कर्नाटक चुनाव : कांग्रेस की संजीवनी पर भारी पड़ेगी मोदी लहर ?
कर्नाटक(Karnataka) में विधानसभा चुनावों की घोषणा हो गई है। 12 मई को विधानसभा चुनावों के लिए वोटिंग होनी है जबकि परिणाम 15 मई को घोषित किए जाएंगे। यह चुनाव कांग्रेस और बीजेपी, दोनों के लिहाज से अहम समझा जा रहा है। 2014 के बाद से लगातार बीजेपी से मुकाबले में हार रही कांग्रेस किसी भी कीमत पर यह चुनाव जीतना चाहती है।
कर्नाटक जीत कांग्रेस के लिए संजीवनी
हाल में कांग्रेस के महाधिवेशन में सोनिया गांधी ने कर्नाटक चुनावों की तुलना 1978 में चिकमंगलूर लोकसभा उपचुनाव में पूर्व पीएम इंदिरा गांधी को मिली जीत से की। कांग्रेस को उम्मीद है कि सूबे की जीत उसे 1978 की तरह ही संजीवनी देगी। वहीं बीजेपी के लिए भी यह साउथ की राजनीति में रीएंट्री जैसा है। मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनावों से पहले बीजेपी मोदी लहर को भी बनाए रखना चाहती है। इसके अलावा ममता, शरद पवार के नेतृत्व में थर्ड फ्रंट के लिए चल रही कोशिशों के लिहाज से भी कर्नाटक(Karnataka) का रिजल्ट अहम है।
जीते तो राहुल गांधी का लॉन्चिंग पैड, हारे तो 2019 के लिए भी झटका
कर्नाटक चुनाव कांग्रेस और राहुल गांधी, दोनों के लिए ही लिटमस टेस्ट है। 2013 में कांग्रेस ने बीजेपी से इस सूबे की सत्ता को छीना था। अब 2019 के आम चुनावों से पहले कांग्रेस के लिए इसे बचाए रखना बहुत जरूरी है। कर्नाटक चुनाव की लड़ाई को धर्मनिरपेक्षता बनाम सांप्रदायिकता की लड़ाई बता रहे सिद्धारमैया खुद इसे 2019 के चुनावों के लिए मील का पत्थर बता रहे हैं। अपनी जीत के प्रति आश्वस्त सिद्धारमैया कांग्रेस के महाधिवेशन में यह भई दावा कर चुके हैं कि अगले साल राहुल गांधी को पीएम बनने से कोई नहीं रोक सकता। हालांकि इसके उलट चुनौतियां भी हैं। अगर कांग्रेस कर्नाटक की सत्ता को नहीं बचा पाई तो न केवल आने वाले विधानसभा चुनावों बल्कि 2019 के लिए भी राहुल व पार्टी की उम्मीदें धूमिल हो जाएंगी।
फिर दोहराएगा ‘चिकमंगलूर’? 1978 जैसी संजीवन का इंतजार
कांग्रेस को उम्मीद है कि कर्नाटक उसके लिए 1978 के चिकमंगलूर की कहानी फिर दोहराएगा। दरअसल 1977 में जनता दल के बैनर तले एकजुट होकर पार्टियों ने इंदिरा के नेतृत्व में कांग्रेस को हरा दिया था। 1978 में इंदिरा गांधी ने चिकमंगलूर से लोकसभा का उपचुनाव लड़ा। जनता दल ने पूरी ताकत लगाई, लेकिन इंदिरा चुनाव जीत गईं। बताते हैं कि तब नारा लगा था कि ‘एक शेरनी सौ लंगूर, चिकमंगलूर चिकमंगलूर’। इस जीत के बाद इंदिरा एक बार फिर देश की सत्ता में वापस लौटी थीं। आज करीब चार दशक बाद कांग्रेस को फिर उम्मीद है कि कर्नाटक की जीत केंद्र की सत्ता में वापसी की राह प्रशस्त करेगी।
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बीजेपी के लिए 2019 तक मोदी लहर बनाए रखने की चुनौती
पीएम मोदी के नेतृत्व में बीजेपी 2014 के बाद से लगातार विजय रथ पर सवार है। नॉर्थ ईस्ट में मणिपुर और त्रिपुरा जैसे राज्यों में भी बीजेपी को जीत मिली है। हालांकि हाल में यूपी में हुए दो लोकसभा उपचुनावों में बीजेपी को हार मिली। ऐसे में बीजेपी के सामने बड़ी चुनौती मोदी लहर को बनाए रखने की है। कांग्रेस का पूरा जोर इस बात पर है कि कर्नाटक चुनावों में एक बार जीत मिली तो बीजेपी का मोदी एक्स फैक्टर ध्वस्त हो जाएगा। ऐसे में राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को सरकार विरोधी लहर को भुनाने में सफलता मिलेगी।
