लोगों के तानों ने बदली जिंदगी, आज दो सौ दिव्यांग बच्चों की ‘मां’

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बनारस से पीएम नरेंद्र मोदी ने शारीरिक रुप से असमर्थ लोगों को नया नाम दिया और उनके प्रति सरकार की सहानुभूति दिखाई तो इसका असर भी अब दिखने लगा है। समाज में कई ऐसे लोग हैं, जो दिव्यांगों को मुख्यधारा में लाने की कोशिश में लगे हैं. ऐसी ही हैं गाजीपुर जिले की रहने वाली सविता सिंह।

राजस्व विभाग में लेखाधिकारी के पद पर काम करने वाली सविता सिंह आज दो सौ दिव्यांग बच्चों के लिए मां की तरह हैं। सविता सिंह ने इन बच्चों को जन्म तो नहीं दिया, लेकिन जन्म देने वाली से कहीं बढ़कर हैं। उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी इन दिव्यांग बच्चों के लिए समर्पित करने का फैसला कर लिया है। ये बच्चे ही अब सविता की जिंदगी हैं। सविता जीती हैं तो बस इन बच्चों के लिए। दो पैसे कमाती हैं तो इन बच्चों के लिए। बच्चों की ये दुनिया ही अब इन्हें रास आती है।

दिव्यांग बच्चों के लिए स्कूल चला रही हैं सविता

दिव्यांग बच्चों को हौसला देने और उन्हें मजबूत बनाने के लिए सविता आज जी जान से जुटी हैं। गाजीपुर के शास्त्री नगर इलाके में इन बच्चों के लिए सविता एक स्कूल चला रही है, ताकि बच्चे पढ़ लिखकर अपने पैरों पर खड़ा हो सकें। सविता के स्कूल में इस वक्त दो सौ के ऊपर बच्चें हैं, जो हर रोज पढ़ाई के लिए उनके स्कूल में आते हैं। बच्चों की पढ़ाई के साथ साथ सविता उन्हें रोजगार देने वाले कोर्स की ट्रेनिंग भी दिलाती हैं, ताकि पढ़ाई के बाद ये बच्चें खुद का रोजगार कर सकें।

स्कूल में दी जाती है ट्रेनिंग

सविता के स्कूल में कंप्यूटर के साथ सिलाई कढ़ाई की ट्रेनिंग दी जाती है। सविता जानती हैं कि अगर इन बच्चों को मानसिक रुप से मजबूत बनाना है तो इन्हें शिक्षित करना बेहद जरुरी है। लिहाजा एक स्कूल की जरुरत थी। जहां ये बच्चें पढ़ाई कर सकें, लेकिन दुर्भाग्यवश पूर्वांचल के पिछड़े जिलों में शुमार गाजीपुर में दिव्यांगों के लिए कोई भी स्कूल नहीं था।

जिंदगी की गाढ़ी कमाई लगा दी

दिव्यांग बच्चों की इसी जरुरत को सविता ने समझा और एक स्कूल खोलने का निर्णय किया। हालांकि ये इतना आसान नहीं था, पर सविता ने भी हार नहीं मानी। दिव्यांग बच्चों के लिए सविता मुहल्ले मुहल्ले चक्कर लगाती रहीं। लोगों से चंदा मांगा, कुछ ने आगे बढ़कर उनका साथ दिया तो कुछ ने दिव्यांगों का नाम सुनते ही मुंह फेर लिया।

दिव्यांगों का स्कूल खोलने के लिए सविता ने अपनी जिंदगी भर की गाढ़ी कमाई लगा दी। सालों की मेहनत के बाद आज शास्त्रीनगर मोहल्ले में बच्चों का स्कूल बन पाया। इस स्कूल में बच्चों के रहने के हॉस्टल की भी व्यवस्था है. आज सविता इन बच्चों के साथ बेहद खुश हैं।

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खुद भी दिव्यांग है सविता

दिव्यांगों के साथ सविता के जुड़ने की कहानी भी बेहद दिलचस्प है।दरअसल सविता खुद भी दिव्यांग हैं। सविता का एक पैर बचपन से ही खराब है। लिहाजा सविता आम बच्चों की तरह न दौड़ पाती थी और न ही डांस कर पाती थी, लेकिन इन सबके बीच एक ऐसा वाकया हुआ जिसने सविता के जीने का नजरिया ही बदल दिया।

ताने मारते थे लोग

सविता ने बताया कि”जब वो स्कूल जाती थी तो उनके साथी उन्हें चिढ़ाते थे, ताने मारते थे, सामान्य बच्चों के साथ पढ़ाई करने में मुझे खासी दिक्कत होती थी। मैंने यह काम इसलिए शुरू किया ताकि फिर किसी बच्चों को मेरी जैसी जलालत ना झेलनी पड़े”।

