फीस के बदले ‘प्लास्टिक कचरा’ लेने वाला अनोखा विद्यालय
वर्तमान समय में जबकि पूरा विश्व प्लास्टिक की समस्या से जूझ रहा है. प्लास्टिक की समस्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है, ऐसे में भारत भी इससे अछूता नहीं रह गया है. यदि हम सिर्फ भारत में ही प्रतिदिन निकलने वाले प्लास्टिक कचरे की बात करें तो यह 26,000 टन है. जो कि पर्यावरण के लिए गंभीर समस्या बनता जा रहा है.
फीस के स्थान पर लिया जाता है प्लास्टिक का कचरा
देश में प्लास्टिक की समस्या से निपटने के लिए सरकार तो प्रयास कर ही रही है इसके साथ ही वह लोगों से भी इसमें मदद करने के लिए गुहार लगा रही है. इसी क्रम में इससे निपटने के लिए असम के एक स्कूल ने अनोखी पहल की है. यहां विद्यार्थियों से उनकी फीस के स्थान पर प्लास्टिक का कचरा लिया जाता है.
बता दें कि नीति आयोग के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) अमिताभ कांत ने भी इस स्कूल की पहल की सराहना की है. उन्होंने एक मीडिया रिपोर्ट को रीट्वीट करते हुए इस पहल को शानदार बताया है.
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पहले स्थापित किया अक्षर फाउंडेशन स्कूल
सोशल वर्क में स्नातक की डिग्री लेने के उपरांत परमिता शर्मा और माजिन मुख्तार ने उत्तर पूर्वी असम में पमोही नामक गांव में तीन साल पहले जब अक्षर फाउंडेशन स्कूल स्थापित किया, तब उनके दिमाग में एक विचार आया कि वे विद्यार्थियों के परिजनों से फीस के बदले प्लास्टिक का कचरा देने के लिए कहें.
एक रिपोर्ट के अनुसार, मुख़्तार एवं परमिता ने प्रत्येक विद्यार्थी से एक सप्ताह में प्लास्टिक की कम से कम 25 वस्तुएं लाने का आग्रह किया. फाउंडेशन यद्यपि एक चैरिटी है और डोनेशन से चलता है, लेकिन उनका कहना है कि प्लास्टिक के कचरे की ‘फीस‘ सामुदायिक स्वामित्वक की भावना को प्रोत्साहित करती है.
पर्यावरण सुधारने में मिल रही मदद
स्कूल में 100 से अधिक विद्यार्थी हैं. इस फीस से न सिर्फ स्थानीय पर्यावरण सुधारने में मदद मिल रही है, बल्कि इसने बालश्रम की समस्या को सुलझा कर स्थानीय परिवारों के जीवन में बदलाव लाना भी शुरू कर दिया है.
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स्कूल छोड़कर स्थानीय खदानों में काम करने वाले वरिष्ठ छात्र भी स्कूल लौट आए हैं और वह स्कूल में छोटे बच्चों को पढ़ाते हैं इसके लिए उन्हें पैसे भी मिलते हैं. उनकी अकादमिक प्रगति के साथ उनका मेहनताना भी बढ़ जाता है.
सीखते हैं धन प्रबंधन
इस तरीके से परिवार अपने बच्चों को लंबे समय तक स्कूल में रख सकते हैं. इससे न सिर्फ वे धन प्रबंधन सीखते हैं, बल्कि उन्हें शिक्षा के आर्थिक लाभ की व्यवहारिक जानकारी भी मिल जाती है.
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