थर्ड फ्रंट के लिए भी कर्नाटक के रिजल्ट अहम
2019 में बीजेपी को हराने के लिए कांग्रेस जहां विपक्ष को एकजुट कर रही है वहीं एक गैर कांग्रेसी और गैर बीजेपी फ्रंट के लिए भी कोशिश साफ नजर आ रही है। पश्चिम बंगल की सीएम और टीएमसी नेता ममता बनर्जी ने हाल में ही एनसीपी मुखिया शरद पवार, आप नेता केजरीवाल और शिवसेना नेताओं से मुलाकात की है। इसके अलावा ममता यूपी के एसपी-बीएसपी गठबंधन को भी समर्थन का ऐलान कर चुकी हैं। ऐसे में अगर कांग्रेस कर्नाटक का किला बचा लेती है तो विपक्षी एकजुटता के बीच पार्टी की आवाज मजबूत होगी। कांग्रेस की हार की स्थिति में ममता बनर्जी और शरद पवार जैसे क्षेत्रीय क्षत्रपों की थर्ड फ्रंट की कवायद का रूप और निखर सकता है। वहीं अगर बीजेपी कर्नाटक जीतने में सफल रही तो पार्टी के पास 2019 के लिहाज से किसी भी तरह के गठबंधन को हवा में उड़ाने के लिए पर्याप्त तर्क मिल जाएंगे।
जानिए वे 6 मुद्दे, जिनके इर्द-गिर्द लड़ा जा रहा कर्नाटक का रण
बीएस येदियुरप्पा का पास्ट: बीजेपी ने बीएस येदियुरप्पा को सीएम कैंडिडेट बनाया है। 2011 में करप्शन के आरोपों पर येदियुरप्पा को सीएम पद से इस्तीफा देना पड़ा था। उन्हें गिरफ्तार भी किया गया था। हालांकि येदियुरप्पा बरी हुए हैं लेकिन यह दाग इस बार के चुनावों में भी उनका पीछा कर रहा है।
किसानों का मुद्दा
कर्नाटक में 5 साल के भीतर 3500 से अधिक किसानों ने खुदकुशी की है। पीएम मोदी ने कर्नाटक चुनावों में किसानों को अपनी टॉप प्रायॉरिटी बता चुके हैं। लगातार दो साल से सूखा प्रभावित कर्नाटक में किसान एक अहम चुनावी मुद्दा हैं।
सीएम सिद्धारमैया पर घोटाले के आरोप
सिद्धारमैया ने इस चुनाव को भितरी बनाम बाहरी का मामला बना दिया है। एक तरह से वह कांग्रेस के ट्रंप कार्ड हैं। हालांकि बीजेपी सिद्धारमैया पर लगातार घोटाले के आरोप लगा रही है। इनमें 450 करोड़ का कोल घोटाला और स्टील फ्लाइओवर स्कैंडल अहम है। जेडी (एस) ने एचडी कुमारस्वामी ने भी सिद्धारमैया सरकार में 5450 करोड़ रुपये आयरन ओर खनन घोटाले का आरोप लगाया है।
नदी जल विवाद
गोवा और कर्नाटक के बीच महानदी जल बंटवारे का विवाद भी चुनाव के लिहाज से अहम है। यह विवाद तब और गहराया जब गोवा सीएम मनोहर पर्रिकर ने इसके लिए येदियुरप्पा को चिट्ठी लिखी। बीजेपी उत्तरी कर्नाटक के सूखे प्रभावित इलाके की करीब 50 सीटों पर इस मुद्दे का फायदा उठाना चाहती है।
लिंगायत
कर्नाटक में लिंगायत समुदाय की आबादी 17 फीसदी है। हाल में सिद्धारमैया सरकार ने इस समुदाय की खुद को धार्मिक अल्पसंख्यक मानने की मांग पर अपनी मुहर लगा दी है। लिंगायत समुदाय हिंदू वीरशैव से खुद की अपनी अलग पहचान की मांग कर रहा है। बीजेपी के सीएम कैंडिडेट येदियुरप्पा इसी समुदाय से आते हैं। माना जा रहा है कि सिद्धारमैया ने लिंगायतों की मांग का समर्थन कर बीजेपी का एक बड़ा वोट बैंक तोड़ दिया है।
आदिवासी-दलित
अंहिदा (अल्पसंख्यक, पिछड़े और दलित वोट) पर अपनी पकड़ बनाने के सीएम सिद्धारमैया ने एससी/एसटी स्टूडेंट्स् को फ्री लैपटॉप दिए हैं। चावल और दूध का मुफ्त वितरण हो रहा है। इंदिरा कैंटीन में सस्ता खाना दिया जा रहा है। इसके अलावा एससी/एसटी परिवारों को बिजली सब्सिडी भी दी जा रही है। तमिलनाडु जैसी स्कीमें लाकर सिद्धारमैया इस बड़े वोटर ग्रुप को अपनी ओर खींच रहे हैं।
नवभारत टाइम्स