बेहद खुश हैं सविता

अपनी इस नई दुनिया से आज सविता बेहद खुश हैं। सरकारी मुलाजिम होने के बावजूद सविता दिव्यांगों के लिए समय निकाल लेती है। अपनी सैलरी का एक बड़ा हिस्सा सविता इन बच्चों की पढ़ाई लिखाई पर खर्च करती हैं, ताकि ये बच्चें हुनरमंद बने, उन्हें दूसरे के सहारे की जरुरत ना पड़े।

बचपन में हो गई पोलियो की शिकार

मूलरुप से दिलदारनगर इलाके की रहने वाली सविता छह भाई बहनों में सबसे छोटी हैं। सविता जब 6 महीने की थी तभी वो पोलियो की शिकार हो गईं। पोलियो की वजह से उनका एक पैर खराब हो गया. एक तो दिव्यांग ऊपर से लड़की होना।

ये सबकुछ इतना आसान नहीं था। सविता बताती हैं कि आसपास के लोग और रिश्तेदार बस यही कहते थे इस लड़की का क्या होगा। कौन इससे शादी करेगा। दुनिया वालों के ताने सविता के जेहन में तीर की तरह चुभते थे, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। शुरूआती पढ़ाई लिखाई के बाद गाजीपुर पीजी कॉलेज से स्नातक की डिग्री ली और प्रतियोगी परीक्षाओं में लग गई।

सुर संग्राम नाम से म्यूकिल शो लाने जा रही हैं

नतीजा आज वो एक सम्मानजनक पद पर आसीन हैं। सविता चाहती हैं कि उनके स्कूल में आने वाले बच्चे सिर्फ पढ़ाई लिखाई ही ना करें बल्कि स्वावलंबी भी बने। इसलिए सविता का पूरा फोकस इन बच्चों की स्किल ट्रेनिंग पर होता है। सविता के स्कूल में कंप्यूटर, चादर की छपाई, फूलों की अगरबत्ती, फ्लावर पॉर्टस, पेंटिंग की ट्रेनिंग दी जा रही है।

यही नहीं इन बच्चों के टैलेंट को समाज के सामने लाने के लिए अब सविता सुर संग्राम नाम से म्यूकिल शो लाने जा रही हैं। ताकि दिव्यांग बच्चों के अंदर जो कला है उसे दुनिया देख सके। इस शो में सिर्फ दिव्यांग बच्चे ही भाग लेंगे। शो जीतने वाले बच्चे को पुरस्कृत किया जाएगा। पूरे जिले में इस शो की खासी चर्चा देखी जा रही है।

संस्था ‘समर्पण’

सविता ने साल 2004-05 में दिव्यांग बच्चों के लिए ‘समर्पण’ नाम की जो संस्था खड़ी की थी आज वो बरगद का रुप ले चुकी है। लेकिन सविता को मलाल है कि सरकार इस नेक काम में उनकी उतनी मदद नहीं कर रही है, जितना होना चाहिए। सविता बताती है, लगभग 10 सालों के कड़े संघर्ष के बाद सरकार इन बच्चों के लिए अनुदान देने को तैयार हुई, लेकिन वो भी ऊंट के मुंह में जीरा के सामान है।

कई बच्चों ने खुद का कारोबार शुरू कर दिया है

सविता सवाल करते हुए कहती हैं कि क्या ये संभव है कि महंगाई के इस दौर में एक बच्चे के एक वक्त की डाइट फीस 6 रुपए हो। सविता के स्कूल से पढ़कर निकलने वाले बच्चे भी अब अपनी दुनिया में खुश हैं। कई ऐसे बच्चे हैं जिन्होंने खुद का कारोबार शुरू कर दिया है। इन बच्चों को सविता की संस्था की ओर से बैंकों से लोन दिलाया गया। यही नहीं सविता हर मोड़ पर इन बच्चों के साथ खड़ी नजर आती हैं।

केविन केयर एबीलिटी अवॉर्ड

दिव्यांग बच्चों के लिए कुछ करने की जिद ही है कि सविता ने शादी नहीं करने का फैसला किया। सविता के नेक काम के लिए उन्हें कई सम्मान भी मिल चुके हैं। दिव्यांग बच्चों के लिए किए जाने वाले विशेष काम के लिए उन्हें केविन केयर एबीलिटी अवॉर्ड फॉर एनीमेंस नेशनल अवॉर्ड 2015 से नवाजा गया।

उनको यह अवॉर्ड आस्कर पुरस्कार विजेता सुप्रसिद्ध संगीतकार एआर रहमान ने चेन्नई में आयोजित एक कार्यक्रम में दिया। सामाजिक और विकलांगता के क्षेत्र में काम करने वाली एकलौती दिव्यांग महिला के रुप में सविता को इस पुरस्कार के लिए चुना गया।

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