क्या साकार होगा ‘महागठबंधन’ का आइडिया?

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अगर परिस्थितियां सही रहीं तो विपक्षी दलों का महागठबंधन का विचार साकार हो सकता है। कल की विपक्षी दलों की मीटिंग से ऐसा पहली बार खुलकर दिखा। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की ओर से गैर एनडीए दलों की शुक्रवार को लंच मीटिंग बुलाई गई थी।

इसका प्राथमिक मकसद तो आगामी राष्ट्रपति चुनाव के लिए उम्मीदवार के नाम पर एकराय बनाना था। लेकिन,  बैठक में बीजेपी से टक्कर लेने के लिए क्षेत्रीय राजनीति में धुर विरोधी पार्टियों जैसे एसपी-बीएसपी, तृणमूल-वाम दलों और केरल के गठबंधन एलडीएफ-यूडीएफ की पार्टियां एक मंच पर जिस ढंग से आयीं उससे इस संभावना को ज्यादा बल मिला। 2019 के लोकसभा चुनाव को लेकर नयी रणनीति का सूत्रपात इसे माना जा सकता है।

मीटिंग में मौजूद बीएसपी सुप्रीमो मायावती, तृणमूल चीफ ममता बनर्जी और आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने विपक्षी एकता कायम करने पर जोर दिया। इन नेताओं ने आरोप लगाया कि बीजेपी केंद्रीय एजेंसियों के दम पर न केवल विरोधियों को खामोश करने की कोशिश कर रही है, बल्कि उसकी कुछ नीतियां कमजोर तबकों के दमन का कारण बन रही है।

लालू ने खास तौर पर यूपी के परिप्रेक्ष्य में पार्टियों की एकता का फ्रेमवर्क पेश किया। उनकी दलील थी कि एसपी, बीएसपी और कांग्रेस मिलकर लोकसभा की 70 सीटें जीत सकती हैं। ममता और कुछ दूसरे नताओं ने भी विपक्षी एकता का झंडा बुलंद किया। लालू ने दावा किया कि इस तरह के गठबंधन से बीजेपी का सफाया हो जाएगा। वहीं,  मायावती ने भी अपने प्रति फैली उस धारणा को खत्म करने की कोशिश की,  जिसके मुताबिक वह सभी पार्टियों को छोड़ अकेले ही मैदान में उतरना चाहती हैं।

खबरों के मुताबिक, मायावती ने कहा, ‘मैं 100 फीसदी आपके साथ हूं।’ वहीं, एसपी नेता रामगोपाल यादव ने मायावती की इस पहल का समर्थन किया। उस वक्त रामगोपाल के बगल में एसपी प्रमुख अखिलेश यादव भी बैठे हुए थे।

यह सही है कि उत्तरप्रदेश और उत्तराखंड विधानसभा के नतीजों ने विपक्ष को एकजुट होने को मजबूर कर दिया है। बीजेपी की भारी जीत से सभी विपक्षी पार्टियां रणनीति बनाने में लगीं है आखिर मोदी के विजय रक्ष को कैसे रोका जाए।

पूछा जा रहा है कि  और अन्य प्रदेशों के भी छोटे बड़े दल क्या 2019 में एकजुट होकर मोदी की विजय रथ को रोक पाएंगे?  क्या मोदी के 2019 के प्लान से विपक्ष बुरी तरह डर गया है कि जो लोग एक दूसरे के धुर विरोधी थे वह एक साथ आने को तैयार हो गए हैं?

कई बार ऐसा भी होता है कि साथ आए हुए दलों के वोट बैंक एकजुट नहीं हो पाते और उसका लाभ विरोधी पार्टी को मिल जाता है और कई बार यह गठबंधन उन्हीं के लिए विस्फोटक साबित हो जाता है। जैसा कि उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में दिखा कि कैसे विरोधियों के चीथड़े उड़ा दिए जनता ने।

इसमें कोई दो मत नहीं कि देश में कभी भी किसी भी पार्टी का एकछत्र राज नहीं होना चाहिए। इससे लोकतंत्र में संतुलन बना रहता है। एक शक्तिशाली विपक्ष का होना लोकतंत्र में अनिवार्य है। अत: अगर यह सारी पार्टियां विपक्ष को मजबूत बनाने के लिए एक साथ आ रही हैं तो इसमें कोई हर्ज नहीं है।

राष्ट्रपति चुनाव ही सही, कम से कम अपने मतभेदों को भुलाकर विपक्षी दल एक साथ एक मंच पर आ तो रहे हैं, भले ही उनकी अपनी अपनी महत्वाकांक्षाएं क्यों न हो। यह अच्छी पहल मानी जानी चाहिये।

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