बेहतर पुनर्वास किए बिना सरदार सरोवर बांध की ऊंचाई बढ़ाने से डूब में आ रहे नर्मदा घाटी के प्रभावितों ने शुक्रवार से नर्मदा नदी के घाट पर सत्याग्रह शुरू किया जो शनिवार को जल सत्याग्रह में बदल गया। नर्मदा बचाओ आंदोलन की संस्थापक मेधा पाटकर सहित 30 से ज्यादा महिलाएं जल सत्याग्रह कर रही हैं।
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प्रभावित गांव के लोगों ने अब तक घर नहीं छोड़े हैं
ज्ञात हो कि सरदार सरोवर का जलस्तर बढ़ाने से मध्य प्रदेश की नर्मदा घाटी स्थित धार, बड़वानी, सहित अन्य इलाकों के 192 गांव और एक नगर का डूब में आना तय माना जा रहा है। धीरे-धीरे जल स्तर बढ़ रहा है और कई गांवों में पानी भी भरने लगा है। इसके बावजूद प्रभावित गांव के लोगों ने अब तक घर नहीं छोड़े हैं।
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सत्याग्रह जल सत्याग्रह में बदल गया है
बेहतर पुनर्वास और मुआवजा दिए बिना सरदार सरोवर की ऊंचाई बढ़ाए जाने का लोग विरोध कर रहे हैं। इसी के तहत मेधा पाटकर ने शुक्रवार से सत्याग्रह शुरू किया, वे नर्मदा नदी के छोटा बड़दा गांव के घाट पर बैठी हैं, जहां पानी लगातार बढ़ रहा है, स्थिति यह है कि उनका सत्याग्रह जल सत्याग्रह में बदल गया है।
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दिन देश के सबसे बुरे दिनों में से एक होगा
मेधा का कहना है कि लोग नर्मदा के पानी में डूबकर जान दे देंगे, मगर हटेंगे नहीं। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिन को धूमधाम से मनाने के लिए हजारों परिवारों की जलहत्या की तैयारी हो रही है। यह कैसा जश्न है कि एक तरफ लोग मरने की कगार पर होंगे और गुजरात में 17 सितंबर रविवार को जश्न मनाया जाएगा। यह दिन देश के सबसे बुरे दिनों में से एक होगा।
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सभी आंदोलनकारी नर्मदा के जल में बैठे हुए हैं
समाजिक कार्यकर्ता अमूल्य निधि ने बताया कि आंदोलनकारियों ने मेधा के नेतृत्व में पूरी रात पानी में रहकर गुजारी है और शनिवार की सुबह भी सभी आंदोलनकारी नर्मदा के जल में बैठे हुए हैं।
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