बावधनकर ने उसे आगे आने के लिए कहा तो उसने अचानक गाडी स्टार्ट की और वहां से यू टर्न करने लगा। लेकिन गाड़ी डिवाइडर से टकरा गई। जिसके बाद तुरंत बावधनकर और उसके सहयोगी से गाड़ी की ड्राइविंग सीट पर बैठे अबू इस्माइल के ऊपर कई राउंड गोलियां चलाई।
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जिसमें वो वहीं खत्म हो गया। जबकि कसाब ने सेरेंडर होने का नाटक किया। सेरेंडर मुद्रा को देख पीएसआई तुकाराम ओंबले और एक दूसरा अधिकारी कसाब की तरफ आगे बढ़े ही थे कि उसने गोली चलानी शुरू की और दोनों जख्मी हो गए। तब तक दूसरे कांस्टेबल ने कसाब को दूसरी तरफ से घेरकर रोड पर पटक दिया और उसे पुलिस की लाठियों से मारपीट शुरू कर दिया।
…और वो इस बात को अब भी भुला नहीं पाए हैं
जिससे उसके हाथ से एके 47 छूट गई। कांस्टेबल ने कसाब को इतना मारा कि वो बेहोश हो गया। इसके बाद पुलिस ने उसे और अबू इस्माइल को अस्पताल भेजा और दूसरी गाड़ी में जख्मी अधिकारियों को अस्पताल भेजा। लेकिन तुकाराम ओंबले की अस्पताल में मौत हो गई। हेमंत बावधनकर की मानें तो 26/11 देश के इतिहास में काला दिन है, और वो इस बात को अब भी भुला नहीं पाए हैं।
(साभार – न्यूज 18)

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